आर्टिकल 19: लड़ते-खपते किसान पर क्यों चुप हैं अपने-अपने मोहल्लों के भगवान?

इस देश के बौद्धिक और अभिजात्य तबकों की ढपोरशंखी को किसानों ने बेनकाब कर दिया है। उसकी उम्मीदों को सरकार, सत्ता, विपक्ष, लेखक, कलाकार, अध्यापक, चिंतक सबने मिलकर मारा है। इसलिए अब उसे न तो किसी से उम्मीद है और न ही किसी का इंतजार।

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