सांकेतिक तस्वीर

अंग्रेजीः लोकतंत्र बना जादू-टोना

यह देश के 10-15 प्रतिशत मुट्टीभर लोगों के हाथ का खिलौना बन गया है। ये लोग कौन हैं? ये शहरी हैं, ऊँची जाति के हैं, संपन्न हैं, शिक्षित हैं। इनके भारत का नाम ‘इंडिया’ है। एक भारत में दो भारत हैं। जिस भारत में 100 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं, वह विपन्न, अल्प-शिक्षित है, पिछड़ा है, ग्रामीण है, श्रमजीवी है।

Read More

मत भूलिए, आपकी मातृसंस्था भी एक शताब्दी से आंदोलन ही कर रही है: एक आंदोलनकारी का PM के नाम खुला पत्र

अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे लोगों ने भी आजादी के लिए आंदोलन किया, तो क्या वे भी आपकी नज़र में आंदोलनजीवी हैं? ढाई महीने से अधिक हो गए, देश का किसान दिल्ली की सड़कों पर कड़कड़ाती ठंड में पड़ा है। अपने वाजिब हक के लिए सरकार के सामने हाथ फैलाना गुनाह है?

Read More

अगर हनुमान जी इस देश का बजट बनाते तो कैसा होता?

भारत सरकार ने कुछ दिनों पहले कहा था कि सरकार हवाई यात्रा की दरों को कम करने का लक्ष्य बना रही है और उसका उद्देश्य है कि हवाई चप्पल पहनने वाला व्यक्ति भी हवाई जहाज़ से यात्रा करे। लेकिन अभी तक हवाई चप्पल पहनने वाला व्यक्ति चप्पलें सिलवाकर थक गया लेकिन सरकार का न्यौता नहीं आया हवाई जहाज़ पर चढ़ने का। हनुमान जी के पास तो उनके शरीर में इंस्टाल विमान था और पलक झपकते ही समंदर पार कर जाते, उड़कर संजीवनी ले आते।

Read More

बढ़ा है लूट का कारोबार, ऐ ज़ुल्म! आ मुझे मार : दुनु रॉय की एक कविता

ऐ ज़ुल्म मुझे मार, कई-कई बार गैस से बहा आंसू ज़ारो कतार, लहू से रंग दे अपनी तलवार चीर दे योनी फोड़ ये कपार ऐ ज़ुल्म आ मुझे मार कर …

Read More

लाइट की चकाचौंध और दीवारों के रंगरोगन के पीछे बिलखता हरिद्वार का कुम्भ

मेला प्रशासन जब सभी कामों को करने में नाकाम हो गया तो साधू संतों के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाया और मेले को 2022 में करने की गुहार करने लगा. लेकिन संतों के ना मानने पर सूक्ष्म में मेले को सम्पूर्ण करने की बात साम, दाम, दंड, भेद से मनवा ली गयी!

Read More

कौन वह भारत-भाग्य-विधाता है!

‘गण’ मूलतः वैदिक शब्द था। वहाँ ‘गणपति’ और ‘गणनांगणपति’ ये प्रयोग आए हैं। इस शब्द का सीधा अर्थ समूह था। देवगण, ऋषिगण पितृगण-इन समस्त पदों में यही अर्थ अभिप्रेत है। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक गांव एक गण समूह होता था वह अपने कार्यों और उत्तरदायित्वों के प्रति स्वयं उत्तरदायी होता था। उसके ऊपर किसी अन्य का कोई अधिकार नहीं होता था। भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार उस भूभाग के समस्त गण गणपति का चुनाव करते थे जो उन्हें आवश्यकतानुसार सलाह देता था विशेषकर खेती और पशुओं की समृद्धि के लिए।

Read More

किसान आंदोलन के नेतृत्व को रचनात्मक तरह से अपनी शांतिपूर्ण छवि को वापस हासिल करना होगा

योगेंद्र यादव जैसे नेता तो इल्जाम लगाए जाने के पहले से ही गलती मानने और कृत्य की निंदा करने को तैयार बैठे थे जैसे चौरी-चौरा कांड हो गया हो और गाँधी जी की तर्ज पर इन्हें भी आंदोलन वापस लेने का ऐतिहासिक मौका मिला हो। जो हुआ, वैसा होना एक बड़ी चूक है लेकिन इतनी बड़ी भी नहीं कि आप सरकार द्वारा परोसी आंदोलन विरोधी हर खबर को सच मान लें और उसी रौ में बह जाएं।

Read More

धार्मिक आधार पर राजनीति करना सुभाष बोस की नज़र में ‘राष्ट्र के साथ द्रोह’ था!

सुभाषचंद्र बोस ने काँग्रेस के अध्यक्ष बनने पर इस ख़तरे को महसूस किया और 16 दिसंबर 1938 को एक प्रस्ताव पारित करके काँग्रेस के संविधान में संशोधन किया गया और हिंदू महासभा तथा मुस्लिम लीग के सदस्यों को काँग्रेस की निर्वाचित समितियों में चुने जाने पर रोक लगा दी गई।

Read More

जब राजभवन भी झोपड़ी बन जाए: दलित साहित्य के एक संरक्षक राजनेता माता प्रसाद का जीवन

उन्हें बड़े पदों पर होने और रहने का गुमान भी नहीं था। माता प्रसाद के जीवन में जो भी था, उसमें व्यक्तिगत कुछ था ही नहीं। जो भी था वह पूरे समुदाय के लिए सार्वजनिक था।

Read More