मंगलेश डबराल का घोंसला और लोक संस्कृति की मृत चिड़िया
मंगलेश जी के पास पहाड़ी राग से लेकर मारवा और भीमपलासी सब कुछ था। उनके पास बिस्मिल्लाह खान की शहनाई थी। उनके पास पहाड़ी लोकगीत थे। वे ‘नुकीली चीजों’ की सांस्कृतिक काट जानते थे लेकिन उनका सारा संस्कृतिबोध धरा का धरा रह गया क्योंकि उन्होंने न तो अपने पिता की दी हुई पुरानी टॉर्च जलायी, न ही दूसरों ने उनसे आग मांगी। वे बस देखते रहे और रीत गए। उन्होंने वही किया जो दूसरों ने उनसे करवाया। कविताओं में वे शिकायत करते रहे और बाहर मुस्कुराते रहे, सड़कों पर तानाशाह के खिलाफ कविताएं पढ़ते रहे।
Read More