राग दरबारी: कमंडल और मंदिर के बीच दम तोड़ता सामाजिक न्याय

क्या कारण रहा कि एक समय अछूत सी रही भाजपा आज देश में सबसे मजबूत ताकत है? सवाल यह भी है कि जो सामाजिक और राजनीतिक विरासत इतनी मजबूत थी, वह 25 साल के भीतर ही इतनी बुरी तरह क्यों बिखर गयी और हिन्दुत्ववादी ताकतों को क्यों चुनौती नहीं दे पायी?

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तन मन जन: कोरोना काल की अभागी संतानें

यदि परिपक्व और संवेदनशील तरीके से मामले को संभाला नहीं गया तो स्थिति विस्फोटक है और देश दुनिया का भविष्य कहे जाने वाले हमारे बच्चे ताउम्र एक अभिशप्त जिन्दगी जीने को मजबूर होंगे।

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गाहे-बगाहे: है किस क़दर हलाक-ए फ़रेब-ए वफ़ा-ए गुल!

हिन्दू महासभा और संघ की हैसियत वही है जो मुस्लिम लीग की है। दोनों का उद्देश्य और निहितार्थ, भाषा और चाल-चरित्र एक है। फर्क यह है कि मुस्लिम लीग मुसलमानों की बात करता है और संघ हिंदुओं की जबकि वास्तविकता यह है कि संघ ने न हिन्दू शोषकों से जनता की मुक्ति की बात की न मुस्लिम लीग ने मुस्लिम शोषकों से।

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देशान्तर: तानाशाही व्यवस्था में प्रतिरोध का स्वर है चीन की सिविल सोसाइटी

2008 के ओलिंपिक ने चीन को दुनिया के पटल पर आर्थिक और राजनैतिक दोनों क्षेत्रों में न सिर्फ सुपर पावर के तौर पर स्थापित किया बल्कि यह आत्मबल भी दिया किया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय व्यापारिक और बाज़ारी व्यस्था के आगे मानवाधिकारों के हनन को मुद्दा नहीं बनाने वाला। इसलिए धीरे-धीरे उन्होंने एडवोकेसी संस्थाओं पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया जिसके कारण कुछ ही वर्षों में कई संस्थाएं बंद हो गयीं या फिर देश छोड़ कर चली गयीं।

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दक्षिणावर्त: राम मंदिर बनने से कुछ नहीं बनने वाला, फिर भी बनने दीजिए!

अगर राम-मंदिर बन ही रहा है, तो भी समस्याएं रहेंगी, उनके साथ हमें जीना होगा, उनके निबटारे का प्रयास करना होगा, लेकिन देश में बहुसंख्यक आबादी के पुराने ज़ख्‍म पर मुकम्‍मल मरहम लगेगा और घाव दोबारा नहीं बहेगा।

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आर्टिकल 19: जनता सड़कों पर है, लेखक दड़बों में!

लेखकों की अक्सर शिकायत रहती है कि लोग उन्हें सुनते नहीं। उन्हें पढ़ते नहीं। लेकिन इन सवालों से पहले जो सवाल बनता है वो ये कि जब लेखक अपने समय के सवालों से लड़ेगा नहीं तो उसे पढ़ेगा कौन? और क्यों पढ़े। उससे क्यों जुड़े।

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तिर्यक आसन: वह तीसरा आदमी कौन है, जो सिर्फ कविता से खेलता है?

साम्राज्यवाद की बाढ़ आई। उनकी भावनाओं का फाटक खुला। एक पंक्ति आई। आलमारी से………। साम्राज्यवाद की बाढ़ सब कुछ तबाह कर चली गई, तब उनकी भावनाओं ने कविता का रूप धरा। शीर्षक- बाढ़ आई है।

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डिक्टा-फिक्टा: स्वच्छ ऊर्जा के नाम पर लीथियम की लूट

ऊर्जा के स्रोतों के खनन और कारोबार ने दुनिया के इतिहास को बदलते रहने में प्रमुख भूमिका निभायी है. बीसवीं सदी का इतिहास ब्लैक डायमंड यानी कोयला और ब्लैक गोल्ड यानी पेट्रोलियम का रहा था, तो इस सदी का इतिहास बहुत हद तक व्हाइट गोल्ड यानी लीथियम पर निर्भर करेगा.

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बात बोलेगी: मन की बात या एकालाप?

इस व्यक्ति के मन में ऐसा क्या आता है जिसे वो आपको हर दो महीने में सुनाना चाहता है जबकि हर समय इसी व्यक्ति को देश की जनता अलग-अलग चैनलों पर भर दिन सुनते रहने को अभिशप्त है।

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राग दरबारी: कितनी छोटी होगी लोकतंत्र में अवमानना की लकीर?

जब राजसत्ता के इशारे पर सारे निर्णय लिए जा रहे हैं तो लिखित कानून और उसे पालन करने वाले संस्थानों की क्या भूमिका रह जाएगी? हमारे संवैधानिक अधिकारों की गारंटी कौन करेगा जो हमें भारतीय कानून के तहत एक नागरिक के तौर पर मिले हुए हैं? उस नागरिक स्वतंत्रता का क्या होगा जिसकी दुहाई बार-बार दी जाती है?

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