कैसे किया जाए EVM पर भरोसा?


इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) कई मतदाताओं के लिए अब भी एक अबूझ पहेली बनी हुई है। खासकर 2019 के आम चुनाव में एकतरफा परिणाम आने के बाद एक अफवाह ने काफी जोर पकड़ा कि चाहे आप कोई भी बटन दबाओ, वोट भारतीय जनता पार्टी को ही जाएगा। ईवीएम के पक्ष में बोलने वालों का कहना है कि यदि ऐसा होता तो फिर कुछ राज्यों में विपक्षी दल कैसे चुनाव जीत गए।

भारतीय निर्वाचन आयोग की एक व्यवस्था है कि मतदान शुरू होने से एक घंटा पहले निर्वाचन अधिकारी हरेक ईवीएम पर 50 मत डाल कर या विभिन्न उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों से डलवाकर यह सुनिश्चित करेंगे कि मशीन ठीक से काम कर रही है। एक ईवीएम पर अधिकतम 16 उम्मीदवारों के नाम होते हैं। इनमें आखिरी में दर्ज होने वाला नोटा यानी किसी प्रत्याशी को मत न देने का भी विकल्प शामिल है। इस तरह प्रत्येक उम्मीवार व नोटा को कम से कम तीन मत डाल कर मशीन की जांच की जा सकती है। इस पर भी कुछ शक करने वाले लोग कहते हैं कि मशीन को इस तरह से बनाया जा सकता है कि शुरू के मत ठीक से दर्ज हों लेकिन बाद में पड़ने वाले मतों में हेराफेरी की जाए।

मतदान समाप्त होने के बाद भारतीय निर्वाचन आयोग की एक व्यवस्था यह भी है कि प्रत्येक उम्मीदवार के प्रतिनिधि को फॉर्म 17सी पर यह जानकारी दी जाए कि कितने मत डाले गए ताकि गिनती वाले दिन यह देखा जा सके कि मतगणना में भी उतने ही मत निकलें।

इसके अलावा ईवीएम को मतदान के पहले व बाद में मतगणना के दिन तक कड़ी सुरक्षा में रखा जाता है और विभिन्न उम्मीदवारों के प्रतिनिधि भी तालों व सील पर अपने हस्ताक्षर कर सकते हैं ताकि ईवीएम के साथ कोई छेड़छाड़ न हो यह सुनिश्चित किया जा सके।

ईवीएम पर लोगों का भरोसा हो इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक व्यवस्था की है कि हरेक विधानसभा चुनाव क्षेत्र में पांच मतदान केन्द्रों के ईवीएम के साथ लगे वी.वी.पी.ए.टी. या वीवीपैट से निकली कागज की, पर्ची जिस पर मतदाता द्वारा दिया गया मत अंकित होता है, की भी गिनती कर उसका ईवीएम पर दर्ज मतों की संख्या के साथ मिलान कर लिया जाए। कुछ लोगों का कहना है कि जहां सैकड़ों मतदान केन्द्र हों उनमें से सिर्फ पांच केन्द्रों की इस प्रकार की जांच पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा सच्चाई यह है कि जिन पांच केन्द्रों की वीवीपैट पर्चियों की गणना होती है उनमें भी वीवीपैट पर्चियों की गिनती पूरी होने से पहले ही सिर्फ ईवीएम में दर्ज मतों की संख्या के आधार पर परिणाम घोषित हो जाते हैं। यानी अभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती को कोई महत्व नहीं दिया जाता जबकि निर्वाचन का संचालन (संशोधन) नियम 2013 के नियम 56 डी(4) के अनुसार दोनों गिनतियों में कोई अंतर पाए जाने की स्थिति में वीवीपैट पर्चियों की गिनती को ईवीएम द्वारा गिने हुए मतों पर तरजीह दी जाएगी। यानी वीवीपैट पर्चियों की प्रामणिकता ईवीएम से ज्यादा मानी जा रही है। इसलिए भी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के हित में 100 प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों की गिनती जरूरी है। 

अतः अब यह मांग उठ रही है कि हरेक डाले गए मत की वीवीपैट पर्चियां निकाली जाएं और 100 प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों की गिनती की जाए। सवाल यह उठेगा कि यदि 100 प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों की गिनती ही होनी है तो यह तो वही हो गया जैसे ईवीएम आने से पहले मतपत्रों की गिनती होती थी। फिर ईवीएम की जरूरत ही क्या है?

