यूपी बोर्ड की इंटरमीडिएट परीक्षा का एक पेपर ‘आउट’ हो गया। पेपर आउट की सूचना जिस पत्रकार ने दी, उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया। पत्रकार का दोष था कि उसने सरकार द्वारा बाँधे गए ईमानदारी के बाँध में हुए एक और लीक की सूचना सार्वजनिक कर दी। सरकार की ईमानदारी का मान और अपना इकबाल सुरक्षित रखने के लिए पुलिस को पत्रकार के खिलाफ सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने वाली धाराओं में मुकदमा दर्ज करना पड़ा। हो सकता है, खुश होकर सरकार प्रोन्नत कर दे। किसी लीकेज पॉइंट पर तैनात कर दे- इधर जो देखे, उसकी आँख में संगीन भोंक देना!
“प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक छुट्टा पशु पकड़ेंगे”
एक जिले की ये भी एक सूचना है। मास्टर जी, आपके ऊपर पहले से कई शिक्षणेतर जिम्मेदारियाँ हैं। अब आप जान लीजिए कि अगर आपने उन शिक्षणेतर कार्यों के अतिरिक्त अपना मूल कार्य शिक्षा देना शुरू किया तो आप सरकारी कार्य में बाधा पहुँचाने के आरोपी बना दिये जाएंगे। सरकार चाहती है कि सरकारी विद्यालयों में शिक्षा न दी जाए। सरकारी विद्यालय बंद होंगे, तभी तो उस संस्कृति का विकास होगा, जिसके विकास के लिए डबल इंजन की सरकार काम के घंटे बढ़ाती जा रही है। पहले अट्ठारह घंटे। फिर बीस घंटे। चौबीस घंटे के लिए प्रयासरत है। ईमानदारी के सभी लीकेज पॉइंट पर चौकीदार तैनात कर देने के बाद कार्य की अवधि चौबीस घंटा हो जाएगी।
मास्टर जी, एक बात बताइए- आपको शिक्षणेतर कार्य देने की शुरुआत कब हुई थी? सरकारी विद्यालय को जाहिल बनाने की शुरुआत कब हुई थी?
मास्टर जी, मिड डे मील प्राथमिक शिक्षा का बलात्कार करने के बाद दिया गया मुआवजा है।
मास्टर जी, आपने ही मुझे प्राथमिक शिक्षा दी है। अब गुरुदक्षिणा देने का समय आ गया है। आपको उपाय बताता हूँ। छुट्टा पशु पकड़ने में समय बचेगा।
मास्टर जी, आपके विद्यालय के अंतर्गत आने वाले सभी छुट्टा पशुओं की फोटो लीजिए। उनका नामकरण कर दीजिए। नामकरण सत्ताधारी पार्टी के विधायकों के नाम के अनुसार करिएगा। बड़े डील-डौल वाले छुट्टा पशुओं के नाम कैबिनेट मंत्रियों के नाम के अनुसार रखिएगा। किसी एक का नाम केंद्र में एक राज्य मंत्री के नाम पर भी रख सकते हैं। पहले भली-भाँति परख लीजिएगा। जो सबसे अधिक उत्पाती हो, जो फसल चरने के साथ किसानों को अपनी खुर के टायरों से रौंदता भी हो, उसका नाम केंद्र वाले राज्य मंत्री के नाम पर रख सकते हैं।
मास्टर जी, छुट्टा पशुओं की फोटो लेकर नजदीकी पुलिस स्टेशन चले जाइएगा। पुलिस को फोटो दिखाते हुए बताइएगा- माननीय मंत्री जी हमारी पकड़ में नहीं आ रहे हैं। इनके खिलाफ सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने का प्रकरण दर्ज किया जाए।
मास्टर जी, मरियल से दीखने वाले छुट्टा पशुओं का नाम विपक्षी विधायकों के नाम पर रखिएगा। उनकी शिकायत आप ईडी और सीबीआई से कर सकते हैं।
मास्टर जी, हो सकता है कुछ ऐसे भी मिलें, जो अलग सुर में रम्भा रहे हों। लीक छोड़ कर चल रहे हों। उनका सुर न पक्ष से मिलता हो, न विपक्ष से। उनको पाल लीजिएगा मास्टर जी। वो भी गुरुदक्षिणा देगा। जीवन भर विज्ञान की कमाई खाने के बाद भी आपका स्वर्ग जाने का मन करे, तो गुरुदक्षिणा के रूप में उससे गोदान माँग लीजिएगा।
मास्टर जी, आपका प्रकरण समाप्त हुआ। जरूरत पड़ी तो आपको फिर याद करूँगा। तब तक पा..ल्लगी।
