दक्षिणावर्त: उत्साह के टूटने और शीराजे के बिखरने का यह काल

नये बिहार में आपका स्वागत है। बिहार ने कोरोना पर विजय पा ली है। हरेक पंचायत में प्रवासियों की रेलमपेल, धान की बुआई और हुल्लड़ के बीच बिहार के युवा गया से लेकर दरभंगा तक हवाई उड़ान भर रहे हैं- शिक्षक बनने के लिए।

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आर्टिकल 19: बाबा तेरी ‘बूटी’ के जलवे हज़ार, एक तीर से तीन शिकार!

बाबा जी की महानता नस्लभेद का शिकार हो गयी है। बुरा हो ब्रिटेन के गोरों का जिन्होंने दो सौ साल तक हम पर राज किया और अब भी इंडिया वालों को सताने से बाज़ नहीं आते। बाबा जी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया। कहा, उनकी बूटी दवा नहीं फर्जीवाड़े का अखाड़ा है। दुनिया पीछे पड़ गयी।

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डिक्टा-फिक्टा: बदलती विश्व व्यवस्था और पुतिन का आलेख

पश्चिमी देशों में इस लेख के महत्व पर चर्चा करने के बजाय पुतिन पर आरोपों का दौर शुरू हो गया है कि रूसी राष्ट्रपति इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास कर रहे हैं

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बात बोलेगी: सुबह से शाम, ‘सुरों के नेता’ का हर एक काम देश के नाम…

कलाएं रचते भगवान आज तक अबूझ बने हुए हैं, तो उन जैसे तैंतीस कोटि भगवानों के नेता की लीला भला कौन जाने? फिर भी यह लिखने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी?

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राग दरबारी: भारतीय मीडिया, संपादक और उसकी नैतिकता

आज के अधिकांश संपादक रीढ़विहीन, परजीवी व अपने लाभ भत्तों के लिए जी रहे हैं. पत्रकारिता में संकट के इस दौर में प्रतीक बंदोपाध्याय जैसे कितने पत्रकारों के बारे में हमने सुना है? जबकि आज तो देश के कई बड़े संपादक राज्यसभा में विराजमान हैं?

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तन मन जन: आत्महत्या दरअसल ‘सांस्थानिक हत्या’ है!

सुशान्त राजपूत या देश के किसान या विश्वविद्यालय के छात्र या कोई प्रोफेशनल- यदि आप आत्महत्या के लिए मजबूर हैं तो समझिए कि आपकी हत्या की सुपारी व्यवस्था ने पहले ही दे रखी है।

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देशान्तर: आज़ादी और जनतंत्र के लिए अल्जीरिया की जनता का संघर्ष ‘हिराक’

जो विशेष बात हुई है वह है एक नए क्रांतिकारी आंदोलन का जन्म जिसने कई भेद ख़त्म कर के राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाया है, विशेष रूप से उन लोगों के बीच जो कि फैलते इस्लामिक धार्मिक युद्ध की चपेट में आ रहे थे।

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छान घोंट के: मानसिक अवसाद के राजनैतिक मायने और कुछ सहज उपाय

अपने भीतर मित्रों के प्रति मित्रतापूर्ण संघर्ष और शत्रुओं (जो अवसाद को पैदा करने के बुनियादी कारण हैं) के खिलाफ शत्रुतापूर्ण संघर्ष को चलाये रखना सबसे ज़रूरी है

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आर्टिकल 19: बहिष्कार चाइना का माल है!

जुमला गढ़ा जा रहा है कि चाइनीज माल का बहिष्कार करना है। किया जा भी सकता है, लेकिन क्या भारत के लोग इसके लिए तैयार हैं? या और परिष्कृत तरीके से पूछा जाए तो क्या तैयार होंगे?

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डिक्टा-फ़िक्टा : फ़र्ज़ी तख्तापलट, क़ैद में दो पत्रकार और बोल्टन की उद्घाटक किताब

आज से जनपथ पर प्रकाश के. रे का स्तम्भ डिक्टा-फिक्टा शुरू हो रहा है. इस स्तम्भ में इन्टरनेट पर चल रही विविध चर्चाओं और समकालीन विषयों की संक्षिप्त सूचनाएं होंगी …

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