COVID-19 लॉकडाउन का एक साल पूरा होने पर मानव समाज के लिए एक घोषणापत्र


कोविड-19 के संकट ने “वैश्विक स्वास्थ्य” मिथक की पोल खोल दी है। कहीं कोई वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र नहीं है, और न कभी था। इस वैश्विक महामारी ने फ़ार्मास्यूटिकल-परोपकारी संकुल से उसके बहुपक्षवाद का मुखौटा नोच फेंकते हुए एक ऐसे व्यवस्थातंत्र को उजागर कर दिया है जो और किसी भी राष्ट्र से पहले धनिक राष्ट्रों की सेवा करता है और निजी मुनाफे को सार्वजनिक स्वास्थ्य से ऊपर रखता है। ऐसे में हमें इस वैश्विक पेंडेमिक की वार्षिकी को “वैश्विक स्वास्थ्य” के मिथक को पुनर्जीवन प्रदान करने रूप में बिल्कुल भी नहीं मनाना चाहिए। हमें एक ऐसे तंत्र का निर्माण करना चाहिए जो सचमुच यह (वैश्विक स्वास्थ्य) सम्भव कर सकता हो।

पेंडेमिक के प्रारम्भ होते ही इस शक्तिशाली मिथक की आधारशिलाएं चूर-चूर हो गयीं। ट्रम्प प्रशासन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से बाहर हो गया और इसके सहयोगियों ने इस वायरस के प्रसार की रोकथाम की तैयारी करने के बजाय नस्लवादी, अंधराष्ट्रवादी-ओरिएंटलिस्ट भावनाओं को हवा देना शुरू कर दिया। कुछ ही महीनों के अंदर, मुट्ठी भर धनिक राष्ट्रों ने हर संभव विद्यमान वैक्सीन सम्भावनाओं की जमाख़ोरी करते हुए विश्व की आधे से ज़्यादा आपूर्ति अपने पास जमा कर ली। इसी बीच उन्होंने इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (IPRs) के पक्ष में भी मतदान कर दिया जिससे बाकी दुनिया इससे वंचित रह जाए।

इस तथाकथित वैश्विक स्वास्थ्य तंत्र की संस्थानिक संरचना ने तत्काल ऐसे राष्ट्रवादी हितों के समक्ष समर्पण कर दिया – वैश्विक स्वास्थ्य सांगठनिकताओं, जिनकी दो तिहाई के मुख्यालय अमेरिका, यूके और स्विट्जरलैंड में स्थित हैं, से लेकर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं तक सभी क़र्ज़ प्राप्तकर्ता राष्ट्रों के अस्तित्व के अधिकार के ऊपर कर्जदाता देशों के ब्याज वसूली के अधिकार को संरक्षित करने के लिए गोलबंद हो गयीं।

यहाँ तक कि परोपकारी-दानकर्ताओं ने भी – जिन्होंने वैश्विक स्वास्थ्य मिथक के निर्माण में रात-दिन एक कर दिया था – वैक्सीन तकनीक को दुनिया के साथ साझा करने के बजाय इसके निजीकरण की वकालत करते हुए- इस प्रक्रिया में अपनी भरपूर भूमिका निभाई।

अब ये संस्थाएं पेंडेमिक घोषणा की वार्षिकी को वैश्विक स्वास्थ्य के भविष्य के बारे में बहस के साथ जोड़ रही हैं – वित्तीय सुधार, आविष्कार लागत, और ऐसी तमाम चीजों को शामिल करते हुए। मगर हम ऐसी किसी भी व्यवस्था को नहीं बचा सकते, जिसका अस्तित्व ही नहीं है।

इसके बजाय, हमें निश्चित रूप से एक बार फिर स्वास्थ्य बहस के केंद्रीय प्रश्न की ओर लौटना होगा: हम मानव जीवन की रक्षा किस तरह से कर सकते हैं? हम उस स्वास्थ्य-विभेद का प्रतिरोध किस तरह से कर सकते हैं जो गरीबों को बहिष्कृत करते हुए अमीरों के जीवन की रक्षा करता है? हम एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण कैसे कर सकते हैं जो उस प्रेम और देखभाल को प्राथमिकता देती हो जिसकी हमें एक-दूसरे को जीवित रखने के लिए नितांत आवश्यकता है?

प्रोग्रेसिव इंटरनेशनल के कोविड-19 प्रतिषेध समूह (कोविड 19 रिस्पॉन्स ग्रुप) ने विश्व भर से विद्वान-विशेषज्ञों, कार्यकर्ताओं और व्यवहारकर्ताओं का संयोजन करते हुए एक नये “मेनिफेस्टो फॉर लाइफ” में कतिपय सिद्धांतो का प्रस्ताव किया है।

पहला, कोविड-19 के लिये आम जन वैक्सीन, जब तक कि यह फैलता, बहुगुणित (म्यूटेट) होता हुआ गतिशील रहता है। कोई भी राष्ट्र अकेले पेंडेमिक का अंत नहीं कर सकता; विश्व में कहीं भी कोविड-19 की मौजूदगी सारी जगहों के जन स्वास्थ्य के लिए ख़तरा है। सचमुच में वैश्विक स्वास्थ्य की अवधारणा पर आधारित व्यवस्थातंत्र समूचे विश्व में कोविड-19 वैक्सीन की पूरी जानकारी और तकनीकी की खुली उपलब्धता के साथ हर जगह उत्पादन सुविधाओं-अधिसंरचना के निर्माण की गारंटी करेगा।

