बहुत पहले से तैयार हो रही थी मजदूरों के हित वाले ‘कानून के जंगल’ काटने की ज़मीन!
अपनी संवेदनहीनता के चरम पर जाते हुए कई राज्य सरकारों ने श्रम कानूनों को खत्म करने के अवसर के रूप में इस संकट का इस्तेमाल किया है
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अपनी संवेदनहीनता के चरम पर जाते हुए कई राज्य सरकारों ने श्रम कानूनों को खत्म करने के अवसर के रूप में इस संकट का इस्तेमाल किया है
Read Moreहर आने वाली सरकार ने श्रम कानूनों को लघु से लघुतर बनाया है. कार्यस्थलों पर सुरक्षा व्यवस्थाओं के अभाव में दुर्घटनाओं में मजदूरों का मरना बदस्तूर जारी है. बुनियादी सुविधाओं की मांग, हड़ताल, यूनियन, सब जैसे बीते जमाने की बातें हो गयीं. श्रमिक जीवन उतरोत्तर बदतर होता गया, लेकिन किसी सरकार या समाज के लिए यह कभी मुद्दा नहीं रहा.
Read Moreआजादी से पहले देश में हैजा, प्लेग, तावन, सूखा, बाढ़ जैसी आपदाएं अनेकों बार आई होंगी और लोग गांवों को छोड़कर दूसरे जगह जाकर बस गए होंगे और उसी के साथ गांव उजड़ते बसते रहते होंगे। अपने होश से आज तक, अपने पूर्वजों से या अगल-बगल के गांवों या कस्बों या शहरों में उपेक्षित भाव से किसी के बारे में प्रवासी या माइग्रेन्ट कहते नहीं सुना।
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