देशान्‍तर: फ़िलिपींस में बढ़ता राष्ट्रवाद और बाहुबली राष्ट्रपति दुएर्ते की अजब दास्ताँ


इस कॉलम के माध्यम से भारत के बाहर चल रहे संघर्षों, मुद्दों, वहां की राजनैतिक परिस्थिति और दुनिया भर में बढ़ रही उदारवादी और दक्षिणपंथी ताक़तों को भारतीय मानस में लाना है। जिन परिस्थितियों से हम जूझ रहे हैं, वे परिस्थितियां विश्व के अनेक देशों में भी हैं और वहां की जनता उनसे मुक़ाबला कर रही है। एक नयी दुनिया मुमकिन है और उस दुनिया को बनाने में जनता को एक दूसरे के बारे में जानना और संवाद स्थापित करना एक महत्वपूर्ण काम है। इस कॉलम के माध्यम से यही कोशिश की जा रही है। आप इसे पढ़ें, इसके ऊपर चर्चा करें और यहां उठाए मुद्दों के बारे में और जानकारी हासिल करें।

संपादक

कोरोना आपदा के मद्देनज़र फ़िलिपींस में भी भारत की तरह ही मध्य मार्च से बिना पूरी तैयारी के लॉकडाउन की घोषणा की गयी थी। वहां वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या घटी तो नहीं है, लेकिन हमारे यहां जैसी बेतहाशा बढ़ी भी नहीं। बीते 1 जून से वहां अनलॉक की स्थिति है, लेकिन इन सब के बीच देश में एंटी टेररिज्म बिल 2020 (आतंकवाद निरोधक विधेयक) के मसौदे को लेकर भयंकर उथल-पुथल की स्थिति बनी हुई है। बिल की आलोचना देश के वर्तमान उपराष्ट्रपति लेनि रोब्रेडो से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं, विपक्ष के नेताओं, पत्रकारों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं, फ़िलिपींस मानवाधिकार आयोग और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने भी की है। इसके बावजूद यह बिल वहाँ की संसद से पारित होकर अभी राष्ट्रपति के हस्ताक्षर की प्रतीक्षा कर रहा है, जो कि महज़ एक औपचारिकता है। फ़िलिपींस के 122वें स्वतंत्रता दिवस पर 12 जून को देश भर में लोगों ने इसका विरोध किया। राष्ट्रपति रोद्रिगो दुएर्ते इस पर यदि हस्ताक्षर न करें, तब भी 30 दिनों के भीतर यह क़ानून लागू हो जाएगा।

यह विधेयक आतंकवादियों और आतंकी गतिविधियों से जुड़ा है। न्यायिक प्रक्रिया को नज़रंदाज़ करते हुए सिर्फ़ आशंका के आधार पर बिना वारंट के गिरफ़्तारी तथा न्यायिक अपील के बिना लम्बी जेल के प्रावधानों वाला यह विधेयक सुरक्षा बलों को बेलगाम शक्ति देता है। इस क़ानून के दुरुपयोग की पूरी आशंका को देखते हुए नागरिक समाज, विपक्षी नेताओं, मीडिया, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बीच एक भय की स्थिति है। अगर कहें तो यह क़ानून, भारत में हाल में एनडीए सरकार द्वारा गैर कानूनी गतिविधि निरोधक कानून (UAPA) में किए गए संशोधनों के बराबर है। वहां के आंदोलनकारियों के अनुसार इस क़ानून में कुछ भी नया नहीं है। यह एक तरह से राष्ट्रपति दुएर्ते द्वारा ड्रग माफिया के ख़ात्मे के नाम पर चलाए जा  रहे अभियान के सिलसिले में किए गए अनेकों प्रक्रमों की एक कड़ी है। जून 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में भारी बहुमत से जीतने के बाद उनका कार्यकाल ऐसे अनेक विवादास्पद मामलों से भरा रहा है।