दूसरा, एक ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन, जो सचमुच विश्व के स्वास्थ्य के लिए काम कर सके। धनिक राष्ट्रों और निजी वित्तपोषकों (फ़ंडर्स) के निहित हितों और बड़े वित्तीय संस्थानो की ग़लत प्रस्थापनाओं-नुस्खों के चलते वर्तमान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अवरुद्ध और बाधित है। समय आ गया है कि डब्ल्यूएचओ को इन बाधाओं से मुक्त किया जाए। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि राष्ट्रों से परे (सुप्रा नेशनल) किसी ऐसे प्राधिकार का निर्माण किया जाए जो उन सरकारों के प्रति उत्तरदायी न हो जिनकी सेवा के लिए यह बनाया गया हो। इसके विपरीत, इसका अर्थ डब्ल्यूएचओ की मूल प्रस्थापना और वादे – बहुपक्षीय प्रशासन (मल्टीलेटरल गवर्नेंस) को साकार करना है। विश्व स्वास्थ्य पर केंद्रित डब्ल्यूएचओ ऐसे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्रों के निर्माण पर केंद्रित करेगा जो आत्म-निर्धारण (self-determination) के सिद्धांत को संकुचित-विनष्ट करने के बजाय उसे विकसित- विस्तारित करे।

तीसरा, निजी पूंजी को अनिवार्य रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य के मातहत करना होगा। “बड़े फार्मा” का एकमात्र-सीधा सा उद्देश्य बीमार होने वाले लोगों से मुनाफा वसूली करना है। जीवन के अधिकार को बाजार का माल बना कर चंद लोगों की विलासिता के रूप में बेचा जा रहा है। जीवन के वैश्विक अधिकार को प्रतिष्ठित करने के लिए, हमें निश्चित रूप से विद्यमान उपलब्धता के निजी केंद्रीकरण से हट कर उसे सार्वजनिक में बदलते हुए मुफ़्त और सार्वभौम स्वास्थ्य देखभाल के सिद्धांत से शुरुआत करनी होगी।

चौथा, मानव जीवन सौदेबाजी की चीज़ नहीं है। हमें एक ऐसे “वैश्विक स्वास्थ्य” तंत्र में विश्वास रखने के लिये कहा जाता है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को भू-राजनीतिक लाभ का एक श्रोत-साधन मानता है। पेंडेमिक ने स्पष्ट दिखा दिया है कि स्वास्थ्य को “राष्ट्रीय सुरक्षा” के चश्मे से देखना उपाय के बजाय पुलिसगिरी और सहयोग के बजाय आक्रामकता की ओर ले जाता है। सच्चा वैश्विक स्वास्थ्य तंत्र सार्वजनिक स्वास्थ्य की आपात आकस्मिकताओं की प्रतिक्रिया में मेडिकल बंदियों (sanctions) और सुरक्षाबलों के लगाये जाने की नीति और व्यवहार का अंत करेगा।

और अंत में, हमारी देखभाल करने वालों के लिए गर्व और सम्मानपूर्ण स्थान। “अनिवार्य” (essential) सेवाकर्मियों की हीरो के रूप में सराहना की जाती है, लेकिन व्यवहार में उनका अमानवीकरण किया जाता है: कम वेतन और काम के बोझ का अतिरेक और प्रायः वर्कर के रूप में किसी भी अधिकार अथवा सामाजिक सुरक्षा-संरक्षा लाभ से वंचित। स्वास्थ्यकर्मियों को अनिवार्य रूप से प्रशिक्षित, सुरक्षित रखते हुए उन्हें पूरा भुगतान किया जाना चाहिए और इसी के साथ अपने श्रम को देने अथवा नहीं देने के उनके अधिकार का पूरा सम्मान किया जाना चाहिए।

वैश्विक महामारी-पेंडेमिक के एक साल हो चुकने पर यह समझ लेना आसान है कि सब कुछ बदल चुका है, लेकिन कुछ नहीं बदला है और इसे बदलना ही होगा। हम अभी भी उसी “वैश्विक स्वास्थ्य” तंत्र के नियमों से जी रहे हैं जिसका अस्तित्व ही नहीं है और हमें ऐसे स्वास्थ्य तंत्र के निर्माण से रोक रहे हैं जो सचमुच में काम करता हो।

विकल्प केवल दो ही हैं। एक रास्ता हमें पीछे, उपेक्षा के ग्रह की ओर ले जाता है, जहां धनिक ग़रीबों के शरीरों से खुद को सुरक्षित रखते हैं। यही कहानी चलन में है।

दूसरा रास्ता जीवन की ओर ले जाता है। कोविड-19 की वार्षिकी पर यही वह रास्ता है जिसे हम सब ने चुना है।

हस्‍ताक्षरकर्ता:

नोम चॉम्‍सकी
ऑरिया करोलिना डी फ्रेटा ई सिल्‍वा
वेनेसा नकाते
निम्‍मो बेसी
एलिज़ाबेथ विक्‍टोरिया गोमेज़ अलकोर्टा


प्रोग्रेसिव इंटरनेशनल से साभार प्रकाशितअनुवादक- विनोद कुमार सिंह और सूर्यकांत सिंह


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