भारतीय आलोचना का विद्रूप दोहरे अलगाव की देन है: मदन सोनी

गोष्ठी में दो दिनों तक इन मुद्दों पर जमकर चर्चा हुए। कई नई स्थापनाएं सामने आईं, कई समस्याग्रस्त पदों पर नई रोशनी पड़ी, अनेक मुद्दे अनसुलझे भी रहे। गोष्ठी का उद्घाटन वक्तव्य अशोक वाजपेयी ने दिया।

Read More

विष्णुचंद्र शर्मा: अनुभव पकी आंखें और सृजन का निरंतर उत्साह ही उनके जीवन की प्रेरणा रहा

वह कहते थे कि अपनी शर्तों पर जीवन जीने के कारण मैं दिल्ली में एक गुमनाम साहित्यकार बनकर रह गया क्योंकि मैंने कभी किसी की चापलूसी नहीं की, सिर्फ अपने मन की करता था। वे घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे। उनका जन्म काशी में हुआ और आशियाना राजधानी दिल्ली में बनाया। उन्होंने अपनी शर्तों पर बनारस से दिल्ली तक का सफर तय किया था।

Read More

पांच दशक से कविता के ‘अंधेरे में’ भटकता मुक्तिबोध का कहानीकार

मुक्तिबोध की रचना-प्रक्रिया में कविता चूंकि कहानी लिख पाने में हासिल विफलता के बाद आती है (जिसका उद्देश्य महज खुद को प्रकट कर के खो देना है), फलस्वरूप मुक्तिबोध के ही लेखे ‘‘साहित्यिक फ्रॉड’’ का अनुपात उनकी कविताओं में उनकी कहानियों के बनिस्बत कहीं ज्यादा है।

Read More

लेखक संगठन और आत्मालोचन का सवाल: हिरन पर घास कौन लादेगा?

प्रो. अब्दुल अलीम, जिनका संबंध प्रगतिशील लेखक संघ के पुरोधाओं से है, उन्होंने लेखकों की एक बड़ी मीटिंग में कहा था कि लेखक संगठन बनाना उतना ही कठिन है जितना कि हिरन पर घास लादना, लेकिन हिरन पर घास लादने का कार्य प्रगतिशील लेखक संघ के उत्तराधिकारियों का काम है। इसे कोई दूसरा नहीं कर सकता है।

Read More

बनारस ने उन्हें बहिष्कृत किया, लेकिन नामवर ने अपने गुरु का वैचारिक ध्वज कभी झुकने नहीं दिया!

बनारस में बंगला नवजागरण और रवीन्द्रनाथ टैगोर की चेतना से शिक्षित-दीक्षित और संस्कारित होकर हज़ारीप्रसाद द्विवेदी जब आए तब उन्हें अनेक तरह का विरोध झेलना पड़ा। इसकी झलक नामवर जी की किताब ‘दूसरी परंपरा की खोज’ और विश्वनाथ त्रिपाठी की किताब ‘व्योमकेश दरवेश’ में मिलती है। नामवर सिंह ने ऐसे में यदि द्विवेदी जी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया तब यह बतलाने की जरूरत नहीं रह जाती कि उनकी विचारधारा क्या थी।

Read More

उसने कहा था- “यह महाद्वीप एक दूसरे को काटने को दौड़ती हुई बिल्लियों का पिटारा है”!

धर्म को गुलेरी जी बराबर कर्मकाण्ड नहीं बल्कि आचार-विचार, लोक-कल्याण और जन-सेवा से जोड़ते रहे। इन बातों के अतिरिक्त गुलेरी जी के विचारों की आधुनिकता भी हमसे आज उनके पुनराविष्कार की मांग करती है।

Read More

अमरकांत के कथा साहित्य में स्त्री की उपस्थिति

आज कथाकार अमरकांत की जयन्‍ती है। उनके लेखन का दायरा निम्नमध्यवर्ग और मध्यवर्ग की समस्याओं के आसपास केन्द्रित रहा है। इस समाज की आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को अमरकांत ने व्यापक विस्तार के साथ चित्रित किया है।

Read More

तिर्यक आसन: बधाई हो! हिंदी में पाठकों से अधिक संख्या साहित्यकारों की हो गई है

बधाई देने के लिए कई प्रकाशकों, संपादकों, साहित्यकारों ने ‘पेड स्लीपर सेल’ बना रखी है। ‘पेमेंट’ नकद के रूप में नहीं होता। कई अन्य रूपों में होता है। बधाई की जितनी नई उपमा, उतना अधिक पेमेंट।

Read More

…हिंदी साहित्य में हिंदू नाजीवाद का स्वीकरण: भाग-2

चित्रा मुद्गल ने अनामिका की खूब और जायज़ तारीफ़ की, लेकिन उन्होंने भी माना कि निशंक की किताब नहीं पढ़ी है. जिस किताब को ज्यूरी के मेंबरान ने भी पढ़ने लायक नहीं समझा, वो किताब हिंदी साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार के लिए चयनित अंतिम 13 किताबों के बीच कैसे पहुंच जाती है? क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं?

Read More

अज्ञेय को प्रचलित मुहावरों में समझना मुश्किल है, उन्हें फिर से समझने की कोशिश की जानी चाहिए!

आज जब दुनिया की राजनीति से शीतयुद्ध पूरी तरह खत्म हो गया है और मनुष्यता पर अन्य कई तरह के खतरे हावी हो रहे हैं, तब अज्ञेय अधिक साहस के साथ हमारे पक्ष में होंगे। वह हमें अपने भीतर झाँकने और खुद को समझने में सहयोग कर सकेंगे। अज्ञेय की खासियत यही है कि हर बार आप उन्हें एक ही रूप में अनुभव नहीं कर सकते।

Read More