सबके लिए स्वास्थ्य: विश्व स्वास्थ्य दिवस पर WHO के चार दशक पुराने घिसे-पिटे जुमले का सच

विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ का संकल्प “सबके लिए स्वास्थ्य” सुनने में अच्छा लगता है और महसूस होता है कि संस्थाएं हमारी सेहत के लिए वास्तव में बहुत चिंतित हैं लेकिन यथार्थ है कि वैश्वीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के दौर में यह विशुद्ध छलावा है।

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महामारियों के दौर में रूप बदलते वायरस: H3N2 और H1N1 का ताजा खतरा

वायरसों से संबंधित दो बहुत ही समान शब्द ‘‘एन्टीजन ड्रिफ्ट’’ तथा ‘‘एन्टीजन शिफ्ट’’ अक्सर सुनने में आते हैं। एन्टीजन ड्रिफ्ट को एलील ड्रिफ्ट भी कहते हैं। यह एक प्रकार की आनुवंशिक भिन्नता है। इस गुण की वजह से यह वायरस प्रतिरक्षित आबादी में भी फैल जाता है। इन्फ्लूएन्जा ए तथा इन्फ्लूएन्जा बी ये दोनों वायरस एन्टीजन ड्रिफ्ट की वजह से घातक माने जाते हैं। इसलिए इससे बचाव के टीके भी प्रामाणिक रूप से नहीं बन पाए हैं।

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राजस्थान ने शुरू की स्कूली बस्ते का बोझ कम करने की पहल

एसोचैम की स्वास्थ्य देखभाल समिति के तहत कराए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि सात से तेरह वर्ष की आयु वर्ग के 88 प्रतिशत विद्यार्थी ऐसे हैं, जो अपनी पीठ पर अपने वज़न का लगभग आधा भार ढोते हैं।

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यूपी में भाजपा के सियासी समीकरण की रोशनी में ‘नेताजी’ को मिला पद्म विभूषण

मोदी सरकार द्वारा मुलायम सिंह को सम्मानित करने का भले ही भाजपा को तत्काल कोई फायदा नहीं मिले, लेकिन अखिलेश यादव और समूची सपा द्वारा जिस तरह से इस सम्मान पर एक सतही विरोध दिखाया गया उसने मुसलमानों में भाजपा के खिलाफ सपा के रवैये पर एक और आशंका जरूर पैदा की है।

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जन आंदोलन के कारण परियोजना रद्द होने की नजीर इस देश में बहुत लंबी है

किसानों ने आजमगढ़ में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के औचित्य पर सवाल खड़ा किया है। चार महीने आंदोलन चलने के बाद जिला प्रशासन से हुई वार्ता में जिलाधिकारी ने आंदोलन के नेतृत्‍व से सवाल पूछा है कि वे कैसे तय कर सकते हैं कि यहां हवाई अड्डा नहीं बनेगा। आइए, हम देखें कि देश में कहां-कहां लोगों ने विनाशकारी परियोजनाओं से अपने आंदोलन के बल पर मुक्ति पाई है।

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बारपेटा से लखनऊ के बीच पेट की आग में जलता बचपन और भटकती जिंदगी

2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते जातीय भेदभाव के बाद अब तक करीब 90,000 से अधिक लोग बारपेटा से लखनऊ विस्थापित हो चुके हैं, हालांकि यहां वह पूर्वाग्रहों और जातीय संघर्षों से तो बच गए परंतु शहरों में भेदभाव के नए रूप खुल गए हैं।

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न्यूजरूम में बॉट: भविष्य की पत्रकारिता का एक अपरिहार्य दु:स्वप्न

अभी न्यूज़रूम में बॉट्स ने इंसानों को पूरी तरह से रिप्लेस नहीं किया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के नये अवतार चैटजीपीटी के आजार में आने के बाद कहा जा रहा है कि सबसे बड़ा खतरा इससे पत्रकारों को होगा। सबसे ज्यादा नौकरी पत्रकारों की ही जाने वाली है।

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यह तुलसीदास का पुनर्पाठ है या आत्महीनता से उपजा कुपाठ?

समस्या यह है कि गंगोत्री से चली गंगा को हम लोग कानपुर, प्रयागराज, पटना इत्यादि तमाम शहरों की भयंकर गंदगी से लैस कर देते हैं और फिर उसी पानी को निकालकर कहते हैं कि देखो जी, गंगा तो गंदी है।

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खेतिहर समाज में असंतोष को बढ़ाएगा बजट में किसानों के साथ किया गया छल

बजट में कृषि मद में पिछले वर्षों की अपेक्षा अबकी बार अधिक प्रावधान किये जाने की उम्मीद थी जिससे सरकार द्वारा 2016 में किये गए किसानों की आय को 2022 तक दुगना करने के वायदे को सार्थक किया जा सकता था, लेकिन इसके विपरीत कई कटौतियां कर दी गयीं।

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