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जिस राष्ट्र में अपने मन-विचार से काम करने की आजादी न हो, उसे नष्ट हो जाना चाहिए: स्वामी विवेकानंद
पिछले कुछ दशकों में खासतौर से 90 के बाद चली धार्मिक कट्टरता की हवा ने विवेकानंद जैसे क्रांतिकारी, संन्यासी और मानवतावादी दार्शनिक को हिंदू पहचान के साथ जड़बद्ध कर दिया. और ध्यान रहे ये सब कुछ सायास, एक परियोजना के तहत किया गया था ताकि हिंदुत्व के खोखले दावे को अमली जामा पहनाने के लिए एक नायक की तलाश पूरी की जा सके.
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