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अनामिका-अकादमी, हंस-निशंक के रास्ते हिंदी साहित्य में हिंदू नाजीवाद का स्वीकरण
अगर मान लिया जाय कि अनामिका का पुरस्कार लेना उनका निजी मामला है तो भी यह सवाल तो बनता ही है कि असहिष्णुता के उत्तर-काल में साहित्य अकादमी पुरस्कारों की कोई नैतिक अपील बची भी है? अगर हां तो कोई बात नहीं. राम राज में सब माफ़ है. और अगर नहीं तो अनामिका के पुरस्कार को निजी ही रहने देना चाहिए. यह हिंदी भाषा और संस्कृति के लिए सार्वजनिक जश्न का मुद्दा कतई नहीं होना चाहिए.
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