जेल में बंद बीमार कवि वरवर राव के परिवार ने सरकार से लगायी उनका जीवन बचाने की गुहार


कवि वरवर राव के परिवार की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति, 12 जुलाई 2020

वरवर राव #VARAVARARAO की जेल में हत्या मत करो!!

हम, नवी मुंबई की तलोजा जेल में क़ैद विश्वप्रसिद्ध तेलुगु क्रांतिकारी कवि और जन बुद्धिजीवी, वरवर राव के परिवार के सदस्य, उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित हैं। उनकी स्वास्थ्य की स्थिति छह सप्ताह से अधिक समय से डरावनी बनी हुई है, जब 28 मई 2020 को उन्हें अचेत अवस्था में तलोजा जेल से जेजे अस्पताल में ले जाया गया था। हालाँकि उन्हें तीन बाद ही अस्पताल से छुट्टी देकर वापस जेल भेज दिया गया था, पर उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ है और उन्हें अब भी आपातकालीन चिकित्सीय देखभाल की ज़रूरत है।

हमारी चिंता का तात्कालिक कारण यह है कि शनिवार की शाम को आयी उनकी नियमित फ़ोन कॉल को लेकर हम बहुत परेशान हैं। हालाँकि 24 जून और 2 जुलाई को आयी दो कॉल भी परेशान करने वाली थीं क्योंकि उनकी आवाज़ कमज़ोर और धुँधली-सी लग रही थी, बोलते हुए वे भटक जा रहे थे और और अचानक हिंदी बोलने लग रहे थे। वे पाँच दशकों से तेलुगु के एक बेहतरीन वक्ता और लेखक रहे हैं, चार दशकों तक तेलुगु के शिक्षक रहे हैं और अपनी तीक्ष्ण स्मृति के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में बोलते हुए उनका लड़खड़ाना, भटकना और भूल जाना अपने आप में अजीब और डर पैदा करने वाली बात थी।

लेकिन अभी 11 जुलाई को आयी कॉल कहीं ज़्यादा चिंताजनक है क्योंकि उन्होंने अपने स्वास्थ्य के बारे में सीधे सवालों के जवाब नहीं दिए और अपने पिता और माँ के अंतिम संस्कार के बारे में बहकी-बहकी बातें करने लगे, जो क्रमश: सात दशक और चार दशक पहले की घटनाएँ हैं। फिर उनके सह-आरोपी साथी ने उनसे फ़ोन लेकर हमें बताया कि वह अपने आप चलने, शौचालय जाने और दाँतों पर ब्रश करने में भी सक्षम नहीं हैं। हमें यह भी बताया गया कि उन्हें हमेशा ऐसा भ्रम होता रहता है कि हम, यानी उनके परिवार के लोग, जेल के फाटक पर उनका इंतज़ार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें रिहा किया जा रहा है।

उनके साथी क़ैदी ने यह भी कहा कि उन्हें न केवल शारीरिक बल्कि न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के लिए भी तत्काल चिकित्सीय देखभाल की ज़रूरत है। भ्रम, याददाश्त खोना और दिमागी बेतरतीबी इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और सोडियम व पोटेशियम के स्तर में गिरावट के परिणाम हैं जिनसे मस्तिष्क को नुक्सान पहुँचता है। यह इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन जानलेवा भी हो सकता है। तलोजा जेल के अस्पताल में इस तरह की गंभीर बीमारी के लिए न तो चिकित्सा विशेषज्ञ हैं और न ही उपकरण। इसलिए उनकी जीवनरक्षा के लिए और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन के कारण संभावित मस्तिष्क क्षति और जीवन पर जोखिम से बचाव के लिए उन्हें तत्काल किसी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में स्थानांतरित करना बेहद ज़रूरी है।

इस समय हम अन्य सभी बातों को दरकिनार कर रहे हैं, जैसेकि उनके ख़ि‍लाफ़ पूरा मामला गढ़ा हुआ है; उन्हें विचाराधीन क़ैदी के रूप में 22 महीने जेल में बिताने पड़े जहाँ प्रक्रिया को ही सज़ा में बदल दिया गया; उनकी ज़मानत याचिकाएँ कम से कम पाँच बार खारिज की जा चुकी हैं और यहाँ तक कि उनकी उम्र, ख़राब स्वास्थ्य और कोविड के जोखिम के आधार पर ज़मानत के लिए दायर याचिकाओं को भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया है।

उनका जीवन अभी हमारे लिए सबसे अधिक चिंता का विषय है। इस समय हमारी माँग उनकी जीवनरक्षा के लिए है। हम सरकार से माँग करते हैं कि उन्हें एक बेहतर अस्पताल में स्थानांतरित किया जाये या हमें आवश्यक चिकित्सा सुविधा प्रदान करने की अनुमति दी जाये। हम सरकार को याद दिलाना चाहते हैं कि उसे किसी भी व्यक्ति को जीवन के अधिकार से वंचित करने का कोई अधिकार नहीं है, एक विचाराधीन बन्दी को तो बिल्कुल ही नहीं।

पी. हेमलता, पत्नी
पी. सहजा, पी. अनला, पी. पावना, बेटियाँ


Zoom press conference on poet Varavara Rao’s health

Posted by N Venugopal on Saturday, July 11, 2020

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जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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