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बात बोलेगी: खुलेगा किस तरह मज़मूं मेरे मक्तूब का या रब…
जिसके कहे पर देश चलने लगा था या उतना तो चलने ही लगा था जितनों की उँगलियों में देश की बागडोर सौंपने का माद्दा था, आज वे उँगलियां उस नीली स्याही को कोसती नज़र आ रही हैं जिसे वोट करते वक्त उन्होंने लगवाया था। ऐसी हर कम होती उंगली का एहसास इस विराट सत्ता को हो चुका है।
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