बात बोलेगी: मैं दुनिया के मेयार पर खरा नहीं उतरा, दुनिया मेरे मेयार पर खरी नहीं उतरी…

अदालत थोड़ा मुहज्ज़िब लहज़े में मुनव्वर से पूछती है कि ज़रा अपनी पेशानी पर बल डालो और याद करो कि देश में इतने मासूमों की लिंचिंग के बाद भी कभी ज़ी न्यूज़ का कोई पत्रकार हिन्दी के किसी ऐसे कवि से उसकी प्रतिक्रिया लेने गया जो मोहब्बत के, श्रृंगार के गीत रचता है? क्या हिंदी के छपास कवियों से उसने कभी यह पूछा कि आपके धर्म के एक बंदे ने सरेआम एक गरीब मुसलमान को जला दिया है, आपको क्या कहना है?

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बात बोलेगी: ‘टिकाऊ’ और ‘बिकाऊ’ बटमारों के दो लोकतांत्रिक शगल

बिहार पर बहुत बात हो रही है। लगभग एक तरह की ही बात हो रही है। बदलते मौसम की बात करना वैसे भी सबसे बड़ा शगल है हमारे समाज का। चुनाव के संदर्भ में यह शगल सत्‍ताधारी दल के बदलाव को लेकर है। इस बीच मध्य प्रदेश का उपचुनाव मेले के किसी कोने में लगी उस दुकान की तरह है जहां आम तौर पर सट्टेबाज बैठते हैं जिन पर ध्यान सबका रहता है पर वहां कोई जाता नहीं।

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बात बोलेगी: एक ‘सिविल सोसायटी’ के राज में दूसरे का ‘वध’ और तीसरे का मौन

अभी ये जो कानून आए हैं पंजीकृत नागरी समाज को नेस्तनाबूत करने के, वो आपको लग सकते हैं कि सरकार लायी है लेकिन असल बात ये है कि इन्हें यह अनसिविल सोसायटी लायी है ताकि सिविल सोसायटी का वध किया जा सके

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बात बोलेगी: इंस्पेक्टर मातादीन की वापसी उर्फ़ इंस्पेक्टर मातादीन रिटर्न्स

अगर लोग किसी दैवीय आपदा के कारण उत्पन्न हुए संकटकाल में अपने नोट बदलने के लिए बैंको की लाइन में खड़े हों और सरकार के खिलाफ कुछ बात मन में भी सोच रहे हों, तो ये जाकर उसकी गर्दन दबोच सकते हैं। इन्हें मतलब तत्काल या निकट भविष्य में होने वाले किसी भी क्राइम, विरोध और अभिव्यक्ति के खतरे को भाँप लेने की जबर्दस्त शक्ति मिल गयी है।

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बात बोलेगी: भारतेन्दु की बकरी से बाबरी की मौत तक गहराता न्याय-प्रक्रिया का अंधेरा

‘गिल्ट बाइ एसोसिएशन’ जैसे आज के दौर की एक मुख्य बात हो गयी है। दिल्ली में हुई हिंसा हो या भीमा कोरेगांव की हिंसा, दोनों में न्याय प्रक्रिया उसी प्रविधि का इस्तेमाल कर रही है जो उस राज्य में प्रचलित थी, जिसकी कहानी हमें भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने सुनायी थी।

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बात बोलेगी: महबूब की मेहंदी रंग लायी! मितरों… लख लख बधाई!

टाइम मैगजीन के संपादक ने खुद इनके बारे में लिखा है कि ‘’नरेंद्र मोदी ने सबको संदेह के घेरे में ला दिया है। मुसलमानों को निशाना बनाकर बहुलतावाद को नकारा है। महामारी उनके लिए असंतोष को दबाने का साधन बन गयी है और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतन्त्र और गहरे अंधेरे में चला गया है।‘’

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बात बोलेगी: झूठ की कोई इंतिहा नहीं…

भारत के संसदीय इतिहास में यह पहला संसदीय सत्र है जहां प्रश्नकाल नहीं है। यानी मौखिक रूप से कोई प्रश्न और बहस नहीं होगी। आप चाहें तो लिखित में दिये गये जवाबों से सच और झूठ का विच्छेदन करते रहिए, पर उससे कुछ हासिल नहीं होगा।

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बात बोलेगी: महापलायन की ‘चांदसी’ तक़रीरों के बीच फिर से खाली होते गाँव

लॉकडाउन की लंबी अवधि को पार करते हुए, अनलॉक की भी एक लंबी अवधि पूरी करने के बाद, आज सच्चाई ये है कि गाँव लौटे 100 में से 95 लोग शहरों और महानगरों की ओर लौट चुके हैं। उन्हें कोई मलाल नहीं है कि शहरों और महानगरों ने कैसी बेरुखी दिखलायी।

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बात बोलेगी: ‘प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया’ से ‘प्रतिक्रिया ही प्रतिक्रिया’ तक

जब तक खुजलाते रहोगे, मज़ा आएगा लेकिन जब सतह की चमड़ी उधड़ जाएगी तब पसीना भी कष्ट देगा। इस खुजली का शिकार हर वह नागरिक है जो तब भी चिंता कर रहा था और अब भी एक अलग तरह की प्रतिक्रिया का शिकार होते जा रहा है।

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बात बोलेगी: अगस्त धुआँ है, कोई आसमान थोड़ी है…!

मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी भी है जिसे घर में पालना जुर्म है पर यह बौद्धिक आतंक से भरी कानूनी जानकारी सोलह घंटों और छह परिधानों से सुसज्जित एक वीडियो के सामने खेत हो गयी। मोर को नयी पहचान मिली।

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