आखिर मिल ही गया बजट में पर्यावरण को एक मौका!

भारत पर वायु प्रदूषण का कहर जग ज़ाहिर है। इस समस्या से निपटने के लिए 10 लाख से अधिक जनसंख्या, वाले 42 शहरी केन्द्रों के लिए 2,217 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराने का फैसला लिया गया है। यही नहीं, सरकार ने गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को हटाने के लिए एक स्वैयच्छिक वाहन स्क्रैपिंग नीति की बात भी की है।

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जलवायु जोखिम सूचकांक के शीर्ष दस देशों में भारत शामिल, जर्मनवाच की रिपोर्ट

भारत के ऊपर हैं ज़िम्बाब्वे, जापान और मलावी जैसे देश। शीर्ष के पांच देशों में तीन अफ्रीका से हैं।

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बहुत हो चुका ओली जी! अब विश्राम कीजिए…

पिछले तीन-चार दशकों के बाद पहली बार किसी ऐसी सरकार का गठन हुआ था जो बिना किसी बाधा के अपना कार्यकाल पूरा कर सकती थी। एक स्थायी और स्थिर सरकार ही विकास की गारंटी दे सकती है- इसे सभी लोग मानते हैं। यही वजह है कि व्यापक जनसमुदाय ने इस सरकार से बहुत उम्मीद की थी- बहुत ही ज्यादा।

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COVID-19 लॉकडाउन के कारण 2020 में कार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन में 7% की रिकॉर्ड कमी

एक्सेटर विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर पियरे फ्राइडलिंगस्टीन ने कहा -“हालांकि वैश्विक उत्सर्जन पिछले साल इतना अधिक नहीं था पर अभी भी लगभग 39 बिलियन टन CO2 की मात्रा में है ।जबकि वातावरण में CO2 में और वृद्धि हुई है वायुमंडल में CO2 स्तर और परिणाम स्वरूप विश्व की जलवायु केवल तभी स्थिर होगी जब वैश्विक CO2 उत्सर्जन जीरो के आस पास होगा।

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तन मन जन: साल दर साल विकास लक्ष्यों का शतरंजी खेल और खोखले वादे

विश्व स्वास्थ्य संगठन का वादा था- सन् 2000 तक सबको स्वास्थ्य, लेकिन स्थिति नहीं बदली। फिर सहस्राब्दि (मिलेनियम) विकास लक्ष्य 2015 तय हुआ। वह भी हवा-हवाई हो गया। अब टिकाऊ (सस्टेनेबल) विकास लक्ष्य 2030 तय हुआ है। समझा जा सकता है कि “जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा”।

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“न कोई घुसा है, न किसी का कब्ज़ा है” कहने के पीछे प्रधानमंत्री का आशय क्या है

शुक्रवार को चीन के साथ जारी सीमा विवाद पर हुई ऑनलाइन सर्वदलीय बैठक से धीरे-धीरे छन कर जानकारियां बाहर आ रही हैं. विपक्षी दलों की तमाम दुश्चिंताओं के बीच मीडिया ने जिस ख़बर को सबसे ज्यादा तवज्जो दी वह है प्रधानमंत्री का बयान.

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भारत और नेपाल की जनता के सुमधुर सम्बंध को बिगाड़ने में किसका हित है?

भारत और नेपाल की सीमा के निर्धारण का निर्णायक आधिकारिक दस्तावेज़ सुगौली सन्धि है जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह जमीन नेपाल से ताल्लुकात रखती है

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भारत और चीन दोनों को सम्प्रभुता का एक संदेश है नेपाल का नया नक्शा

नेपाल ने आधिकारिक तौर पर अपना नया नक्शा जारी किया जिसमें कालापानी, लिम्पियाधुरा तथा लिपुलेक को नेपाल का भू-भाग बताया है

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