एक बीमार स्वास्थ्य तंत्र में मुनाफाखोरी का ज़हर और कोरोना काल का कहर

कोरोना एक त्रासदी के साथ-साथ सबक भी है कि हम अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को बाजार में मुनाफा कमाने वाला एक उद्योग न बनायें, बल्कि राष्ट्र को स्वस्थ और मजबूत नागरिक प्रदान करने वाली एक इकाई के रूप में विकसित करें. निजी चिकित्सा संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण किये जाने की सख्त जरूरत है और इलाज के खर्चे का भी एक मानक बनाया जाना चाहिए.

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मोदी सरकार और स्वास्थ्य का अमेरिकी मॉडल

मोदी सरकार उस अमरीका की नीतियों को भारत में लागू करना चाहती है जो आज़ादी के बाद से ही भारत के विकास में रोड़े अटकाता और पाकिस्तान के माध्यम से भारत को परेशान करता रहा है। स्‍वास्‍थ्‍य की पुरानी सरकारी व्यवस्था में बजट को और बढ़ाने की ज़रूरत थी लेकिन मोदी सरकार सामाजिक सुरक्षा के खर्च में कटौती करके उसे बर्बाद करने में लगी है।

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कोरोना मृत्यु के आंकड़े छुपा रही योगी सरकार: दारापुरी

सरकार महज उत्सव मनाने और अखबारी विज्ञापनों में ही दमदार होने का दावा पेश कर रही है। हालत इतनी बुरी है कि मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए घंटों एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं हो रही है और कईयों ने तो एम्बुलेंस में ही दम तोड़ दिया।

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तन मन जन: जिन चिकित्साकर्मियों को ‘कोरोना वारियर’ कहा जा रहा है, वे संक्रमण का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट हैं!

कोरोना संक्रमण के इस भयावह दौर में जिन चिकित्सकों और चिकित्साकर्मियों को ‘कोरोना वारियर’ बताया जा रहा है वे खुद कोरोना संक्रमण के डर से आतंकित हैं।

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COVID-19: भूख का समंदर और बदलती दुनिया के संकेत

देश की सभी सरकारों को चाहिए कि वे देश के सभी इंजन व इसके थक चुके कलपुर्जे, निजी हस्पतालों का फ़ौरन राष्ट्रीयकरण कर इस राष्ट्रीय आपदा के समय हुकूमत चुनाव प्रचार स्टाइल से बचकर टीम इण्डिया बनकर काम करें

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