इस दौर में फिलिपींस के आंदोलनों का मुख्य नारा है- “आंदोलन, आंदोलकारी और असहमति आतंक नहीं है”। कोविद संकट के कारण लागू वर्तमान “सामुदायिक संगरोध” (community quarantine) का उल्लंघन करते हुए हजारों छात्र, कार्यकर्ता और आंदोलनकारी समूह इस कठोर कानून के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। विश्वविद्यालय परिसरों में सुरक्षा बलों द्वारा छात्रों को गिरफ्तार किया गया है, सुरक्षा बलों द्वारा उन पर हमला किया गया, और कैम्पस में खदेड़ा गया। वैसे ही, जैसे हमारे यहां जामिया या जेएनयू में पुलिस ने किया।  

लॉकडाउन के कारण लोगों को बड़े पैमाने पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। मनीला और अन्य शहरों में सार्वजनिक परिवहन के बंद होने के कारण लाखों फंसे हुए लोग अपने कार्यस्थल या घरों तक नहीं पहुँचे या फिर बेहद मुश्किलों से पहुँचे। स्थिति कमोबेश वैसी ही बनी है जैसे हमारे देश में प्रवासी श्रमिकों का संकट, लेकिन सरकार स्वास्थ्य संकट और आने वाले आर्थिक संकट से लड़ने के बजाय इस नए बिल के द्वारा विरोध को कुचलने में लगी है ताकि नागरिक समाज को डराने और किसी भी प्रतिरोध को रोकने का प्रयास किया जा सके। खंडित विपक्ष के दलों ने इसकी आलोचना की है और इसे मौजूदा संकट से ध्यान हटाने, युद्ध और सरकारी अभियानों के अगले चरण के लिए तैयारी घोषित कर दिया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार कार्यालय की रिपोर्ट

विधेयक की आलोचना करने वालों को लेकर शासन की प्रतिक्रिया बिलकुल हमारी सरकार के अन्दाज़ में है, कि केवल आतंकवाद और आतंकवादियों का समर्थन करने वाले लोग इससे डर रहे हैं और दूसरों को चिंता करने की कोई बात नहीं है। सब कुछ परिचित सा लगता है। सोशल मीडिया पर सरकारी आइटी सेल का दबदबा, दक्षिणपंथी समाचार चैनलों के पत्रकार, फर्जी समाचार का बोलबाला, पैसा समर्थित प्रचार तंत्र, न्यायालय के माध्यम से सरकार के सभी कामों के समर्थन में एक माहौल बना देना; ऐसा लगता है गोया दोनों देशों के सत्ताधारियों की पटकथा किसी एक व्यक्ति ने ही लिखी हो।

अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय, हेग में मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए फिलिपींस सरकार पर मामला दायर किया गया था

राष्ट्रपति दुएर्ते का कार्यकाल ड्रग माफिया के ख़िलाफ़ चले अभियानों और उससे जुड़े विवादों से भरा हुआ है। इस अभियान में अभी तक सुरक्षा बलों के हाथों अनुमानित 30,000 मौतें हुई हैं। मारे गए लोगों में कई ऐसे भी शामिल हैं जो मादक पदार्थों की तस्करी में शामिल नहीं थे। सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब, ग्रामीण और हाशिये के लोग हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने अपने एक दस्तावेज में कहा है कि 2015 और 2019 के बीच कम से कम 248 मानवाधिकार रक्षक, कानूनी पेशेवर, पत्रकार और ट्रेड यूनियन से जुड़े लोग मारे गए हैं। भारत के “शहरी नक्सल” तमग़े के जैसा ही “रेड-टैगिंग” का एक लेबल वहां व्यक्तियों या समूहों (मानवाधिकार रक्षकों और गैर-सरकारी संगठनों सहित) को कम्युनिस्ट या आतंकवादी के रूप में चिह्नित करने के लिए लाया गया जिससे नागरिक समाज और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गंभीर खतरा उत्पन्न हुआ है। इस रिपोर्ट में यह भी नोट किया गया है कि कैसे कुछ मामलों में जो लोग लाल-टैग किए गए हैं, वे बाद में मारे गए। निजी संदेशों में या सोशल मीडिया पर मौत की धमकी या यौन-आरोपित टिप्पणियां, विरोधी आवाज़ों के लिए बेहद आम हैं। वर्तमान शासन द्वारा निश्चित रूप से एक प्रदूषित संस्कृति प्रोत्साहित और संरक्षित की जा रही है।

