बूढ़े होते एक राष्ट्र का लोकतांत्रिक अल्जाइमर
वर्तमान में प्रधानमंत्री को ‘सुप्रीम लीडर’ मानता मीडिया, हर एक आंदोलन को भूलती जनता, विरोध के कर्तव्य को इतिश्री कह चुका विपक्ष, चुनाव पूर्व वादों को भूलती सरकारें और प्राकृतिक न्याय की अवधारणा से विचलित न्यायपालिका इस रोग से पूर्णत: ग्रसित हैं।
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