महाराष्ट्र का इकलौता केंद्रीय विश्वविद्यालय “महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय” प्रोफेसर रजनीश शुक्ल के कुलपति का कार्यभार संभालते ही अकादमिक भ्रष्टाचार के केंद्र में तब्दील होता जा रहा है। कुलपति के संरक्षण में विश्वविद्यालय प्रशासन बेशर्मी के साथ अकादमिक पारदर्शिता के झूठे दावे कर रहा है जबकि सच्चाई यह है कि पिछले साल से प्रो. शुक्ल के कार्यभार संभालते ही विश्वविद्यालय में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होने लगीं।
पिछले वर्ष में कांशीराम की पुण्यतिथि मनाने व प्रधानमंत्री को देश की समस्याओं को लेकर ख़त लिखने के कारण 6 छात्रों को निष्काषित कर दिया गया था। पिछले वर्ष पी-एचडी प्रवेश परीक्षा में भी प्रशासन की ओर से धांधली की गयी थी, जिसके कारण जनसंचार, समाजकार्य की प्रवेश परीक्षा को निरस्त करना पड़ गया था। इस घटना के खिलाफ 8 विद्यार्थियों के समूह ने नागपुर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। वे अभी तक सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं।
Entrance_Exam_Office_Order_30_09_2020इस वर्ष भी छात्र संगठनों व विद्यार्थियों के समूह ने प्रवेश-परीक्षा की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करते हुए मेल के माध्यम से कुलपति, कुलसचिव व सम्बंधित विभागों से शिकायत कर निवारण करने का आवेदन किया है लेकिन उनकी शिकायत को दूर करने की जगह विश्वविद्यालय प्रशासन अपने तानाशाही रवैये पर अड़ा हुआ है।
हिंदी विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया में खामियों को देखते हुए छात्र संगठन आइसा (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एन.साई बालाजी ने मेल के माध्यम से सम्बंधित कार्यालय में शिकायत दर्ज करवाते हुए आपत्ति दर्ज कर निवारण करने का आग्रह किया है।
शिकायत के अनुसार सम्पूर्ण प्रवेश प्रक्रिया में कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ला के इशारे पर महामारी की आड़ में नियम-परिनियम को ताख पर रखकर विश्वविद्यालय प्रशासन मनमाने ढंग से ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा का आयोजन दिनांक 10 व 11 अक्टूबर 2020 को दो पाली में करने जा रहा है। इस खेल में विश्वविद्यालय के सभी प्रशासनिक पदाधिकारी कुलपति के कठपुतली बने हुए हैं जो परीक्षा की पारदर्शिता को दरकिनार कर तानाशाही ढंग से परीक्षा संपन्न करवाने में लगे हुए हैं।
हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के सत्र 2020 में विभिन्न विभागों में पीएचडी की कुल 134 सीटों पर ऑनलाइन माध्यम से प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा जारी निर्देश में कई प्रकार की कमियां देखने को मिल रही हैं जो निम्नलिखित हैं:
- घर के एक कमरे में सफ़ेद बैकग्राउंड के सामने बैठकर ऑनलाइन परीक्षा का निर्देश दिया गया है। इसमें यह कमी है कि कोई भी तकनीकी जानकारी रखने वाला व्यक्ति अपने कंप्यूटर या लैपटॉप का एक प्रतिरूप आवरण (Duplicate screen) व क्लोन स्क्रीन सरलतापूर्वक HDMI केबल या थर्ड पार्टी एप्लीकेशन के माध्यम से बना कर संचालन के लिए अन्य किसी व्यक्ति को नियुक्त कर परीक्षा में सरलतापूर्वक नकल कर सकता है। प्रवेश परीक्षा में निगरानी का माध्यम परीक्षार्थी का वेबकैम और माइक्रोफोन है जो परीक्षार्थी के कैमरे के सामने के दृश्य को दिखाने में सक्षम है लेकिन यहां कमी यह है कि कैमरे के पीछे अन्य कोई गुपचुप तरीके से बैठकर आराम से नक़ल करने में सहयोग कर सकता है।
- प्रवेश परीक्षा देने के लिए आधुनिक उपकरण कंप्यूटर, लैपटॉप, एंड्रॉइड फ़ोन, हाई स्पीड इन्टरनेट व एकांत कमरे की बात की गयी है जो कि सभी परीक्षार्थियों के लिए संभव नहीं हैं क्योंकि इस कोरोना महामारी के दौरान सभी परीक्षार्थी अपने घर पर हैं। दूरदराज के गांव में रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर परीक्षार्थी परीक्षा में उपयोग किये जाने वाले उपकरण और तेजगति के इन्टरनेट की व्यवस्था करने में सक्षम नहीं हैं। इस कारण बहुत से परीक्षार्थी प्रवेश परीक्षा से वंचित रह जाएंगे।
- बहुत सारे परीक्षार्थियों में तकनीकी जानकारी का अभाव है और सहायता हेतु तकनीकी ज्ञान की उपलब्धता भी नहीं है।
- एक-एक प्रश्न को समय सीमा में बांध कर हल करने के लिए बाध्य करना किसी भी परीक्षार्थी के लिए अनुचित है।
पूर्वोक्त समस्याओं को देखते हुए तमाम परीक्षार्थियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग की है कि 2020 के सत्र हेतु प्रवेश परीक्षा का आयोजन परीक्षा केंद्र बनाकर केंद्र पर्यवेक्षक की निगरानी में किया जाए ताकि नकल व अन्य अनुचित साधनों के प्रयोग की संभावना को समाप्त किया जा सके।