राष्ट्रपति दुएर्ते और भारत के प्रधानमंत्री मोदी के बीच की समानता को आप चाह कर भी नज़रंदाज़ नहीं कर सकते। 2016 के चुनाव में मोदी के अच्छे दिन आएंगे की तर्ज़ परपरिवर्तन आ रहा है जैसे नारे के साथ गलत बयानबाजी करते हुए दुएर्ते सत्ता में आए। पुरानी  विपक्षी पार्टियों और राजनैतिक घरानों- जो 1986 के नए संविधान के बाद से देश पर शासित थे- उनके खिलाफ ज़ोरदार प्रचार। राजधानी मनीला से नहीं, बल्कि सबसे पिछड़े मिंडानाओ द्वीप की राजधानी डवाओ के गवर्नर के तौर पर और उसे विकसित करते हुए (बिलकुल गुजरात मॉडल की तरह); एक सफल प्रशासक की भूमिका बांधते हुए; और देहाती भाषा-शैली में बात करते हुए; एक सामान्य नागरिक की भूमिका में बेतहाशा पैसा और प्रचार के बल पर दुएर्ते एक बाहुबली राष्ट्रपति के रूप में क़ाबिज़ हुए। इन्होंने भी जनता से संवाद करने का एक अनूठा तरीका विकसित किया है, ड्रग माफिया के ख़िलाफ़ लड़ाई को लेकर एक बाहुबली और मजबूत नेता की छवि बनायी है, जो उनके भाषणों में बार-बार आता है। एक ताकतवर संरक्षक की तरह अपने भाषणों में विशेष अन्दाज़ में वे बार=बार कहते हैं, पापातायिन कीता मतलब “मैं तुम्हें मारूंगा” और थोड़ा आगे जाकर कहते हैं, “यदि ड्रग्स देकर मेरे देश के युवाओं को नष्ट करोगे, तो मैं तुम्हें मार दूंगा, मारो, मारो”। बिलकुल वैसे ही, जैसे हमारे यहांं हाल के चुनावों में कुछ नेताओं ने देश के ग़द्दारों को, गोली मारों सालों को का नारा मशहूर कर दिया था। इस बात की परिणति हाल के घटनाक्रम में साफ़ दिखती है। भारत के जैसे ही सरकारी और पुलिस हिंसा को फ़िलिपींस की जनता ने भी सही ठहरा दिया है।

फिलिपींस में काम कर रही कुछ संस्थाएं और आंदोलन

ड्रग माफिया के ख़िलाफ़ लड़ाई में हुए मानवाधिकारों के हनन को लेकर फि‍लिपींस की‍ सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फटकार और निंदा का सामना भी करना पड़ा है, इसके बावजूद दुएर्ते लोकप्रिय बने हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय, हेग में जब मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए एक मामला दायर किया तो उल्टा फिलिपींस ने औपचारिक रूप से उसकी सदस्यता से ही इस्तीफ़ा दे दिया। फ़िलिपींस के न्यायालयों में भी उनके और उनके सहयोगियों के ख़िलाफ़ दायर मुक़दमे बहुत आगे नहीं बढ़ पाए हैं, हालाँकि अतीत में यहां के कई पूर्व राष्ट्रपतियों को जेल का सामना करना पड़ा है या क़ानूनी प्रक्रिया झेलनी पड़ी है। यही कारण है कि उन्होंने व्यवस्थित रूप से हर संस्थान को कमजोर करने की पूरी कोशिश की है।

