रामत्व की तलाश में नैतिक पतन को अभिशप्त नायक: मिथिला और रूस के लोक से दो छवियाँ

मेहनतकश लोगों एक ऐसा वर्ग जो समाज में वर्गहीन होता है, दुनिया के सभी क्षेत्रों में इनकी स्थिति कमोबेश ऐसी ही रही है। अच्छा जीवन कैसे जिया जाए सोचते-सोचते ये लोग कब नैतिक पतन और नैतिक भ्रष्टाचार के शिकार होते चले जाते हैं इन्हें भी नहीं पता चलता।

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पंचतत्व: मिथिला में अब कहां मीन और कहां मखान!

असल में पिछले डेढ़ दशक से मिथिला के शहरी इलाकों में जल संकट गहराने लगा है. उसके पहले ऐसा होना अभूतपूर्व ही थी. मिथिला के पोखरे भूमिगत जल स्तर को रिचार्ज करते रहते थे और सदियों से यह कुदरती तौर पर वॉटर हार्वेस्टिंग का तरीका था.

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पंचतत्व: चुगलों के चंगुल में फंसी प्रकृति के साथ सहजीवन का प्रतीक सामा चकेबा

लोक आस्था का पर्व छठ हो या फिर सामा चकेबा, दोनों ही पर्यावरण के पर्व हैं. भाई-बहन के रिश्ते को भैया दूज और राखी से परे ले जाकर सामा-चकेबा का पर्व अद्भुत आयाम देता है. इस आयाम में, प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को बेहद मासूम अभिव्यक्ति दी जाती है.

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