क्या भायखला जेल मेडिकल कॉलेज है? सुधा भारद्वाज के परिजनों और साथियों का खुला पत्र


हम इस बात से बहुत आहत हैं कि आज सुधा भारद्वाज की ज़मानत की याचिका को मुंबई उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। सुधाजी ने यह बेल याचिका जून 11 को उच्च न्यायालय के समक्ष इस आधार पर लगाई थी कि उन्हें रक्तचाप, मधुमेह की बीमारियाँ हैं तथा कुछ साल पहले उन्हें तपेदिक की शिकायत भी थी – इन सब बीमारियों के साथ और उनके 58 वर्षों की उम्र के कारण उनको कोविड से अधिक खतरा है।

दिनांक 21 जुलाई और 3 अगस्त को भायखला जेल की दो रिपोर्टों में बताया गया था कि सुधा भारद्वाज को मधुमेह की शिकायत तो है ही, पर अब वे एक नई बीमारी – “इस्केमिक हार्ट डिजीज” से ग्रसित हैं, जो हृदय की धमनियों के संकुचित होने के कारण होती है जिससे हृदय की मांसपेशियों में रक्त के प्रवाह की कम होती है और जिससे दिल का दौरा पड़ सकता है। इन रिपोर्टो ने हमारी चिंताओं को और भी बढ़ा दिया था। इन रिपोर्टों में सुधा जी के पूर्व में मधुमेह और गठिया तथा कुछ साल पहले तपेदिक की शिकायत का भी उल्लेख था।

नाटकीय रूप से भायखला जेल ने दिनांक 21 अगस्त को तीसरी मेडिकल रिपोर्ट जारी की जिसमे सुधाजी को, मधुमेह के अतिरिक्त, पूर्ण रूप से स्वस्थ दिखाया गया। इस नई रिपोर्ट में उनके रक्तचाप, “इस्केमिक हार्ट डिजीज” का कोई उल्लेख नहीं है- यहाँ तक कि गठिया का भी कोई ज़िक्र नहीं है। 

जेल रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण बात यह भी लिखी है कि 21.8.20 को जेल में 246 बंदी हैं, जबकि भौतिक दूरी करने के लिए वहाँ 175 से अधिक बंदी नहीं हो सकते। 

यह सर्वविदित है कि मात्र कुछ ही दिनों में ऐसा गंभीर हृदय रोग ठीक नहीं हो जाता है। इसलिए यह तीसरी रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है। पर कोर्ट ने तीनों रिपोर्टों में विरोधाभास देखने से मना कर दिया, और आखिरी रिपोर्ट के आधार पर बेल खारिज कर दी।

क्या भायखला जेल में “इस्केमिक हार्ट डिजीज” का पूर्ण इलाज खोजा जा चुका है?

हम अदालत की कार्यवाही से अचंभित हैं। सुधा भारद्वाज के स्वास्थ्य के लिए हम बहुत चिंतित हैं। कोविद के समय में जब जेल में भौतिक दूरी का पूरी तरह उल्लंघन है। ऐसे समय में सुधा जी के स्वास्थ्य के इतिहास देखते हुए और जेल में पनपी नई बीमारी के मद्देनजर अदालत का इस तरह तथ्यों को का नजरअंदाज करना हमारे सामने एक प्रश्न खड़ा करता है। क्या अदालतें भी मानवीय आधार खो रही हैं? यह भी बड़ा संशय हमारे सामने आया है।

दो साल से अभी तक अदालत ने मुख्य केस पर सुनवाई नहीं शुरू की है। यहां तक कि स्वास्थ्य के आधार पर दाखिल जमानत पर इस आदेश के लिए भी दो महीने के करीब लगे। अंत में याचिका निरस्त कर दी गई। कोविद के खतरे के मद्देनजर कितने ही अपराधियों की जमानत इस बीच मंजूर की गई हैं किंतु जिन्होंने आजीवन देश के उस समाज के लिए अपना जीवन दिया जो कभी मुखर नहीं हो सकता, उनको इस तरह जेल में रखना!

सरकार किसी भी तरह की आलोचना और अपने किसी भी काम में विरोध नहीं सुनना चाहती। इसलिए लोगों के हक में उठी इन आवाज़ों को किसी तरह बंद करना चाहती है।

आम लोग इस सच्चाई से वाकिफ हैं इसीलिए देशभर में जगह-जगह राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब व अन्य सुधा जी की गिरफ्तारी के 2 वर्ष पूरे होने पर गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं, जो सरकारी झूठे मुकदमे को पूरी तरह खारिज करते हैं।


परिजन और सहयोगी:

मायशा भारद्वाज, अक्षरा भारद्वाज,  कलादास भाई, रामाकांत बनर्जी, शालिनी गेरा, रिनचिन, शेरिया, कविता श्रीवास्तव, इंदिरा चक्रवर्ती, आलोक शुक्ला, डिग्री चौहान, वैभव वैश्य, मधुर भारतीय, विमल भाई, प्रियांशु गुप्ता, अर्पणा चौधरी, बिजया चंद्रा, ए पी जोशी, मालिनी सुब्रमण्य, केजे मुखर्जी, स्मिति शर्मा, नीलाभ दूबे, शिखा पांडे, मनन गांगुली, प्रियंका शुक्ला, मोनू कुहर, अनुराधा तलवार


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