दक्षिणावर्त: क़त्ल पर जिन को एतराज़ न था, दफ़्न होने को क्यूं नहीं तैयार…
दरक चुके अपने समाज की आलोचना हम कब करेंगे? अपने सामाजिक-सांस्कृतिक दायित्व का बोध हमारे भीतर कब होगा और हम संविधान में वर्णित अधिकारों को रटने के साथ सामाजिक ‘कर्त्तव्यों’ को भी कब जानेंगे?
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