एक सत्यशोधक के रूप में जोतिबा फुले की तस्वीर: देस हरियाणा का भाषणों को समर्पित अंक

अब तक हिंदी पाठकों के दिमाग में बनी जोतिबा फुले की तस्वीर एक समाज सुधारक की तस्वीर या फिर एक जातिवाद विरोधी महात्मा की तस्वीर के रूप में बनी हुई है। ये भाषण जोतिबा फुले के दर्शन, विज्ञान और इतिहास के सत्यशोधक की तस्वीर बनाते हैं। यह भाषण पहली बार मराठी में 1856 में प्रकाशित हुए थे।

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सारी विपत्तियों का आविर्भाव निरक्षरता से हुआ: ज्योतिबा फुले

उनको विश्वास था कि छोटी जातियों के लोग सामाजिक समानता के लिए अवश्य संघर्ष करेंगे। ज्योतिबा की तरह और भी वयस्क लोग थे लेकिन ज्योतिबा के पास जो साहस और संकल्प था वह और किसी के पास नहीं था। 21 वर्ष की आयु में ज्योतिबा फुले ने महाराष्ट्र को एक नये ढंग का नेतृत्व दिया।

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क्या होता यदि फुले दम्पत्ति की मुलाकात मार्क्स से हुई होती?

आज फुले दम्पति होते तो वे अपने किसानों के साथ खड़े होते। वे ललकार रहे होते। उन्हें ‘गुलामगिरी’ से मुक्ति के पाठ पढ़ा रहे होते। उन्हें भीमा-कोरेगांव के किस्से सुना रहे होते।

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