पंचतत्व: अवध की एक नदी का वध


भारत दैट इज़ इंडिया में हमें जिसकी दुर्गति करनी होती है हम उसको मां कह देते हैं. गंगा मां की मिसाल तो आपको पता है ही. अपन दूसरा काम यह करते हैं कि उसको सजाने-धजाने में, चूनर चढ़ाने में या फिर आरती करने में लग जाते हैं. गंगा की आरती तो दशाश्वमेध पर होती ही थी, अब तो सुना कानपुर के गंधाते घाटों पर भी होती है. एक और फैशन रिवट फ्रंट बनाने का भी है. रिवर फ्रंट का काम साबरमती के बाद गोमती में भी हुआ है.

आम तौर पर यही माना जाता है कि हिंदुस्तान में जिस क्षेत्र को प्रकृति से जो मिला वह ईश्वर का वरदान है, पर शिव पुराण में एक नदी को महादेव ने खुद आज्ञा दी कि वह मां बन कर लोगों का पालन-पोषण करे.

शिव पुराण में ही भगवान शिव ने खुद नर्मदा और गोमती को अपनी पुत्रियां माना है. वहीं गोमती, जिसे ऋग्वेद के अष्टम और दशम मण्डल में सदानीरा (बारहमासी) बताया गया है, उत्तर प्रदेश के अवध इलाके को मिला ईश्वर का वरदान ही है. हमें अब ऐसे वरदानों की परवाह ही कहां है!

असल में, नदियां महज पानी को ढोने वाला रास्ता नहीं होती. इनके किनारे पूरा इतिहास, पूरी विरासत और एक तहजीब का किस्सा होता है.

गोमती नदी तो साक्षी रही होगी कि कैसे भगवान राम के छोटे भाई ने अपनी नगरी इसके किनारों पर बसायी होगी. गोमती ने देखा होगा कि कैसे लव और कुश ने अपनी मां को जंगल में छोड़ देने के अपने पिता के फैसले का विरोध किया होगा. अगर पौराणिक कहानियों में आपकी आस्था है, तो आपको यह भी पता होगा कि गोमती के किनारे भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम या हलधर ने अपने अपराध का प्रायश्चित किया था. भगवान बुद्ध ने इसके तटों पर विश्राम किया होगा, धम्म के उपदेश दिए होंगे. चीनी यात्री ह्वेनसांग इसके किनारों से होकर गुजरा होगा.

कैसे पृथ्वीराज चौहान के शत्रु बने राजा जयचंद ने मशहूर योद्धा बंधुओं आल्हा-ऊदल को पासी और भारशिवों का दमन करने के लिए यहां भेजा था. मुगल बादशाह अकबर ने यहीं पर तो वाजपेय यज्ञ कराने के लिए एक लाख रुपये ब्राह्मणों को दिये थे और तब गोमती का तट वैदिक ऋचाओं से गूंजा होगा. तुलसी की प्रिय नदी यही धेनुमती तो थी.

यही धेनुमती आज गोमती है, जिसका पानी शोधन के बाद भी इस्तेमाल के लायक नहीं बचा.

इस नदी का यह हाल नालों का पानी बिना ट्रीटमेंट के सीधे नदी में गिराने से हुआ है. नतीजतन, गोमती नदी में पेट की बीमारियों के लिए जिम्मेदार कॉलीफोर्म बैक्टीरिया ट्रीटमेंट को लिए जाने वाले पानी के मानक से 34 गुना अधिक है.

गोमती नदी उत्तर प्रदेश की सबसे अधिक प्रदूषित नदी बन चुकी है. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के आंकड़े देखें तो इस पूरे साल यानी 2019 के सभी महीनों में हालात खराब ही मिले है.

जनवरी से जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक केवल कॉलीफोर्म ही नहीं पानी में जलीय जीवन बनाए रखने के लिए जरूरी घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा भी न्यूनतम हो गई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि जलीय जीवन ही नदी के पानी के शुद्ध और प्रदूषणमुक्त होने का संकेत होता है. पानी में ऑक्सीजन नहीं होगी तो जलीय जीवन बच नहीं पाएगा.

