विज्ञान-विरोधी आग्रहों के दौर में एक वैज्ञानिक राजनेता जवाहरलाल नेहरू की याद


शमीम फरहद साहब ने यह नज्म उसी दिन लिखी थी जिस दिन नेहरूजी की मृत्यु हुई थी। ‘‘सत्ताईस मई” शीर्षक की इस नज़्म की कुछ मर्मस्पर्शी पंक्तियां हैं:

आज अहसासे-गम जियादा है,
शम्मे-खामोश में धुआं भी नहीं
इतना खाली-सा लग रहा है जहां,
जैसे अब सर पे आसमां भी नहीं
आज का दिन गुलाब पर बोझल,
आज बच्चों की मुस्कुराहट में
संजीदगी झलकती है

आज जब हम कोरोना के महान संकट के दौर से गुजर रहे हैं, तो जवाहरलाल नेहरू की याद आना स्वाभाविक है। मेरी राय में जवाहरलाल नेहरू एक महान क्रांतिकारी, एक लोकप्रिय राजनीतिज्ञ, एक सक्षम प्रशासक तो थे ही परंतु इसके साथ ही वे वैज्ञानिक भी थे। उनकी स्पष्ट राय थी कि आम आदमी में वैज्ञानिक समझ पैदा करना आवश्यक है।

“विज्ञान ही भूख, गरीबी, निरक्षरता, अस्वच्छता, अंधविश्वास और पुरानी दकियानूसी परंपराओं से मुक्ति दिला सकता है।’’ यह महत्वपूर्ण संदेश पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के दस वर्ष पूर्व एक भाषण के दौरान दिया था। आज जब कोरोना को परास्त करने के लिए वैज्ञानिक समझ की सबसे ज्यादा आवश्यकता है, ऐसे मौके पर अनेक लोग अंधविश्वास से भरपूर फार्मूलों के माध्यम से कोरोना से छुटकारा दिलाने का दावा कर रहे हैं। कई लोग कोरोना के टीके के बारे में भ्रामक बातें फैला रहे हैं। अभी हाल में (24 मई 2021) उज्जैन के पास एक गांव में एक टीकाकरण टीम पर कातिलाना हमला किया गया। हमला करने वाले लोगों की भीड़ में शामिल लोगों के मन में यह बात बिठा दी गई थी कि टीका लगाने से आदमी नपुंसक हो जाता है। कुछ लोग इस आस्था के साथ शरीर पर गोबर पोत रहे हैं कि इससे वे कोरोना के हमले से बच जाएंगे। एक सांसद यह दावा कर रही हैं कि उन्हें कोरोना का संक्रमण नहीं हो सकता क्योंकि वे गौमूत्र पीती हैं। कुछ सत्ताधारी राजनीतिज्ञों ने यह भी कहा कि गंगा नदी में नहाने से कोरोना का शिकार होने की संभावना समाप्त हो जाती है।

विज्ञान पर अविश्वास करने का अभियान उस समय पराकाष्ठा पर पहुंच गया जब बाबा रामदेव ने यह फतवा दे डाला कि एलोपैथी में कोई दम नहीं है। वह तो एक फालतू चिकित्सा पद्धति है।

नेहरूजी ने सत्ता संभालते ही विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने ऐसी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जिनमें उच्चतम वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा दी जा सके। संसद को संबोधित करते हुए नेहरूजी ने कहा था “हमारे देश में विज्ञान और तकनीकी की मजबूत नींव डाली जा चुकी है।’’ नेहरूजी ने अपने भाषण में  कहा कि “देश के विकास में तकनीक और विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका है’’। सन् 1958 के मार्च में नेहरूजी ने संसद में विज्ञान नीति संबंधी प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव के माध्यम से नेहरूजी ने घोषणा की कि “विज्ञान की हमारे देश के नागरिकों के उन्नयन में  महत्वपूर्ण भूमिका है”। नेहरूजी ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि विज्ञान की हमारे जीवन, हमारे नजरिये, हमारे सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में और उनसे जुड़े संस्थानों में महत्वपूर्ण भूमिका है। विज्ञान को हम सिर्फ प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रख सकते। निरक्षरता और अंधविश्वास आज भी हमें जकड़े हुए हैं। इनसे मुक्ति पाने में विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका है।

विज्ञान एक ऐसी विद्या है जिसके माध्यम से हम उन शक्तियों का निर्माण करते हैं जिनसे चतुर्दिक विकास संभव होता है। आधुनिक विज्ञान उन तमाम समस्याओं का हल ढूंढ़ता है जो इंसान के विकास में बाधक हैं। मानव अपने आप में प्रकृति की एक अद्भुत रचना है। विज्ञान के माध्यम से ही हमें इस अद्भुत रचना के रहस्य हमें पता लगते हैं।

नेहरूजी कि अनुसार आधुनिक विज्ञान के तीन महत्वपूर्ण पहलू हैं- साधारण सिद्धांत, उन सिद्धांतों पर आधारित योजनाएं और योजनाओं के परिणाम। नेहरू कहा करते थे कि विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण आयाम है खोज व अनुसंधान। अनुसंधान के माध्यम से ही हम उन कमियों को पहचानते हैं जिनकी वजह से हम विकास के रास्ते पर नहीं बढ़ पाये हैं।

उनका कहना था कि विज्ञान के सहारे ही हम उस वातावरण से मुक्ति पा सकते हैं जिसने धर्म के आधार पर हमारे विकास के रास्ते को रोककर रखा है। जब यूरोप में गैलिलियो, न्यूटन, केप्लर आदि वैज्ञानिक प्रकृति के महान रहस्यों को उद्घाटित कर रहे थे और उसके सहारे जब उन्होंने इंसान के लिए अनेक रास्ते सुझाये उस समय हमारे देश के बुद्धिजीवी मनु आदि के रहस्यों में उलझे हुए थे। उसके कारण हमारा सामाजिक व्यवहार भी प्रभावित हुआ। हमारे बुद्धिजीवियों ने अपना समय गैर-वैज्ञानिक गतिविधियों में बर्बाद किया और कर्मकांड में इतने अधिक उलझ गए कि हम देश की बुनियादी समस्याओं को न तो समझ पाए और ना ही सुलझा पाए।

वैसे यह संतोष की बात है कि इस तरह की प्रवृत्ति से मुक्ति दिलाने में कुछ महान पुरूषों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इनमें राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानंद और गांधीजी शामिल हैं। हमें इनके प्रयासों को आगे बढ़ाना है। नेहरूजी की मान्यता थी कि हम प्रकृति के रहस्यों को समझने का जितना ज्यादा प्रयास करेंगे उतने ही हम अंधविश्वास के चंगुल से मुक्त होते जाएंगे। एक समय ऐसा था जब कृषि, भोजन, वस्त्र, सामाजिक रिश्ते सब धर्म के मुताबिक ही निर्धारित एवं संचालित होते थे। परंतु धीरे-धीरे इससे मुक्ति मिली और अब ये सब वैज्ञानिक नजरिए से संचालित होते हैं। यही आज के विश्व की महानता है। नेहरूजी के इन विचारों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि वे राजनीतिज्ञ कम और वैज्ञानिक ज्यादा थे और विज्ञान के प्रति उनकी इसी प्रतिबद्धता के कारण देश प्रगति के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ सका। हमें चाहिए कि हम उनके द्वारा बताए गए रास्ते पर पूरी मुस्तैदी से चलें।



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