”टू मच डेमोक्रेसी” वाला वर्ष और अंत में रुकावट के लिए एक खेद!

टू मच डेमोक्रेसी में सवाल के हिसाब से जवाब नहीं दिये जाते बल्कि जवाब के हिसाब से सवाल किए जाते हैं। असल में टू मच डेमोक्रेसी में सरकारों का काम ही ये होता है और सरकारें इस काम को पूरी शिद्दत के साथ करती है। यहां तक कि विश्व महामारी में भी वो अपने इस एजेंडा से टस से मस नहीं होती।

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बात बोलेगी: ‘ज़रूरत से ज्यादा लोकतंत्र’ के बीच फंसा एक सरकारी ‘स्पेशल पर्पज़ वेहिकल’!

अमिताभ कांत का बयान अगर आधिकारिक तौर पर भारत सरकार का बयान है, जो निश्चित तौर पर है, तो यह इस किसान आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि उसने भारत सरकार की असल मंशाओं को उजागर करवा लिया है।

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