फिलिपींस में संविधान को बदलने की भी तैयारी है। मौजूदा राष्ट्रपति प्रणाली के बजाय एक संघीय प्रणाली की शुरुआत का प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान में, राष्ट्रपति के लिए 6 साल के एकल कार्यकाल की सीमा है। अगर संविधान बदलने में वह कामयाब होते हैं तो अटकलें हैं कि या तो वह अपना कार्यकाल बढ़ा लेंगे या फिर नयी व्यवस्था और पुरानी के अंतरिम में और कुछ साल और शासन करें। यह भी संभावना है कि उनकी बेटी सारा दुएर्ते, जो उनकी जगह पर डेवाओ की राज्यपाल हैं, राष्ट्रपति पद के लिए लड़ें और शायद जीत भी जाएं। वैसे में शायद ही उनके ख़िलाफ़ कोई जाँच-पड़ताल हो।

मौजूदा स्थिति बहुत आशाजनक नहीं है क्योंकि जिस तरह से मई 2019 में सीनेट के लिए हुए चुनावों में उनके गठबंधन हगपोंग पगबागो द्वारा क्लीन स्वीप हुआ और विपक्ष कोई भी सीट नहीं जीत सका, उससे कोई नयी उम्मीद नहीं जगती। यह तब हुआ जब वहां के विश्लेषकों की मानें तो लगभग एक दशक में सबसे खराब मुद्रास्फीति की दर, चीन की लगातार धौंस, अप्रत्यक्ष भ्रष्टाचार के आरोप, आंदोलनकारियों और विरोधियों का दमन, प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोंटने जैसे तमाम आरोप लगे और सबसे अधिक गंभीर 30,000 से अधिक मौतें ड्रग्स के ख़िलाफ़ युद्ध में हुईं। इन सब के बावजूद दुएर्ते की जीत ठीक वैसे ही है जिस तरह भारत में 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए का भारी बहुमत से दुबारा चुन कर आना।

12 जून को नए कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन (Photo EPA)

भारत की तरह फिलिपिंस में भी एक बड़ा और प्रभावशाली व आंदोलनकारी समाज है, जिसकी जड़ें लोकतांत्रिक परंपराओं में काफी गहरी हैं। यहां गुरिल्ला विद्रोह का एक लंबा इतिहास है। 1960 में सामन्तवाद के शोषण के खिलाफ किसानों का आंदोलन, 1972 के मार्शल लॉ के बाद लोकतांत्रिक और अधिकार केंद्रित संगठनों का जन्म, राष्ट्रपति मार्कोस की तानाशाही और फिर 1986 की जनक्रांति और 1987 के नये संविधान के साथ नयी राजनैतिक शक्तियों का आना, फिर नब्‍बे के दशक के बाद से मुद्दा आधारित आंदोलन, नेट्वर्क और कई एनजीओ का जन्म। इसके अतिरिक्त, एक बहुत ही तीव्र पर्यावरणीय आंदोलन, महिलाओं का आंदोलन, किसानों और किसानों के संगठन, ट्रेड यूनियन आदि मौजूद रहे हैं। दुनिया भर में  एक करोड़ फ़िलिपीनो फैले हुए हैं, जिनका देश के समाज और राजनीति पर बड़ा प्रभाव है। वर्तमान समय में कई प्रवासी लोगों और समूहों ने सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। उस कारण से नागरिकता और उससे जुड़े कानूनों के आसपास विवाद भी हुआ है।

राष्ट्रवाद और उस पर हो रही राजनीति आज पूरी दुनिया में चरम पर है! दुर्भाग्यवश, लोगों के बीच बढ़ रहे विवादों का एक बड़ा कारण भी यह है। फ़िलिपींस में भी इस शासन द्वारा प्रायोजित राष्ट्रवादी राजनीति ने समाज को विभाजित किया है और राजनीति के दैनिक ताने-बाने को छुआ है। भारत में प्रधानमंत्री मोदी की तरह ही राष्ट्रपति दुएर्ते भी एक बेहद विभाजनकारी व्यक्ति हैं। दोनों ने अपनी एक बाहुबली और लोकप्रिय राजनैतिक की छवि और ब्रांड बनाया है। उनकी बढ़ती सत्तावादी (अथॉरिटेरि‍यन) प्रवृत्ति की पूरी पकड़ तो है ही देश के ऊपर, साथ ही साथ एक ग़ज़ब की ’लोकतांत्रिक’ स्वीकृति भी है, जिसे विपक्षी पार्टियों के भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और क्रोनिज़्म वाले शासन की प्रतिक्रिया के तौर भी कुछ लोग समझने की कोशिश करते हैं। यह भी साफ़ है कि एक सोची;समझी रणनीति के तहत जैसे भाजपा ने किया है, वैसे ही वहां भी ईसाई पादरियों, मुसलमानों, कम्युनिस्ट गुरिल्लों और ड्रग माफिया व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ एक माहौल बनाया गया है ताकि सत्ता को उनसे कोई विशेष चुनौती नहीं मिले।

