चौरी चौरा के सरकारी पुनर्पाठ के ज़रिये गांधी और उनकी अहिंसा को खारिज करने की कवायदें

प्रधानमंत्री जी का यह भाषण और इस भाषण के बाद बुद्धिजीवी वर्ग में व्याप्त चुप्पी दोनों ही चिंताजनक हैं। हिंसा का आश्रय तो हम पहले से ही लेने लगे थे किंतु क्या अब यह स्थिति भी आ गई है कि हम सार्वजनिक रूप से अहिंसा को खारिज कर गौरवान्वित अनुभव करने लगेंगे? क्या प्रधानमंत्री आंदोलनरत किसानों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे चौरी चौरा की घटना को अपना रोल मॉडल मानें?

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