मेरे घर के ठीक बगल में एक धार्मिक स्थल है।
धार्मिक स्थलों का आकार देखने पर लगता है, ये पूँजीवाद की गुल्लक है। इनका नक्शा बनाने वाला श्रमिक कार्ल मार्क्स का गुरु रहा होगा। संकेत देकर गया।
मेरे घर के ठीक बगल में स्वर्ग जाने वालों की भीड़ इकट्ठा होती है। फिलहाल नौ दिन वाला अखंड आयोजन चल रहा है। लाउडस्पीकर गरज रहा है। डीजे धधक रहा है। पिछले कुछ वर्षों तक आयोजक को लगता था कि उसका ऊपरवाला ऊँचा सुनता है। तो वो सिर्फ लाउडस्पीकर लगाता था। अब आयोजक को लगने लगा है कि उसका ऊपरवाला बहरा हो गया है। इसलिए बहरों को सुनाने के लिए लाउडस्पीकर के साथ डीजे का धमाका भी करता है। भगत सिंह को याद करते भी नहीं अघाता है।
अभी वो ऊपरवाले को सुना रहा है- विनती सुन लो मेरी…(डीजे पकौड़ी गाजीपुर)… नहीं तो कुर्सी हिला दूँगा तेरी… यो।
उसकी विनती के बीच-बीच में डीजे वाला अपना भी नाम-पता बताता रहता है।
हे आयोजक, तुम्हारा ऊपरवाला भले ही बहरा हो गया हो, पर मुझे सुनाई देता है। जहाँ मेरे कान नहीं रहते, वहाँ की बातें भी सुन लेता हूँ। तुम्हारी ‘लाउड’ विनती से मेरे कान के पर्दे हिलते हैं- बूम बूम।
किसी और पार्टी की सरकार होती तो रात दस बजे के बाद शोर मचाने के खिलाफ पुलिस को सूचित करता। इस सरकार में तो ऐसा सोचना भी अपराध है। पुलिस उल्टा मुझे ही सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में गिरफ्तार कर लेगी- सरकार सबको स्वर्ग पहुँचाना चाहती है। तुम नर्क भेजना चाहते हो।
एक बार एक प्रकरण की छानबीन करने क्षेत्राधिकारी मेरे गाँव आये। गाँव देखा तो कहा- बहुत ‘रिच’ गाँव है। हाँ साहब, रिच तो है ही। इतना रिच है कि आज से दस-पंद्रह वर्ष पहले ही वारंट लेकर आने वाले को हजार-पंद्रह सौ दे देता था।
मेरा गाँव आबादी के मामले में भी रिच है। मेरे गाँव में कई ऐसे आदमी हैं, जो दो-तीन सौ वर्षों से जीवित हैं। वो नजर नहीं आते, फिर भी उनका नाम सुनते ही पसीना छूटने लगता है। ऐसा नहीं है कि सभी उनसे डरते हैं। मेरे गाँव में उनसे बात करने वाले भी हैं। पहले एक था। एक मजार थी। कुछ दिन बाद दूसरे भाई को भी अपनी शक्ति का एहसास हुआ- तुमसे अच्छी बात तो मैं कर सकता हूँ। नतीजा, अब दो हैं। दो मजार हैं। दोनों वर्ष में एक बार आगे-पीछे उर्स का आयोजन करते हैं। उर्स की रात दोनों की आर्थिकी का ‘क्लास’ बदल जाता है।
अमीर भय के अधीन होकर दान करे तब भी दानवीर, दयालु ही कहा जाता है। अमीर नंगे घूमने लगें तो फैशन कहा जाने लगेगा- फैशन के मामले में बहुत रिच हैं। वहीं कोई पैसे के अभाव में चीथड़े पहनकर घूमे तो वो मानसिक विक्षिप्त कहा जाता है।
एक बात करने वाला गाँव की सीमा पर आश्रम बनाकर रहता है। उसके आश्रम के लिए जमीन देने वाले एक की अपने भाई के साथ खेत की मेड़ काटने के झगड़े में हूरा-फाइटिंग हुई थी।
अब गाँव के लोगों का गया जाना कम हो रहा है। गया वालों के सहोदर भाइयों ने गाँव में ही गया की ब्रांच खोल ली है।
मेरे गाँव के आबादी की ‘रिचनेस’ जाँचने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड वाले आये थे। मजार और आश्रम वालों ने उन्हें बैरंग लौटा दिया- अपने यहाँ के आबादी की जाँच करो। हमारे सहोदर भाई चर्च के पादरी से मिलो।
मास्टर जी, आप जनगणना का कार्य भी करते हैं। आप जनगणना का कार्य सरकार के मन-मुताबिक नहीं करते हैं। ये भी पूछा करिए- आपके घर में कितने सदस्य ऐसे हैं, जो पिछले दो-तीन सौ वर्षों से जीवित हैं। मास्टर जी, प्रधानमंत्री देश की सही जनगणना कर चुके हैं।
