तिर्यक आसन: बधाई हो! हिंदी में पाठकों से अधिक संख्या साहित्यकारों की हो गई है

बधाई देने के लिए कई प्रकाशकों, संपादकों, साहित्यकारों ने ‘पेड स्लीपर सेल’ बना रखी है। ‘पेमेंट’ नकद के रूप में नहीं होता। कई अन्य रूपों में होता है। बधाई की जितनी नई उपमा, उतना अधिक पेमेंट।

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तिर्यक आसन: शुद्ध फ़कीर, संकर फ़कीर और साइलेन्ट फ़कीर

इस देश में जिसके भी साथ बेचारा जुड़ा उसकी दुर्दशा तय है। बेचारी गंगा, बेचारी गाय, बेचारी स्त्री, बेचारे आदिवासी, बेचारे दलित, बेचारे अल्पसंख्यक, बेचारे किसान, बेचारे मजदूर, बेचारी भारत माता। इनकी बेचारगी ‘प्रोडक्ट’ बन जाती है। प्रोडक्ट अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बिकता है।

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तिर्यक आसन: मेरी दो महत्वाकांक्षाएँ चोरी की और बाकी सब साइलेंट कॉपी!

हजार-दस हजार करोड़ की चोरी को ‘करप्शन’ कहा जाता है। दस-बीस रूपये की चोरी को चोरी कहा जाता है। बड़ी चोरी करने वाला ‘करप्ट’ होता है। छोटी चोरी करने वाला चोर। करप्ट एलिट वर्ग से है, तो हजार-दस हजार करोड़ की चोरी करने के बाद भी उसका वर्ग नहीं बदलता। वो कैपिटलिस्ट ही रहता है। दस-बीस रूपए की चोरी करने वाले का वर्ग बदल जाता है।

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तिर्यक आसन: योगास्कर गोज़ टु मिस्टर प्राइम मिनिस्टर!

विदेशियों से क्या उम्मीद की जाय, जब देश वाले ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का कोई अवार्ड नहीं दे रहे। ‘डेली सोप्स ऑपेरा’ वालों को तो दे ही देना चाहिए। उन्हीं के सोप्स के कारण कठपुतली का रोना खाबसूरत लगता है।

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तिर्यक आसन: बुद्धि की शव-साधना में विश्वगुरु

निजीकरण की नींव तैयार करने में गारा-मिट्टी ढोने वाले कोरोना की दूसरी लहर में ईवेंट जी से नाराज हैं। जब वे कोरोना के इलाज के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल में जाते हैं, तो बिल देखकर सोचने लगते हैं- क्या ये वही बुलंद इमारत है, जिसे तैयार करने के लिए हमने गारा-मिट्टी ढोयी थी?

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तिर्यक आसन: कुत्ते, फ़कीरी और कान से सूंघने वाले दीवान जी

शुद्ध फकीर को पालने का जतन नहीं करना पड़ता। वो सर्वहारा की तरह पल जाता है। शुद्ध फकीर समाज की गंदगी साफ करता है। संकर फकीर की गंदगी समाज को साफ करनी पड़ती है।

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तिर्यक आसन: सम्मान की मास्कवादी पढ़ाई उर्फ चरण पुजाई का साहित्य

मैंने टाइम टेबल बनाकर सम्मान की पढ़ाई करने वालों की प्रतिस्पर्धा देखी है। वे टाइम टेबल में सम्मान के घंटों का भी वर्णन लिखते हैं। पढ़ाई का घंटा कम-बेसी हो जाता है, पर सम्मान का घंटा टस से मस नहीं होता- पढ़ाई में हुई कमी चरण पुजाई पूरा कर देगी।

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तिर्यक आसन: अहम ब्रह्मास्मि उर्फ नित्य दुखवादियों के लिए एक अदद सुख

सत्ता शिकायत का ही सुख ‘भोगती’ है। सत्ता चाहे तो एक दिन में ही सभी शिकायतों का अंत कर दे, पर ऐसा कर देने से उस पर नागरिकों की निर्भरता नाममात्र की हो जाएगी। या सत्ता की आवश्यकता ही खत्म हो जाए। सत्ता के लिए शिकायत का सुख छोड़ना उसके अंत की घोषणा है। दोबारा मनुष्य की स्वतंत्रता की शुरूआत है।

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तिर्यक आसन: पूंजीवाद का भूत, ब्राह्मणवाद का मैनेजर और जजमान क्रांतिकारी का लोटा

पूँजीवाद और भूत के बीच बाप-बेटे का रिश्ता है। भूत के खून में पूँजीवाद है। पूँजीवाद ने अपने ‘मैनेजर’ ब्राह्मणवाद की आर्थिक तरक्की के लिए कई उत्पादों की रचना की है। भूत उन उत्पादों में से एक है।

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तिर्यक आसन: आत्मा से ब्रह्म तक पसरा श्रेष्ठता का भूत

आधुनिक कथाओं में मानवताविरोधियों को चकमा देने वाले पात्रों की संख्या अत्यधिक है, जो अपने प्राण और आत्मा को शरीर से बाहर रखते हैं। आधुनिक दौर के ऐसे पात्र रियल स्टेट, फिल्म निर्माण, मीडिया इंडस्ट्री, धर्म आदि नामक गुल्लक में धन नामक अपने प्राण को सुरक्षित रखते हैं। गुल्लक में प्राण सुरक्षित रखने के बाद चिंता हुई, आत्मा कहाँ छुपाकर रखी जाए।

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