सम्मान केवल निजी उपलब्धि नहीं, हाशिये के लिए संघर्ष का प्रमाण है: एक आत्मस्वीकृति


सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह दौर चुनौतियों भरा है। एक तरफ सरकारी मदद के अभाव और डेवलपमेंट सेक्टर में संसाधनों की कमी के कारण हाशिये के लोगों तक उनके लाभ नहीं पहुंच पा रहे, तो दूसरी तरफ जनविरोधी राजनीति और ध्रुवीकृत सामाजिक वातावरण ने काम करने की स्थितियों को कठिन बना दिया है। दिक्कत तब कहीं ज्यादा बढ़ जाती है जब व्यक्ति अकेले नहीं, अपने परिवार के साथ सामूहिक स्तर पर सामाजिक कार्यों में संलग्न होता है और उसके परिवार का समूचा वजूद ही सामाजिक कार्य पर टिका होता है। इसके ठीक उलट, उसके सामाजिक कार्यों की प्रभावशीलता उसकी निजी स्थितियों पर निर्भर होती है।


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ऐसे परिदृश्य में जब थोड़ी सी भी राहत, सम्मान या मान्यता मिलती है तो हौसला बढ़ता है और परोक्ष रूप से हाशिये के समुदायों की लड़ाई मजबूत होती है। हमारे साथ भी यही हुआ है- हमारे यानी मैं और मेरी हमसफर श्रुति नागवंशी, जिन्होंने बीते 32 वर्षों में एक सशक्त जीवनसाथी के रूप में मेरी हर पहल में साथ दिया; और साथ ही हमारा बेटा कबीर कारुणिक,जो आज राष्ट्रीय स्तर पर स्नूकर खिलाड़ी है और हमारे परिवार का गर्व है। इसलिए एक आत्मस्वीकृति के रूप में यह बताना जरूरी है कि नोएडा के श्री राम मिलेनियम स्कूल में आयोजित एक ऐतिहासिक अवसर पर जब मुझे रेक्स कर्मवीर पुरस्कार महारत्न प्रेरणा अवार्ड  और मेरी पत्नी श्रुति नागवंशी को कर्मवीर गोल्ड चक्र अवार्ड से सम्मानित किया गया, तो हमें अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का न सिर्फ अहसास हुआ ब‌ल्कि उसने हमारे हौसले को मजबूत किया ताकि हम और भी ताकत से समाज में बदलाव लाने के अपने उद्देश्य की ओर बढ़ सकें।

सम्मान केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं होते, बल्कि समाज के सबसे हाशिये पर खड़े लोगों के अधिकारों, न्याय और समानता के लिए दीर्घकालिक यात्रा और संघर्ष का प्रमाण भी होते हैं। इसलिए फिलहाल जब व्यक्तिगत और पेशेवर मोर्चे पर ढेर सारी चुनौतियां हमारे सामने खड़ी हैं, यह सम्मान हमारे लिए आशा और हिम्मत का प्रतीक बनकर आया है। यह हमें विपरीत परिस्थितियों का सामना करने और हर बाधा के खिलाफ मजबूती से खड़े रहने की प्रेरणा दे रहा है।



श्रुति नागवंशी ने अपने जीवन को हमेशा मानवता की सेवा के लिए समर्पित किया है। 2 जनवरी 1974 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के दशाश्वमेध क्षेत्र में जन्मी श्रुति ने अपनी मां से प्रेरणा लेकर हर बाधा को पार करते हुए सामाजिक बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाए। उन्होंने यह समझा कि अवसरों की कमी इंसान के सपनों को सीमित कर देती है, और इसलिए उन्होंने महिलाओं और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने का संकल्प लिया। हमारा विवाह 22 फरवरी 1992 को हुआ।

श्रुति और मैं भले ही अपनी पहचानों में अलग हों, लेकिन हमारा साझा मिशन हमें एकजुट करता है। हमने हमेशा जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता और पितृसत्तात्मक अन्याय को चुनौती दी है। हमारा उद्देश्य समाज में हर व्यक्ति को समान अवसर और गरिमा प्रदान करना है।

यह समय हमारे लिए कठिन है। पेशेवर मोर्चे पर संघर्ष और व्यक्तिगत स्तर पर चुनौतियों के बावजूद यह सम्मान हमें हर मुश्किल का सामना करने की शक्ति दे रहा है। यह हमें सिखाता है कि हर अंधकार के बाद प्रकाश आता है और हर संघर्ष के बाद जीत।

श्रुति ने जातिगत अन्याय को न केवल समझा बल्कि इसे चुनौती देने के लिए जीवनभर काम किया। जनमित्र न्यास (JMN)/पीवीसीएचआर की स्थापना के साथ, उन्होंने हाशिये पर खड़े समुदायों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। दूरदराज के गांवों तक बिना किसी संसाधन की चिंता किए पैदल चलकर उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि हर व्यक्ति को मानव गरिमा का अधिकार मिले।



रेक्स कर्मवीर पुरस्कार, जो रेक्स कर्मवीर ग्लोबल फेलोशिप (RKGF) और iCONGO द्वारा स्थापित है, उन लोगों को सम्मानित करता है जिन्होंने व्यक्तिगत इच्छाओं से ऊपर उठकर समाज के लिए योगदान दिया। महारत्न प्रेरणा अवार्ड और गोल्ड चक्र अवार्ड दशकों के संघर्ष और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण का प्रतीक हैं। यह सम्मान हमें याद दिलाता है कि सामाजिक बदलाव का संघर्ष लंबा हो सकता है, लेकिन यह संघर्ष ही सच्ची जीत है।

मैं रेक्स कर्मवीर ग्लोबल फेलोशिप iCONGO और श्री राम मिलेनियम स्कूल का हृदय से धन्यवाद करता हूं। यह सम्मान केवल हमारी नहीं, बल्कि उन सभी की उपलब्धि है जो हमारे साथ इस संघर्ष में शामिल रहे। यह उन वंचित समुदायों को समर्पित है जिनके अधिकारों की रक्षा के लिए हम संघर्षरत हैं।

आइए, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि हर व्यक्ति को न्याय, समानता और सम्मान मिले, क्योंकि यही सच्ची मानवता है। यह पुरस्कार हमें याद दिलाता है कि हमारी यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है। संघर्ष जारी रहेगा, और हम समाज में बदलाव लाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।


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