भाषा चर्चा: जब कंप्यूटर आपकी सही हिंदी को लाल रंग से घेर दे, तो आप क्या करेंगे?

समस्या के विभिन्न आयामों पर अब तक बात हुई है, लेकिन समाधान पर कब बात होगी? कोई समाधान है भी या अंदाज से हवा में लाठी चलायी जाएगी, या केवल समस्याओं को इंगित कर छोड़ दिया जाएगा?

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भाषा-चर्चा: तकनीक की ‘अंधाधुन’ गोलीबारी में टूटता हिंदी का संयुक्त परिवार

जिस तरह एकल परिवारों की वजह से चाचा-चाची, मौसा-मौसी, फुआ-फूफा जैसे रिश्ते सिमटते गए और एक ‘अंकल’ और ‘आंटी’ में समा गए, उसी तरह विष, ज़हर, हलाहल आदि का भी समायोजन एक ‘प्वाइज़न’ में हो गया। हम हिंदी वाले अब ‘कज़न ब्रदर’ या ‘कज़न सिस्टर’ का प्रयोग करते हैं।

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विसर्ग के अनैतिक संसर्ग में फंसे बनारस के बहाने हिन्दी के कुछ सबक

किसी भी भाषा का मूल तो स्वर यानी ध्वनि ही है। हिंदी में यह अधिक है, तो यह उसकी शक्ति है, लेकिन इसे ही यह हटा रहे हैं। कई भाषाओं में कम ध्वनियां हैं तो उन्हें आयातित करना पड़ा है और यह बात अकादमिक स्तरों पर भी मानी गयी है। कामताप्रसाद गुरु ने भी अपनी किताब ‘हिंदी व्याकरण’ में इसी बात पर मुहर लगायी है कि हिंदी मूलत: ध्वनि का ही विज्ञान है।

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हिंदी भाषा पर बातचीत: क्या हिंदी वालों को हिन्दी से प्यार नहीं है?

हिंदी को बस हिंदी रहने देना चाहिए। इसको क्लिष्ट और आसान के खांचों में काहे बांटना। हिंदी सहज-सरल तौर पर विदेशी भाषा के शब्दों को ग्रहण करती आयी है और यही किसी भाषा के सामर्थ्यवान होने का भी द्योतक है।

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अनामंत्रित: हिंदी के पतन की वजह न्यूजरूम में बैठे आलसी, अक्षम और जड़बुद्धि लोग हैं

जिसने भी यह कहा था कि, ‘जिस तरह तू बोलता है, उस तरह लिख’- इस कथन को बिना समझे सतही रूप से हिंदी पर लागू करने के दुष्परिणाम आज हमारे सामने हैं।

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