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‘संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे’: साहिर लुधियानवी की याद में
इत्तफ़ाक ही है कि साहिर का जन्म भी 8 मार्च को महिला दिवस के दिन ही हुआ। साहिर की शायरी और गीत सुनकर ऐसा लगता है मानो वो स्त्री मन को इस क़दर समझते थे कि गीत लिखते हुए वो ख़ुद औरत हुए जाते हों। एक सेक्स वर्कर से लेकर माँ से लेकर महबूबा तक उन्होंने हर औरत की दास्तां उनके नज़रिए से बयां की है।
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