चूंकि ईवीएम एक प्रौद्योगिकीय विकास का द्योतक है इसलिए इसे प्रगति की निशानी माना जाता है। जब कम्प्यूटर आए थे तो शुरू में उनका भी विरोध हुआ क्योंकि उनसे रोजगार छिनने का खतरा था। आज हम बिना कम्प्यूटर के जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते। अतः इसकी सम्भावना तो कम ही है कि भारतीय चुनाव आयोग ईवीएम छोड़ कर वापस मतपत्र वाले दिनों में लौटेगा, हालांकि दुनिया के कुछ देश जैसे जर्मनी, नीदरलैण्ड, परागुए, आयरलैण्ड ने ईवीएम छोड़कर मतपत्रों की प्रणाली को पुनः अपनाया है। 

वीवीपैट पर्चियों की गिनती का मिलान ईवीएम पर दर्ज मतों की संख्या से कर हम निश्चिंत हो जाएंगे कि वाकई में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई है क्योंकि यह भी एक सच्चाई है कि मतपत्रों में भी हेराफेरी होती थी। इसलिए ईवीएम की गिनती हमारे भरोसे को पुष्ट करेगी।

कुछ लोग 100 प्रतिशत वीवीपैट स्लिप की गिनती के पक्ष में इसलिए नहीं हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें समय लगेगा और चुनाव परिणाम घोषित होने में देरी लगेगी, किंतु पुराने दिनों को याद करें तो मतपत्रों की गिनती शुरू होने के 24 घंटों के भीतर ही ज्यादातर परिणाम आ जाते थे। अतः हम यह मान सकते हैं कि वीवीपैट स्लिप की गिनती में भी इससे ज्यादा समय नहीं लगेगा।

ईवीएम इस लोकतांत्रिक सिद्धांत पर खरा नहीं उतरता है कि हर मतदाता को यह सीधी जानकारी मिले (और उसकी क्षमता में हो कि वह इसकी पुष्टि कर सके) कि उसका वोट वहीं पड़ा है जहां वह चाहता/चाहती है, जहां पड़ा वहीं दर्ज हुआ और जैसा दर्ज हुआ वैसा ही गिना गया।

भूतपूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस.वाई. क़ुरैशी, जिनके कार्यकाल में ही वीवीपैट लागू किया गया था, ने भी यह सुझाव दिया है- “हर वीवीपैट पर्ची को गिनना ज़रूरी है। ऐसा करने से जो लोग मतपत्र वाली प्रणाली पर वापस लौटने की बात करते हैं वह भी शांत हो जाएंगे। वीवीपैट पर्चियों की गिनती मतपत्र जैसी ही होगी, वीवीपैट पर्ची में सिर्फ़ एक प्रत्याशी का नाम दर्ज होता है जबकि मतपत्र में सभी प्रत्याशियों के नाम रहते थे। अंततः कोई बहुत फ़र्क़ नहीं पड़ता कि हम ईवीएम या वीवीपैट पर्चियों की गणना करें परंतु यदि हम इस प्रक्रिया को पलट दें जिसमें प्राथमिकता वीवीपैट पर्ची की गणना को दी जाए तो पारदर्शिता भी बढ़ेगी और चुनाव पर लोगों का भरोसा भी बढ़ेगा।“

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324(1) ने भारतीय निर्वाचन आयोग को यह शक्ति दी है कि वह निर्णय ले सके जिससे हर चुनाव (संसदीय, राज्य चुनाव, राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव) की ज़िम्मेदारी का पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से निर्वाह हो सके। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में भी इस बात को कहा गया है कि अनुच्छेद 324 वह शक्ति का स्रोत है जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव समयबद्ध तरीक़े से हो सकें। सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक सम्बंधित मामलों में यह कहा है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हमारे संविधान का एक मौलिक पहलू है।


(संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव हैं व एम.जी. देवसहायम पीपुल फर्स्ट मूवमेण्ट के अध्यक्ष व भारतीय प्रशासनिक सेवानिवृत अधिकारी हैं।)


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