संवैधानिक मूल्यों पर आधारित समाज व साझी विरासत को बचाना वक्त की जरूरत: शमा परवीन

शमा परवीन ने कहा कि आज देश में सामाजिक और लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सपनों के अनुरूप समाज निर्माण नहीं हो रहा है। ऐसे में संवैधानिक मूल्यों पर आधारित समाज व साझी विरासत को बचाना वक्त की भारी जरूरत है।

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बनारस: बदली परिस्थिति में सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका पर तीन दिवसीय कार्यक्रम में सघन चर्चा

फादर एक्का ने कहा कि सरकार और आदिवासी समाज में एक-दूसरे को समझने को लेकर हमेशा से मतभेद रहा है। सरकार जिसे आवश्यक समझती है वह इस समाज को गैरजरूरी लगता है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि हम इस समाज के विकास के लिए अपना नजरिया बदलें।

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आजादी के बाद नेहरू ने खुश्क जमीन पर आधुनिक भारत के निर्माण की नींव रखी थी: प्रो. दीपक मलिक

इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट, सेंटर फार हार्मोनी एंड पीस एवं राइज एंड एक्ट के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में प्रो. दीपक मलिक ने कहा कि साल 1952 में फूलपुर लोकसभा चुनाव के दौरान ही नेहरू ने कहा था कि तानाशाही बहुसंख्यकवाद के जरिये आएगी। आज देश न सिर्फ़ वह दौर देख रहा बल्कि महसूस भी कर रहा है।

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संवैधानिक मूल्यों को लागू करना सरकारों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए: रामनाथ शिवेंद्र

नाहिदा आरिफ ने कहा कि आजादी के आंदोलन और उससे भी सैकड़ों साल पहले से भारत साझी विरासत और मेल जोल की परंपरा को समेटे हुए निर्मित हुआ है जिसे आज कुछ ताकतें खत्म कर देना चाहती हैं। हमें इनसे सावधान रहना होगा।

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बनारस में गोष्ठी: भारतीय समाज एकरंगा बनाने की कोशिश बेहद खतरनाक!

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि आज धर्म को सियासत की चाशनी में लपेटकर सरकार बनाने और बिगाड़ने का दौर शुरू है। ये किसी लोकतांत्रिक देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि आज धर्माधिकारियों और धर्म के व्यापारियों में समाज को बांट दिया गया है। इससे हमें सावधान होना चाहिए।

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धार्मिक सत्ता स्थापित करने का प्रयास लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ: प्रो. राम पुनियानी

पूर्व की सरकारों के दौर में भी मीडिया की भूमिका पर सवाल उठते थे पर वह अपवादस्वरूप होते थे आज हालत इससे उलट है। मीडिया ने जनसरोकार से किनारा कर के सत्ता सरोकार से रिश्ता बना लिया है जिससे लोकतंत्र के चौथे खम्भे से आम जन का भरोसा उठता जा रहा है।

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