प्रधानमंत्री ने एक बार देश की आबादी छह सौ करोड़ बता दी। प्रधानमंत्री ने देश की आबादी में उनको भी शामिल किया, जो दो-तीन सौ वर्षों से जीवित हैं। जो नजर नहीं आते।
वो आबादी जो नजर नहीं आती और जो उनसे बात करने की शक्ति रखते हैं, उनके खिलाफ झाड़-फूँक, टोना-टोटका, अंधविश्वास निवारण कानून के तहत मैं मुकदमा दर्ज नहीं करा सकता। दोनों के दरबार में बा-वर्दी कानून-व्यवस्था का भी आना-जाना होता है। मेरे खिलाफ ही सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने का प्रकरण दर्ज हो जाएगा- सरकार सबको अमर बनाना चाहती है। तुम उन्हें बे-मौत मारना चाहते हो।
ऐसा नहीं है कि जो दो-तीन सौ वर्षों से जीवित हैं, नजर नहीं आते, वे खाते-पीते नहीं हैं। खाते हैं। सामान्य आदमी से अत्यधिक। कभी-कभार पूरा गोदाम ही खा जाते हैं। घोटाले की खबर आती है। उत्तर प्रदेश के अट्ठारह कस्तूरबा विद्यालयों में छात्राएँ आई ही नहीं। उनके भोजन के नाम पर नौ करोड़ खा गए। डकार भी नहीं ली।
अमेरिका देश-के-देश खाने के बाद भी डकार नहीं लेता है। एक बार उसकी डकार पूरी दुनिया ने सुनी थी। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर उसने डकार ली थी। उस डकार लीक के बाद अमेरिका को बहुत शर्मिंदगी झेलनी पड़ी।
सभ्य समाज के बीच डकार लेना ‘गुड मैनर’ नहीं माना जाता। अमेरिका अब खाने के मैनर का पालन करता है। सभ्यताओं को निगलने के बाद डकार नहीं लेता है।
एक पत्रकार ने सरकार की ईमानदारी के बाँध में लीक दिखाया- मिड डे मील में भात और नमक खिलाया जा रहा है। उस पत्रकार के ऊपर भी मुकदमा दर्ज कर दिया गया।
मिड डे मील से पहले आँगनवाड़ी का मील आता है। आँगनवाड़ी के भोजन का मेन्यू पढ़ा तो जठराग्नि दहकने लगी। कुपोषित बच्चों को सामान्य बच्चों से दो-गुनी खुराक। सोचने लगा- मुझे भी आँगनवाड़ी केंद्र जाने को मिलता तो कुपोषण दूर हो जाता। यही सोचते हुए आँगनवाड़ी केंद्र गया भी। वहाँ जाकर पता चला कि खुराक सिर्फ आँकड़ों की पकती है। मेन्यू की थाली में सिर्फ सत्तू मिलता है।
मास्टर जी, नामकरण के तहत निर्धारित नामधारी छुट्टा पशुओं की फोटो लेकर आँगनवाड़ी वाले विभाग में भी जाइएगा। पहचान कराइएगा कि इनमें से कितनों ने आँगनवाड़ी का सत्तू खाया है।
देश-विदेश के चक्कर में अपने गाँव की रिचनेस को भूल ही गया। मेरा गाँव इतना रिच है कि मुआवजे से अधिक रिश्वत दे देता है। मेरा गाँव गंगा नदी के डूब क्षेत्र में आता है। बाढ़ के बाद फसल नुकसान का मुआवजा मिलता है। मुआवजा लेने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है- कौन सबसे पहले लेता है। मुआवजा सोर्स-जुगाड़ का भौकाल बनाने के काम भी आता है- मुझे सबसे पहले चेक मिला। अच्छा, कितना देने के बाद मिला? ये वो नहीं बताएंगे। सोर्स-जुगाड़ का भौकाल जो डूब जाएगा। मुआवजे की जितनी रकम थी, उससे अधिक रिश्वत देकर मुआवजे का चेक सबसे पहले लेकर आए। सबसे पहले का सुख रिश्वत के दुख को डुबा देता है।
रिश्वत देकर मुआवजा लेने वालों के खिलाफ रिश्वत देने का अभियोग बनता है। बनता है, पर शिकायतकर्ता के साथ वही होगा- सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में आपको गिरफ्तार किया जाता है- सरकार देश के सभी गाँवों का विकास तुम्हारे गाँव की तरह करना चाहती है। तुमसे विकास बर्दाश्त नहीं हो रहा है?