इतना ही नहीं, अंग्रेजी के अखबार न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि गोमती नदी में भारी धातुओं की काफी मात्रा मौजूद है. इस साल पहली बार लखनऊ में गोमती नदी के पानी में आर्सेनिक की मात्रा भी मिली है और जाहिर है नदी संरक्षण की तमाम पहलों को इससे धक्का पहुंचा है.

यूपीपीसीबी के मुताबिक, पिछले कई बरसों के दौरान गोमती नदी की धारा में 35 से 40 फीसदी तक की कमी आई है. अखबार में छपी रिपोर्ट कहती है कि गोमती नदी की धारा में लेड, कैडमियम और तांबे जैसे धातुओं की मात्रा की मौजूदगी है जो काफी खतरनाक है. इन धातुओं की मौजूदगी की मात्रा सतही जल के मुकाबले नदी की तली में कई गुना अधिक है.

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इनमें भी तांबे की मात्रा कैडमियम, आर्सेनिक और लेड के मुकाबले काफी अधिक है. वैज्ञानिकों का कहना है कि कैडमियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, मर्करी, मैंगनीज, निकल, लेड, टिन और जिंक जैसे धातु अगर 5 से अधिक के घनत्व में मौजूद हों तो काफी कम मात्रा में होने पर भी पर्यावरण के लिए काफी घातक होते हैं.

पेयजल के जरिये भोजन श्रृंखला में घुसने वाला आर्सेनिक कैंसर और त्वचा रोग पैदा करता है जबकि कैडमियम जैसा धातु लीवर और किडनी को क्षतिग्रस्त कर देता है.

असल में, सिर्फ नवाबों के शहर लखनऊ में ही 36 गंदे नाले गोमती में गिरते हैं. शहर के आसपास के चीनी मिल से निकले अपशिष्ट भी इसी नदी में प्रवाहित होते हैं और जाहिर है इस नदी को काफी गंदा और प्रदूषित कर देते हैं.

गोमती नदी में घुले हुए ऑक्सीजन की मात्रा 1 मिग्रा/लीटर या कहीं-कहीं तो शून्य है जबकि सामान्य जलीय जीवन के लिए इसे 4 मिग्रा/लीटर होना चाहिए.

गोमती को तो अवध को सींचने का काम दिया गया था, पर इसके जन्मस्थान पीलीभीत में ही इसका वध होने लगता है. गोमती किसी ग्लेशियर का पानी लेकर नहीं चलती, यह भूजल की वजह से बनती है और उसी से रिचार्ज होकर नदी बन जाती है. पर, पीलीभीत में ही इसके उद्गम पर अवैध कब्जों ने इसकी सांसें रोकनी शुरू कर दी हैं.

गोमती की सहायक नदियों का इससे भी बुरा हाल है. बंडा-खुटार रोड पर झुकनिया नदी जलकुंभी, प्लास्टिक की थैलियों और गंदगी से भरी हुई है जबकि बंडा-पुवायां रोड पर भैंसी नदी पूरी तरह सूख चुकी है.

गोमती के बेसिन में साठा धान यानी गरमियों में लगाई जाने वाली धान के लिए जरूरी पानी नदी से ही उलीचा जाता है. नदी को जीवन देने वाले भूजल के स्रोत सूखते जा रहे हैं. नदी का आंचल खाली करके और उसके मौजूदा बहाव में अपनी गंदा जल गिराकर हम उसका वध कर रहे हैं.

हां, उत्तर प्रदेश में सरकारों ने लखनऊ शहर में इस मरती हुई नदी को रिवर फ्रंट के जरिये सुंदर बनाने का काम किया. खूबसूरत घाट बनाकर रंग-रोगन भी किया गया है. कुछ ऐसे ही जैसे हमारे बिहार में एक कहावत हैः ऊपर से फिट-फाट, नीचे से मोकामा घाट.

हमें यह जानने की जरूरत है कि गोमती अब अपनी आखि‍री सांसें गिनने लगी है. गोमती बहे ही नहीं तो काहे की नदी? नदी के घाट ही नदी नहीं होते. उसको सुंदर बनाने की बजाय साफ बनाया जाना जरूरी है. हम अब भी नहीं चेते, तो अवध की इस नदी के वध के भागीदार होंगे.



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