हर्फ़-ओ-हिकायत: 2014 में स्वतंत्र हुए लोगों का ऐतिहासिक संकट

दरअसल, 1757 के प्लासी के युद्ध और 1764 में बक्सर के युद्ध के बाद कंपनी ने भारत की सीमा में स्थित तमाम देशों को सहायक सेना संधि से डील कर लिया था। इस भारी मूर्खता को 1857 की आजादी की पहली जंग कहना अदभुत इतिहासबोध है। जिन्हें ये नहीं पता है कि 1858 में ब्रिटिश सरकार ने भारत का शासन अपने हाथ में लिया था वे अब बता रहे हैं कि 1947 में भारत को आजादी ‘भीख’ में मिली है।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: ‘भंडारी’ पत्रकारों की मूर्खताओं का इतिहास पहले ही लिखा जा चुका है!

हर्फ-ओ-हिकायत में चूंकि हम वर्तमान को इतिहास के आईने में देखने-समझने की कोशिश करते हैं इसलिए प्रदीप भंडारी मार्का पत्रकारिता जिनको भी अच्छी या बुरी लगती है उन सबको ये जानना चाहिए कि इस पेशे में कितनी नैतिकता है और कितना पाखंड।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: सौ साल में गाँधी के आदर्शों का अंतर और उनके नये बंदर

आज जब युवाओं का एक तबका मुगल, अंग्रेजी या वामपंथी इतिहास-लेखन का विरोध करते हुए गांधीजी के लिए अपशब्दों का प्रयोग करता है तो उन्हें एक सवाल खुद से करना चाहिए कि बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, वल्लभभाई पटेल और राजेन्द्र प्रसाद जैसी शख्सियतों ने उस दौर में क्यों गांधी को अपना नेता चुना?

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हर्फ़-ओ-हिकायत: पंजाब के नये मुख्यमंत्री क्या इतिहास को चुनौती दे रहे हैं?

पूरे देश में सबसे ज्यादा दलितों की आबादी पंजाब में ही है लेकिन विडंबना देखिए इन डेरों की वजह से बीएसपी या कोई और दलित पार्टी यहां कभी खड़ी नहीं हो सकी। दलित सिर्फ डेरा प्रमुख के आदेश पर वोट डालते रहे।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: हिन्दी दिवस पर सितारा-ए-हिन्द राजा शिवप्रसाद की याद

शिवप्रसाद बाबू सामाजिक तौर पर बहिष्कृत किए जाते रहे क्योंकि वे अंग्रेजों के पक्षधर थे। यहां तक कि उनके शिष्य़ भारतेन्दु हरिश्चंद्र का गुट भी उन्हें सरकारी मुलाजिम कहकर खारिज करता रहा।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: सात बनाम सत्तर बनाम सात सौ साल के बीच फंसे युवाओं का इतिहास-रोग

मनोज मुंतशिर शानदार लिखते हैं और बहुत शानदार तरीके से वे राष्ट्रीय बहस के केन्द्र में आ गए हैं, लेकिन इस्लाम के भारत अभियान के जिस हिस्से को वो रक्तरंजित बताकर अपनी मार्केटिंग कर रहे हैं उसके आगे-पीछे के इतिहास में उसी मिट्टी में मिल जाने की इतनी कहानियां हैं कि मनोज को सोचना पड़ जाएगा कि उन्हें किस कहानी पर यकीन है।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: तालिबान बनाम आठ सौ साल पुराने ‘अखंड भारत’ की इकलौती महिला सुल्तान

तालिबान द्वारा महिलाओं के खिलाफ घोर हिंसा को देखकर यकीन नहीं होता है कि 1192 में मोहम्‍मद गोरी के हिन्दुस्तान फ़तह का अभियान शुरू करने के दस वर्ष बाद ही गोरी के गुलाम इल्‍तुतमिश की सैन्य शासन व्यवस्था की कमान उसकी बेटी रजिया के हाथों में थी।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: कालेलकर आयोग के आईने में ओबीसी आरक्षण का अंतिम दांव

ऐतिहासिक विवादों वाले बीते मॉनसून सत्र में सर्वसम्मति से पास ओबीसी कानून में संशोधन ने  राज्य सरकारों के ये अधिकार दे दिया है कि वे अपने राज्य के लिए अन्य …

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हर्फ़-ओ-हिकायत: खेल के मैदान में सियासत का मास्टर स्ट्रोक

ध्यानचंद की लोकप्रियता का अंदाजा केवल इस बात से लगाइए कि वे आज से करीब सौ साल पहले 1928 के दौर के खिलाड़ी हैं। उनके बाद दारा सिंह, पीटी उषा, सुनील गावस्कर, कपिल देव और क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर जैसे बहुत से नाम आये, लेकिन वो अदब और वो सम्मान किसी को नहीं मिला दो दद्दा को मिला।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: राष्ट्रवाद के भीतर पनपता हिंसक राज्यवाद और अपने अतीत से विमुख समाज

जिन राज्यों के बीच सीमा विवाद या जल विवाद है उनका अस्तित्व ही ज्यादा से ज्यादा पचास वर्षों का है। ऐसे में अगले पचास वर्षों में कौन सा राज्यवाद आकार लेगा ये कहना मुश्किल है, लेकिन इतिहास बता रहा है कि हमारे समाज को अपने अतीत में कोई दिलचस्पी नहीं है या फिर हमने इतिहास लेखन में भारी गलती कर दी है, जो लोगों को प्रेरणा देना तो दूर समझ ही में नहीं आ रहा है।

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