इस पूरी प्रक्रिया में जिस एक मामले ने तूल पकड़ा है उसका ज़िक्र ज़रूरी है। मौजूदा सीनेट की सदस्य, मानवाधिकार आयोग की पूर्व अध्यक्ष और देश की पूर्व न्याय मंत्री लीला डी लीमा की ड्रग माफिया के साथ सहयोग करने के आरोप में गिरफ्तारी का मामला। इसकी कड़ी भर्त्सना देश विदेश हर जगह पर हुई है। मनगढ़ंत और बेबुनियाद आरोपों के तहत उनकी गिरफ़्तारी न्यायिक प्रक्रियाओं पर खरा नहीं उतरती, लेकिन तीन साल से वे जेल में बंद हैं, जेल से ही सीनेट की कार्यवाही में भाग ले रही हैं, राय लिख रही हैं और देश की राजनीति को प्रभावित कर रही हैं। ड्रग माफिया होने के झूठे आरोप और ड्रग तस्करों की झूठी गवाही के आधार पर उन्‍हें उनके मंत्रि‍काल में ही गिरफ़्तार किया गया था और पुलिस अधिकारियों की गवाही के आधार पर ही क़ैद किया गया है, लेकिन वहां की अदालतें लगातार अपना धर्म निभाने में नाकाम रही हैं। यह बात बिल्कुल वैसे ही है जैसे कश्मीर के नेतागण हिरासत में हैं या फिर भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में कई मानवाधिकार कार्यकर्ता जेल में हैं जबकि न्यायालयों ने हाथ खड़े कर दिए हैं।

प्रशांत महासागर में 7,500 से अधिक द्वीपों और 10 करोड़ की आबादी वाला फिलिपींस चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से नज़दीकी के कारण आर्थिक, भौगौलिक और सामरिक महत्व वाला देश है। 300 वर्षों तक स्पेन के उपनिवेशवाद और फिर दूसरे विश्व युद्ध तक बीसवीं शताब्दी के पहले भाग में अमरीका के कब्जे ने यहां की राजनीति पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। प्रशांत महासागर में अमेरिका का यह एक बेहद करीबी सहयोगी है और यहां अमेरिका का सैन्य अड्डा भी है। आज भारत और फिलि‍पींस दोनों अपने इतिहास के एक समान मोड़ पर खड़े हैं। दोनों देशों में दक्षिणपंथी लोकप्रिय सरकारों का उदय और तानाशाही प्रवृतियों का उभार आंदोलनों के लिए भारी चुनौती है और इन देशों में हो रहे घटनाक्रम पूरे विश्व में लोकतंत्र के भविष्य को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

Senator Leila De Lima listens to a PNP-CIDG officer who served the warrant for her arrest at the Senate grounds in Pasay. February 24, 2017. (Source: Wikipedia)

फ़िलिपींस के सबसे महत्वपूर्ण विचारकों में से एक और संसद के पूर्व सदस्य वाल्डेन बेलो कहते हैं कि‍ मोदी और दुएर्ते के शासन को लोकप्रिय राजनीति (पॉप्युलिस्ट पॉलिटिक्स) का उभार नहीं कहना चाहिए, बल्कि इसे प्रतिक्रियावादी राजनीति का उभार कहना चाहिए क्योंकि इतिहासकाल में देखें तो इंदिरा गांधी की तानाशाही और मोदी सरकार की राजनीति में बड़ा फ़र्क़ है। उनका कहना है कि मौजूदा हालात में परिस्थितियां कितनी भी बुरी क्यों न हों, लेकिन मानवाधिकारों, जनतांत्रिक प्रक्रियाओं, और लोकतांत्रिक अधिकारों के हितों की रक्षा के लिए आक्रामक आंदोलन करना होगा और यह सिर्फ रक्षात्मक नहीं हो सकता है। एक विकल्प तैयार करना होगा जो इन संघर्षों से ही निकलेगा।

