अंबेडकर और कम्युनिस्ट विचारधारा के रिश्तों को समझने की एक दस्तावेजी खिड़की

डॉ. अम्बेडकर की एक अधूरी पांडुलिपि का हालिया प्रकाशन हमें अम्बेडकर के साम्यवाद के साथ संबंधों की अधिक सूक्ष्म समझ प्राप्त करने में मदद करता है। इस पुस्तक का संपादन अंबेडकर के परिवार से जुड़े एक प्रसिद्ध दलित विद्वान आनंद तेलतुम्बडे ने किया है।

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लेखक संगठन और आत्मालोचन का सवाल: हिरन पर घास कौन लादेगा?

प्रो. अब्दुल अलीम, जिनका संबंध प्रगतिशील लेखक संघ के पुरोधाओं से है, उन्होंने लेखकों की एक बड़ी मीटिंग में कहा था कि लेखक संगठन बनाना उतना ही कठिन है जितना कि हिरन पर घास लादना, लेकिन हिरन पर घास लादने का कार्य प्रगतिशील लेखक संघ के उत्तराधिकारियों का काम है। इसे कोई दूसरा नहीं कर सकता है।

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‘हमें अर्थव्यवस्था, खुशहाली और आज़ादी में एक संतुलन बनाना पड़ेगा’: कोबाड गाँधी से बातचीत

जब तक हम जीवन में बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं करते हैं, तो खुशियां नहीं आ सकती हैं। हमारा लक्ष्य सामाजिक राजनीतिक बदलाव है तो ये तो रहेगा ही, लेकिन हमें व्यक्तिगत मूल्यों की भी बात करनी होगी। ख़ुशियां अमूर्त में नहीं होती हैं। उनका एक भौतिक आधार होता है। एक नया समाज बनाने के लिए और इन विचारों को विकसित करने की ज़रूरत है।

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जाति के सवाल पर बनी पहली कम्युनिस्ट पार्टी के संदर्भ में ‘माफुआ’ का विश्लेषण व सीमाएं

बंकिमचंद्र द्वारा निर्मित मुसलमान का मोनोलिथ हिंदू मोनोलिथ निर्माण प्रक्रिया की शुरुआत करता है। जाति व्यवस्था हिंदू धर्म का हिस्सा है, ऐसा कहते डॉ. आंबेडकर मोनोलिथ पक्का करते हैं और उस मोनोलिथ से बाहर निकलने के लिए धर्मातरण कर धर्म नाम के मोनोलिथ को और पक्का करते हैं। बंकिमचंद्र से लेकर बाबा साहब तक धर्म को मोनोलिथ बनाने की यात्रा विश्व पूंजीवाद के लिए उपकारक सिद्ध हुई है।

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जलते हुए जलगांव के बीच विलास सोनवणे को दिल्‍ली में सुनना

सांप्रदायिकता से कैसे लड़ें, इस पर उन्‍होंने कहा कि ये लड़ाई लंबी है। वे बोले कि कम्‍युनिस्‍ट आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। उन्‍होंने हमें एजेंडा दे दिया है और हम धरने पर बैठे हैं। यह नहीं होना चाहिए।

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