जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सबसे महत्वाकांक्षी सरकारी योजनाओं में से एक, यूरोपीय संघ की ग्रीन डील साल 2050 तक यूरोपीय देशों के इस समूह की अर्थव्यवस्था को नेट ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से बनी नीतियों का एक सेट है। यह अपनी तरह की एक अनूठी और पहली पहल है। लेकिन किसी भी ऐसे महत्वकांक्षी लक्ष्य की ओर पहली बार बढ़ना आसान नहीं। आसान इसलिए नहीं क्योंकि सब कुछ नया और पहली बार होगा।
इसका सबसे शुरूआती असर होगा कि यूरोपीय संघ के देशों में उत्सर्जन-कम करने वाले नियमों के अधीन उत्पादित सामान बाकी उत्पादकों के मुकाबले महंगा होगा। अब इससे यूरोपीय संघ के देश अपने वैश्विक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ कम प्रतिस्पर्धी बन जायेंगे।
अब इस समस्या से निपटने के लिए यूरोपीय संघ के नीति निर्माता कार्बन-सघन वस्तुओं के आयात को दंडित करने का एक तरीका तैयार कर रहे हैं। इसका नाम है कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) और इसे लेकर हर तरफ चर्चाओं का बाज़ार गरम है। जहाँ एक तरफ़ यूरोपीय संघ अपनी कार्बन डील की रणनीति के अभिन्न अंग के रूप में इस कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को देखता है, क्योंकि इसकी मदद से वो पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों के तहत 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करना चाहता है, वहीँ एक नज़रिया यह भी है कि यह नियम एक तरह का संरक्षणवाद है जिससे व्यापार के लिए सभी को बराबर मौका नहीं मिलेगा।
इसी क्रम में, यूरोपीय आयोग के CBAM को लेकर संसदीय प्रस्ताव के आने के कुछ महीने पहले कुछ अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ इस मुद्दे पर अपनी राय प्रकट करने एक साथ, एक वर्चुअल बैठक के ज़रिये सामने आये।
इंस्टीट्यूट जैक्स डेलर्स की महानिदेशक और उपाध्यक्ष, जिनेविव पोन्स, ने चर्चा को दिशा देते हुए कहा-
“यूरोपीय संघ ने अपने लिए एक कठिन और महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए और वैश्विक तापमान की बढ़त को सीमित करने के लिए CABM बेहद आवश्यक है।”
लेकिन इसकी जटिलता को सुलझाने के लिए उन्होंने “कूटनीति, संवाद और तरीके” का ज़िक्र किया। उन्होंने संरक्षणवाद के मुद्दे का जवाब देते हुए कहा कि-
“हमें निष्पक्ष रहना होगा और सभी देशों के साथ सम्मानपूर्वक डील करना होगा। साथ ही, हमें CABM से प्राप्त राजस्व का प्रयोग भी सही तरीके से करना होगा।”
चर्चा को आगे बढाते हुए, विश्व व्यापार संगठन के पूर्व महानिदेशक और व्यापार के लिए पूर्व यूरोपीय आयुक्त, पास्कल लैमी ने कहा-
“स्वीकार्य होने के लिए CABM को विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अनुकूल होना चाहिए। भेदभाव ण करना डब्ल्यूटीओ का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है और CBAM को इसके अनुरूप होना चाहिए जिससे सभी व्यापारिक दलों का सम्मान मिले। घरेलू उत्पादन और विदेशी उत्पादन के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसा न होने से सबको बराबर मौका नहीं मिलेगा। CABM जैसी प्रणाली का जांचा परखा होना बेहद ज़रूरी है क्योंकि ऐसा करने से भेदभाव होने का संदेह हट जायेगा। CBAM का अंततः उद्देश्य है पर्यावरण की रक्षा करना और इस उद्देश्य का सम्मान सब को करना चाहिए।”
वहीं ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईवी) के संस्थापक-सीईओ अरुणाभ घोष ने जलवायु महत्वाकांक्षा, विश्वास, और सहयोग पर जोर दिया। CABAM को लेकर अपनी आशंकाएं रखते हुए अरुणाभ ने कहा-
“फ़िलहाल नेट ज़ीरो होने की सतत राह पर चलने के लिए करने को बहुत कुछ बाकी है। और किसी मानक कार्यप्रणाली के बिना इस नयी व्यवस्था को लागू करना गंभीर चुनौतियां पैदा करेगा।” इसका एक और महत्वपूर्ण पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा, “हमें ये भी सोचना है कि इससे जुड़े विवादों का हल कैसे होगा।” अपनी बात खत्म करते हुए उन्होंने कहा, “इस सब के बीच प्राइवेट सेक्टर के बीच संवाद होना बेहद ज़रूरी है क्योंकि सिर्फ सरकारों के संवाद से कुछ नहीं होगा।”
लेकिन इस पालिसी की टाइमिंग को एक हाथ सही ठहराते हुए, हॉफमैन सेंटर फॉर सस्टेनेबल रिसोर्स इकोनॉमी की बेर्निस ली ने इसकी समीक्षा करते हुए कहा कि-
“इस प्रणाली के कार्यान्वयन की लागत पर विचार करने की आवश्यकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि हम जलवायु नीतियों की अखंडता की रक्षा करना चाहते हैं और इसके लिए व्यापार और निवेश को जलवायु परिवर्तन नीतियों के अनुकूल होना होगा। CBAM सिर्फ एक शुरुआत है।”
(क्लाइमेट कहानी के सौजन्य से)