कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ किसानों के सफल चक्का जाम का व्यापक असर


अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और छत्तीसगढ़ किसान सभा के आह्वान पर मोदी सरकार द्वारा बनाये गए किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था सुनिश्चित करने, खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और ग्रामीण जनता की आजीविका बचाने तथा पूरे प्रदेश में सहकारी समितियों के माध्यम से 10 नवम्बर से धान की खरीदी शुरू करने की मांग पर प्रदेश में कई स्थानों पर किसानों और आदिवासियों ने सड़कों पर उतरकर रास्ते रोके, कृषि विरोधी कानूनों की प्रतियां और मोदी सरकार के पुतले जलाए और इन कॉर्पोरेटपरस्त कानूनों को निरस्त करने की मांग की।

आंदोलनकारी संगठनों ने केंद्र सरकार के बनाये कानूनों के दुष्प्रभावों को निष्प्रभावी करने के लिए राज्य के स्तर पर एक सर्वसमावेशी कानून बनाने की भी मांग की है। उल्लेखनीय है कि गुरुवार को 500 से अधिक किसान संगठनों द्वारा “कॉर्पोरेट भगाओ-खेती-किसानी बचाओ-देश बचाओ” के केंद्रीय नारे पर देशव्यापी चक्का जाम का आह्वान किया गया था। माकपा सहित प्रदेश की पांचों वामपंथी पार्टियों के कार्यकर्ता भी  इस आंदोलन के समर्थन में सड़कों पर उतरे। 

मोदी सरकार के कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ प्रदेश में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के बैनर तले 25 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए और कोरबा, राजनांदगांव, सूरजपुर, सरगुजा, रायगढ़, कांकेर, चांपा, मरवाही, बिलासपुर, धमतरी, जशपुर, बलौदाबाजार व बस्तर सहित 20 से ज्यादा जिलों में अनेकों स्थानों पर सड़क रोककर भारी विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम आयोजित किये जाने और मोदी सरकार के पुतले जलाए जाने की खबरें आयी हैं।

किसानों के इस चक्का जाम का प्रदेश में व्यापक असर देखने को मिला और राष्ट्रीय राजमार्ग सहित राज्य की सड़कें और विशेष रूप से गांवों को शहरों से जोड़ने वाली सड़कों पर आवागमन बाधित हुआ है। बिलासपुर-कोरबा और दुर्ग-राजनांदगांव हाईवे को सैकड़ों किसानों ने घंटों रोके रखा और पुलिस असहाय थी।

यहां जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला और छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते ने सफल चक्का जाम के लिए किसान समुदाय और आम जनता का आभार व्यक्त किया है और कहा है कि देश और छत्तीसगढ़ की जनता ने इन कानूनों  के खिलाफ जो तीखा प्रतिवाद दर्ज किया है, उससे स्पष्ट है कि आम जनता की नजरों में इन कानूनों की कोई वैधता नहीं है और इन्हें निरस्त किया जाना चाहिए। किसान संघर्ष समन्वय समिति के कोर ग्रुप के सदस्य हन्नान मोल्ला ने भी प्रदेश में इस सफल चक्का जाम के लिए किसानों को बधाई दी है। 

रायपुर में मोदी सरकार के कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ देशव्यापी किसान आंदोलन और छत्तीसगढ़ के किसानों की मांगों के साथ एकजुटता जताते हुए छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सभी घटक संगठनों के नेताओं और कार्यकर्ता घड़ी चौक स्थित अंबेडकर प्रतिमा पर इकट्ठे हुए और प्रदर्शन किया। इस एकजुटता प्रदर्शन में जेएनयू से आये कुछ छात्र भी पीएचडी अध्ययनरत प्रीति उमराव के नेतृत्व में शामिल हुए, जिन्हें इस विश्वविद्यालय के छात्रों ने विशेष रूप से छत्तीसगढ़ भेजा था। एकजुटता प्रदर्शन में संजय पराते, विजय भाई, कल्याण पटेल, जैकब,  बृजेन्द्र तिवारी, विजय भाई, विजेंद्र अजनवी, ए पी जोशी, धर्मराज महापात्र, अखिलेश एडगर, आत्माराम साहू,  एडवोकेट सादिक अली, नरोत्तम शर्मा, बिपाशा पाल, प्रियांशु, आदि शामिल थे।