विपक्षी नेता और जेल में बंद सीनेटर लीला डी लीमा कहती हैं कि आज की स्थिति के लिए कहीं न कहीं मौजूदा जनतंत्र से लोगों का मोहभंग होना भी एक कारण्‍ है जो इन नये बाहुबली नेताओं की ओर लोगों को आकर्षित करता है। दुर्भाग्य से, कोई भी विश्वसनीय विकल्प अभी तक पैदा नहीं हुआ है और जब तक हमारे प्रयास इन बाहुबलियों के ख़िलाफ़ कोई मारक व्यवस्था नहीं खोज लेते, हम संघर्षरत रहेंगे।

वह आख़िर में कहती हैं: “यह मामला बेहद पेचीदा है। सत्ता में उनकी निरंतरता को यदि हम इस बात से कम कर के आँकें, कि‍ उन्होंने जनता को चालाकी, छल कपट और दिग्भ्रमित करके जीता है तो हम बड़ी गलती कर रहे होंगे। यह बात भारत के संघर्षों के लिए भी उतनी ही लाज़ि‍मी है।“


मधुरेश कुमार जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्‍वय (NAPM) के राष्ट्रीय समन्वयक हैं और मैसेचूसेट्स-ऐमर्स्ट विश्वविद्यालय के प्रतिरोध अध्ययन केंद्र में फ़ेलो हैं।


About मधुरेश कुमार

मधुरेश कुमार जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समनवय के राष्ट्रीय समन्वयक हैं और मैसेचूसेट्स-ऐमर्स्ट विश्वविद्यालय के प्रतिरोध अध्ययन केंद्र में फ़ेलो हैं (https://www.umass.edu/resistancestudies/node/799)

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7 Comments on “देशान्‍तर: फ़िलिपींस में बढ़ता राष्ट्रवाद और बाहुबली राष्ट्रपति दुएर्ते की अजब दास्ताँ”

  1. ऊपर के लेख में एक और वाक़या जोड़ा जा रहा है। मीडिया के ऊपर हमलोंग का ज़िक्र मैंने किया था उसमें Rappler मीडिया एजेन्सी की बात थी जो की राष्ट्रपति दुएर्ते के निशाने पर शुरू से हैं, अभी दो दिन पहले उनके प्रधान सम्पादक मारिया रसा और पूर्व रिपोर्टर रेनल्डो सेंटोस जूनियर को वहाँ के एक अदालत ने “साइबर परिवाद” cyber libel का दोषी पाया है। सोमवार को जारी किए गए एक फैसले में, अदालत ने समाचार वेबसाइट रैपर के कार्यकारी संपादक, रेसा और सेंटोस जूनियर को कम से कम छह महीने और एक दिन के लिए अधिकतम छह साल की जेल की सजा सुनाई। इसने उन्हें अपील को लंबित करते हुए जमानत देने की अनुमति दी। वे फिलीपींस के पहले दो पत्रकार हैं जिन्हें साइबर परिवाद के लिए दोषी ठहराया गया है।

    पढ़िए पूरी खबर यहाँ https://www.aljazeera.com/news/2020/06/philippine-court-rappler-maria-ressa-guilty-cyberlibel-200614210221502.html

  2. Знаете ли вы?
    Рассказ Стивенсона о волшебной бутылке был опубликован почти одновременно на английском и самоанском языках.
    Китайскую пустыню засадили лесами и открыли там фешенебельный курорт.
    В роскошном болонском фонтане горожане стирали бельё и справляли нужду.
    Потомок наполеоновского генерала стал Героем Советского Союза.
    Команды тренера года АБА и НБА ни разу не стали в них финалистками.

    arbeca

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