विष्णुचंद्र शर्मा: अनुभव पकी आंखें और सृजन का निरंतर उत्साह ही उनके जीवन की प्रेरणा रहा

वह कहते थे कि अपनी शर्तों पर जीवन जीने के कारण मैं दिल्ली में एक गुमनाम साहित्यकार बनकर रह गया क्योंकि मैंने कभी किसी की चापलूसी नहीं की, सिर्फ अपने मन की करता था। वे घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे। उनका जन्म काशी में हुआ और आशियाना राजधानी दिल्ली में बनाया। उन्होंने अपनी शर्तों पर बनारस से दिल्ली तक का सफर तय किया था।

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स्मृतिशेष: कवि का कमरा, कवि की दुनिया

तमाम शोरगुल, आत्म-प्रशंसा और प्रचार से दूर रह कर विष्णुजी आजीवन चुपचाप अपने लेखन और सृजन कर्म में लगे रहे। जैसे मुक्तिबोध के जीवनकाल में उनका मूल्यांकन नहीं किया मठाधीशों ने और उनके जाने के बाद उन्हें खूब खोज कर पढ़ा गया, उसी तरह।

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