आंदोलन की सफलता का दावा करते हुए इन संगठनों ने आरोप लगाया कि इन कॉर्पोरेटपरस्त और कृषि विरोधी कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। कृषि व्यापार के क्षेत्र में मंडी कानून के निष्प्रभावी होने और निजी मंडियों के खुलने से देश के किसान समर्थन मूल्य से वंचित हो गए हैं। चूंकि ये कानून किसानों की फसल को मंडियों से बाहर समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीदने की कृषि-व्यापार करने वाली कंपनियों, व्यापारियों और उनके दलालों को छूट देते हैं और किसी भी विवाद में किसान के कोर्ट में जाने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाते हैं, इसलिए ये किसानों, ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है। 

आंदोलनकारी संगठनों का मानना है कि समर्थन मूल्य पर सरकार यदि धान नहीं खरीदेगी, तो कालांतर में गरीबों को एक और दो रुपये की दर से राशन  में चावल-गेहूं भी नहीं मिलेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली पंगु हो जाएगी। इन कानूनों का असर सहकारिता के क्षेत्र की बर्बादी के रूप में भी नज़र आएगा। इसके साथ ही व्यापारियों को असीमित मात्रा में खाद्यान्न जमा करने की छूट देने से और कंपनियों को एक रुपये का माल अगले साल दो रुपये में और उसके अगले साल चार रुपये में बेचने की कानूनी इजाजत देने से कानून बनने के कुछ दिनों के अंदर ही कालाबाज़ारी और जमाखोरी बढ़ गई है और बाजार की महंगाई में आग लग है। 

उन्होंने कहा कि इन कानूनों को बनाने से मोदी सरकार की स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और किसानों की आय दुगुनी करने की लफ्फाजी की भी कलई खुल गई है। किसान नेताओं ने कहा कि कॉर्पोरेट गुलामी की ओर धकेलने वाले इन कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ देश के किसान तब तक संघर्ष करेंगे, जब तक इन्हें बदला नहीं जाता। 

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में किसान कांग्रेस सरकार की उन नीतियों के खिलाफ भी आंदोलित है, जिसने किसानों के हितों की रक्षा करने के वादे के बावजूद मंडी संशोधन अधिनियम में न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने तक का प्रावधान नहीं किया है और डीम्ड मंडियों के प्रावधान के जरिये केंद्र सरकार द्वारा मंडियों के निजीकरण के कॉर्पोरेटपरस्त फैसले का अनुमोदन कर दिया है। यही कारण है कि इस मौसम में मंडियों में भी किसान धान के समर्थन मूल्य से वंचित हो रहे हैं। इसके बावजूद सरकार नवम्बर माह में सोसाईटियों के जरिये खरीदी करने के लिए तैयार नहीं है, जिसके कारण प्रदेश के किसानों को 1000 करोड़ रुपयों से ज्यादा का नुकसान होने जा रहा है। आज के आंदोलन में सभी किसान संगठन 10 नवम्बर से धान की खरीदी शुरू करने और घोषित समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल की खरीदी को कानूनन अपराध घोषित करने की भी मांग कर रहे हैं।

(छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन की ओर से आलोक शुक्ला (मो : 099776-34040), संजय पराते (मो :094242-31650), विजय भाई (मो : 078286-58935)  सुदेश टीकम, रमाकांत बंजारे, नंदकुमार कश्यप, जिला किसान संघ (राजनांदगांव), छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्त्ता समिति), छत्तीसगढ़ किसान सभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), आदिवासी महासभा (बस्तर), दलित-आदिवासी मजदूर संगठन (रायगढ़), दलित-आदिवासी मंच (सोनाखान), भारत जन आन्दोलन, गाँव गणराज्य अभियान (सरगुजा), आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर), मेहनतकश आवास अधिकार संघ (रायपुर), जशपुर जिला संघर्ष समिति, राष्ट्रीय आदिवासी विकास परिषद् (छत्तीसगढ़ इकाई), जशपुर विकास समिति, पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), उद्योग प्रभावित किसान संघ (बलौदाबाजार), रिछारिया केम्पेन, आदिवासी एकता महासभा (आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच), छत्तीसगढ़ प्रदेश किसान सभा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति (धमतरी), आंचलिक किसान सभा (सरिया), राष्ट्रीय किसान मोर्चा (रायगढ़) आदि संगठनों की ओर से जारी संयुक्त विज्ञप्ति)


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