मास्टर जी….। अरे, इस बार आपकी याद बहुत जल्द आ गई। मास्टर जी मेरा गाँव भी ‘डेली सोप ओपेरा’ के दिखावे की नौटंकियों से अछूता नहीं है। आर्थिक उदारीकरण के सभी फायदे उठाता है। रिश्वत देने के लिए भी कर्ज लेता है।
मास्टर जी, मुझे लगता है देशहित की कथित कल्याणकारी योजना ‘आर्थिक उदारीकरण’ पब्लिक सेक्टर को ध्वस्त करने के साथ गाँवों को भी मिडिल क्लास बनाने की योजना थी। कथित इसलिए क्योंकि मुझे लगता है कि ‘स्टेट’ कभी कल्याणकारी नहीं हो सकता।
देशहित के नशे का ‘हैंगओवर’ लम्बा चलता है। आर्थिक उदारीकरण देशहित का सामान्य पैग था। सौ प्रतिशत एफडीआई देशहित का पटियाला पैग है। इन दो नशों का हैंगओवर खत्म ही नहीं हुआ, उसके पहले ही निजीकरण के नशे की इक्कीस हजार करोड़ की खेप मुंद्रा पोर्ट पर आ गई।
मेरा एक मित्र मास्टर जी विधानसभा चुनाव के दौरान शिक्षणेतर कार्य में लगाया गया। उसे मजिस्ट्रेट बनकर चेकपोस्ट पर निगरानी करनी थी। चुनाव के दौरान शराब और कैश पकड़ना था। चुनाव बीत गया। वो कुछ नहीं पकड़ सका।
इस बार विधानसभा चुनाव के दौरान कैश की बरामदगी न के बराबर रही। अब मतदाताओं को रिश्वत देना संस्थानिक हो गया है। कैश अब मतदाताओं के खाते में ‘डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर’ किया जा रहा है। राशन कार्ड पर पाँच किलो अनाज के रूप में दर्ज हो रहा है।
डायरेक्ट बेनीफिट ट्रान्सफर योजना किसी और सरकार ने शुरू की थी। इस समय उस योजना के लाभार्थियों की सरकार है।
मतदाताओं को दी जाने वाली संस्थानिक रिश्वत रोकने के लिए मुझे सीधे सुप्रीम कोर्ट में जाना होगा। वहाँ भी सरकारी काम में बाधा डालने का आरोप लग जाएगा? तो सीधे उनके पास जाऊँगा, जिन्होंने लोकतंत्र के चारो खंभों को खुद से ‘रिप्लेस’ कर दिया है। वे ही देश हैं। उनके दो हाथ दो पैर लोकतंत्र के चार स्तम्भ हैं। उनकी अँगुलियाँ स्वतंत्र कही जाने वाली संस्थाएँ है। लोकतंत्र उनकी चलती-फिरती दुकान है। जहाँ जाते हैं, साथ ले जाते हैं- भावनगर वाले सेठ, चाहिए क्या? जामनगर वाले सेठ चाहिए क्या?
वे लोकतंत्र सेठों को बेच चुके हैं। अब नया तंत्र विकसित कर रहे हैं। तंत्र का नया भवन निर्माणाधीन है। भवन मालिक सेठ होंगे। मैनेजर तिलकधारी होंगे। (तिलकधारी मेरे गाँव में एक आदमी का नाम है) बाकी सब चंगू-मंगू होंगे।
सेठ मैनेजर से पूछेंगे- मैनेजर, करतब दिखाएगा? मैनेजर- दिखाएगा मालिक। सेठ- गोबर खाएगा? मैनेजर- खाएगा मालिक। सेठ- चंगू-मंगू गोबर खाने में ना-नुकुर करेंगे तो? मैनेजर- उनके खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने का मुकदमा दर्ज होगा मालिक।