मध्य प्रदेश के वन मंत्री के गृहजिले खंडवा के ग्राम नेगांव (जामनीया) में बीती 10 जुलाई को वन विभाग ने 40 आदिवासी परिवारों के घर तोड़े और उनके खेत नष्ट कर दिये। यहां कार्यरत संस्था जागृत आदिवासी दलित संगठन के मुताबिक दूसरे गांव के ग्रामीणों की एक भीड़ से आदिवासियों के सभी सामान- मुर्गियां, बकरियां, अनाज, बर्तन, पैसे- लुटवाए गये। पत्थर और लाठियों से आदिवासियों पर हमला किया गया। महिलाओं को भी नहीं छोड़ा गया। इन परिवारों के पास अभी तन पर रह गए कपड़ों के अलावा कुछ नहीं बचा है।
जागृत आदिवासी दलित संगठन (JADS) ने इस मामले में जारी बयान में कहा है कि हमले के दौरान तीन नेगाँव निवासी और फिर इस कार्रवाई की वैधता पर सवाल करने वाले तीन सामाजिक कार्यकर्ताओं को मारते हुए अपहरण कर 12 घंटों तक वन विकास निगम के कार्यालय में रखा गया। तीन व्यक्तियों के फोन भी वन अमले ने छीने, जो अभी भी नहीं लौटाये गये हैं।
मध्य प्रदेश में वन अधिकार कानून लागू है। इस कानून की निगरानी और क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने वाले वन विभाग की कमान प्रदेश के एक आदिवासी राजनेता के हाथों में। इसी वन अधिकार अधिनियम की धारा 4(5) के मुताबिक दावों के निराकरण तक किसी की बेदखली नहीं की जा सकती है। उधर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के 23 अप्रैल और 15 जून के आदेशों मुताबिक भी 15 जुलाई तक प्रदेश में किसी प्रकार की बेदखली प्रतिबंधित है। यह सभी तथ्य हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि वन मंत्री के गृह जिले में ही इन नियमों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं और इस काम में प्रशासन कठघरे में है। इस खबर से जुड़ी तस्वीरें हालात को बयान कर रही हैं।
हमले की खबर फैलते ही कई गांव से सैकड़ों आदिवासी खंडवा पुलिस अधीक्षक के कार्यालय पर धरने पर बैठ गए। इसके बाद देर रात तक बंधक बनाये गये व्यक्तियों को छोड़ा गया। इन व्यक्तियों के खिलाफ केस दर्ज़ होना बताया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के उल्लंघन में इस बारे में पूरी जानकारी नहीं दी गयी है। उनसे कोरे काग़ज़ पर हस्ताक्षर करवाया गया है।
जागृत आदिवासी दलित संगठन ने इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वन मंत्री विजय शाह, आदिवासी कल्याण मंत्री मीना सिंह मांडवे और मुख्य सचिव, वन सचिव, प्रमुख मुख्य वन संरक्षक और ज़िला प्रशासन को मामले की विस्तृत जानकारी दी है। साथ ही मांग की है कि इस अवैध बेदखली, लूट और मारपीट, अपहरण कर बंधक बनाने के सरकारी डकैती और गुंडागर्दी के खिलाफ ‘अत्याचार अधिनियम’ और आइपीसी के अंतर्गत सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। पीड़ित परिवारों को मुआवजा और उनके लिए आवास और राशन व्यवस्था की मांग भी संगठन की ओर से की गयी है। संगठन ने चेतावनी दी है कि ऐसा न होने पर व्यापक आंदोलन किया जाएगा।
इस मामले में जागृत आदिवासी दलित संगठन (JADS) की ओर से जारी पूरे बयान को नीचे पढ़ा जा सकता है।
वन-विभाग-की-अवैध-बेदखली-अपहरण-एवं-अवैध-बंधक-बनाए-जाने-बाबत-शिकायतसाभार: संविधान लाइव