बात बोलेगी: पालतू गर्वानुभूतियों के बीच खड़ी हिंदी की गाय

आप हिन्दी बरतते हैं क्योंकि आपको आसान लगता है। आप हिन्दी पढ़ते हैं, लिखते हैं, समझते हैं तो इसलिए क्योंकि उस भाषा में आप खुद को सहज पाते हैं और इसलिए भी कि वो आपके काम की ज़रूरत है और इसलिए भी कि क्योंकि उसमें आपको काम करने को कहा गया है। तब दुनिया में ऐसी कौन सी भाषा है जो इन तीनों में परिस्थितियों में ही बरती न जाती हो?

Read More

बात बोलेगी: क्या आप प्रबुद्ध वर्ग से हैं? तो जज साहब का कहा मानिए…

अगर ऐसी कोई युक्ति निकाल सकें कि दो दिन पीछे जा सकें तो लखनऊ में आयोजित बहुजन समाज पार्टी के प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में शिरकत कर आइए, जहां इसी तरह के पर्यायवाची का सार्वजनिक रूप से निर्माण हुआ है। पहले यह सम्मेलन ब्राह्मण सम्मेलन था, उसे कुछ रोज़ पहले प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कह दिया गया। इसका तात्पर्य यही हुआ कि जो बौद्धिक हैं वो ब्राह्मण हैं और इसके उलट व समानान्तर- जो ब्राह्मण हैं वो बौद्धिक हैं। इसी तर्ज पर जो आलोचना करें, सलाह दें, वो बुद्धिजीवी हैं। जो बुद्धिजीवी हैं वो सलाह दें और आलोचना करें!

Read More

बात बोलेगी: बिकवाली के मौसम में कव्वाली

आर्थिक विभाजन, सामाजिक विभाजन, सांप्रदायिक विभाजन, वैचारिक विभाजन और कुछ नहीं तो रंग, कद, काठी, नाक की सिधाई, चपटाई, मोटाई के आधारों पर मौजूद विभाजन सरकारों के लिए सबसे मुफीद परिस्थितियां हैं। इनके रहने से एक ऐसी एकता का निर्माण होता है जिससे सार्वजनिक संपत्ति को अपना मानने की भूल लोग नहीं करते।

Read More

बात बोलेगी: अपने-अपने तालिबान…

एक समय में दो देशों को देखना, उनकी एक सी नियति को देखना, उनके एक से अतीत को देखना और उनके एक से भविष्य को देखना असहज करता है लेकिन आँखों का क्या कीजिए जो समय के आर-पार यूं ही वक़्त की मोटी-मोटी दीवारों को भेद लेती हैं। इन्हें भेदने दीजिए ऐसी दीवारें जिनके पार हमारा बेहतर भविष्य कुछ आकार ले सकता है।

Read More

बात बोलेगी: ‘कम्पल्शन’ के दरबार में ‘कन्विक्शन’ का इकरार

इस भारतवर्ष की सृष्टि में जब सब कुछ आपकी मर्ज़ी से ही हो रहा है तो क्या कोरोना की भेंट चढ़ गए लोग भी आपकी ही इच्छा थी? क्या ऑक्सीज़न के लिए तरसते और उसके लिए भटके लोगों के चित्र आपकी ही लीला थी? नोटबंदी से लेकर जीएसटी और फिर देशव्यापी लॉकडाउन में जो लोग अपनी अपनी देह से मुक्त हुए क्‍या वह भी आपकी कोई रचना थी? आपका ये ‘कंविक्शन’ कितनी लाशों के बाद पूरा होगा, हुजूर?

Read More

बात बोलेगी: पापड़ी चाट के बहाने ताज़ा बौद्धिक विमर्श

जहां तक सब जानते हैं, कोई बुरा महसूस करने के लिए इस तरह प्रधानमंत्री नहीं बनता। आप भी नहीं बने होंगे। तो क्यों बार-बार ऐसा करते हैं? अच्छा कीजिए कुछ, तो लोग भी अच्छा बोलेंगे। आप भी अच्छा महसूस करेंगे।

Read More

बात बोलेगी: बिगड़ा हुआ है रंग जहान-ए-ख़राब का…

मौसम पर ये तोहमत लगती है कि एक-सा नहीं रहता। माशूकाएं अपने आशिक पर ये संदेह करती रहती हैं कि ‘मौसम की तरह तुम भी बदल तो न जाओगे’? मौसम …

Read More

बात बोलेगी: ‘लोक’ सरकारी जवाब पर निबंध रच रहा है, ‘तंत्र’ खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है!

बात यहां केवल उन तीन सौ या दो हज़ार लोगों की नहीं होना चाहिए जिनके नाम छाप रहे हैं। बात उनकी भी होना चाहिए जिनके अंगूठे के निशान और आँखों की पुतलियों की आभा नुक्कड़ की दुकानों पर सरेआम बिक रही है। दो किलो धान या चावल के बदले, अपना ही टैक्स अदा करने के बदले, विदेश जाने की ख़्वाहिश के बदले हम सब ने अपनी-अपनी हैसियत और औकात के हिसाब से अपनी निजता खुद बेची है।

Read More

बात बोलेगी: आप पहले पैदा हो गए हैं, केवल इसलिए आगे किसी और के पैदा होने का अधिकार छीन लेंगे?

जनसंख्या नियंत्रण के विचार मात्र को भी इसी कसौटी पर परखने की ज़रूरत है कि क्या इस देश में पहले जन्म ले चुके लोगों को मात्र पहले आ जाने की वजह से ये अधिकार हासिल हैं कि भावी पीढ़ियों को आने ही न दिया जाए?

Read More

बात बोलेगी: जिन्हें कहीं नहीं जाना, उन्हें यहीं पहुंचना था…!

अब केवल दो काम ही दिये जा रहे हैं मंत्रियों को। एक सुबह उठते ही मोदी जी के ट्वीट को रीट्वीट करना। आइटी सेल से आयी किसी पोस्ट को री-पोस्ट करना। थैंक यू अभियान में घर बैठे-बैठे हिस्सा लेना और वक़्त पर राहुल गांधी पर ‘बार्क’ करना।

Read More