आपदा के व्यावसायीकरण के क्या परिणाम होंगे. इसका उदाहरण इस आशय में मिल जाएगा है कि एक आदिवासी समुदाय अपने पड़ोस में खनन शुरू होने से पहले कैसा था और समय के साथ इसे क्या नुकसान हुआ।
दूबिल, झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के सारंडा जंगल में स्थित एक आदिवासी गाँव है। लगभग 500 की आबादी वाला यह गाँव प्रकृति के करीब एक सुखी जीवन व्यतीत करता था। यहां की मुख्य फसल धान थी, जिसकी वर्ष मैं दो पैदावार होती थी और विभिन्न अनाज खेती के पूरक थे। साल भर ताज़ा पानी वाली दो प्राकृतिक धाराओं के साथ गाँव धन्य था। अफसोस कि यह गाँव चिरिया लौह अयस्क खदान, जो 3276 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है, की जद में आ गया।
खनन का साल-दर-साल विस्तार होता गया और दूबिल के आदिवासियों के सुखी जीवन से सुख जाता रहा। मूल कंपनी ने खनन गतिविधि को सहायक कंपनियों को वितरित करना शुरू कर दिया, जिन्होंने कृषि और जल स्रोतों को हुए नुकसान के मुआवजे के मामले में पड़ोसी गाँव के समुदायों के प्रति कोई दायित्व निर्वाह नहीं किया। अंततः लगभग 100 एकड़ उनकी उपजाऊ भूमि बंजर हो गई और स्वच्छ पानी की धारा लाल रंग की हो कर बहने लगी।
इसके अलावा, बाहर के मजदूरों को खदानों में काम करने के लिए लाया जा रहा था, जबकि स्थानीय लोगों को ‘दिहाड़ी मजदूरों’ की श्रेणी में रखा गया था। जब दूबिल और आसपास के लोगों ने खुद को संगठित किया और इस अन्याय के खिलाफ विरोध किया, तो उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए और उनके छह नेताओं को सलाखों के पीछे डाल दिया गया। उनके इस अपमान ने चोट को और गहरा किया है।
सरकार द्वारा स्थिति को सुधारने के प्रयास में लिए कुछ आधे-अधूरे कदमों से भी कोई फर्क नहीं पड़ा। आधे घर ढहने या निर्जन हो जाने से आवास योजना विफल हो गई। हैंड-पंपों ने काम करना बंद कर दिया है, सोलर लैंप और रेडियो गायब हो गए हैं, साइकिलें टूट गई हैं। इस प्रकार परियोजना की शुरुआत में किया गया विकास लाने का वादा सपाट हो चला है और लोग पहले से अधिक अभाव और पीड़ा में जी रहे हैं।
[ग्लैडसन डुंगडुंग द्वारा “मिशन सारंडा – भारत में प्राकृतिक संसाधनों के लिए एक युद्ध” पेज 59-64 से संपादित उद्धरण]
भारत सरकार का कोयला खानों का व्यावसायीकरण/निजीकरण करने का निर्णय मनमाना और अन्यायपूर्ण है
18 जून 2020 को केंद्रीय सरकार ने देश भर के 41 कोयला ब्लॉकों की सूची जारी की जिन्हें निजी कंपनियों को नीलाम किया जाना है। इसे आर्थिक संकट के लिए रामबाण कहा जा रहा है जिसका देश वर्तमान में सामना कर रहा है। हमें बताया गया है कि 10 करोड़ टन कोयले से गैस बनायी जाएगी, भारत दुनिया का सबसे बड़ा कोयला-निर्यात करने वाला देश बन जाएगा; यह हमारे देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
झारखंड सरकार की दलील है कि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई को निर्णायक रूप से जीतने तक, यानी लगभग छह से आठ महीने की देरी से नीलामी की जाए। सूचीबद्ध 41 कोयला ब्लॉकों में से झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में प्रत्येक 9 और 11 मध्य प्रदेश में स्थित हैं; इन्हे खंडों में नीलाम किया जाना है। बता दें कि उपरोक्त सभी राज्यों में इन खानों में से अधिकांश मुख्य रूप से आदिवासी-बहुल क्षेत्रों में स्थित हैं, जो कि आदिवासी भूमि और जंगलों में हैं।
किसी को यह याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि आदिवासी सबसे अधिक हाशिये के समुदायों में से हैं। वे भारत की 1.3 बिलियन की आबादी का मात्र 8 प्रतिशत बनाते हैं, लेकिन पिछले दशकों में विकास परियोजनाओं द्वारा विस्थापित 60 मिलियन लोगों में से लगभग 40 प्रतिशत आदिवासी ही हैं। उनमें से केवल 25 प्रतिशत का ही पुनर्वास हुआ है, लेकिन किन्हीं को भी उनका पूरा अधिकार नहीं मिला है। उन्हें न्यूनतम मुआवजा दिया गया और फिर बड़े करीने से भुला दिया गया।
कोल ब्लॉक नीलामी के खिलाफ़ कोयला श्रमिकों की 2-4 जुलाई को तीन दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल
पहली चिंता की बात यह है कि बातचीत की मेज पर केवल दो पक्ष (केंद्र सरकार और निजी कंपनी) हैं। वे लोग कहां हैं जिनकी ज़मीन पर खुदाई की जाएगी, जिन्हें विस्थापित किया जाएगा, जो ज़मीन के मालिक से भूमिहीन मजदूरों बन कर रह जाएंगे?
दूसरी बात यह कि कानून, न्यायिक फैसले कहां हैं? जैसे कि संविधान की पांचवीं अनुसूची, जो इस बात पर मुहर लगाती है कि अनुसूचित क्षेत्र की किसी भी परियोजना पर क्रियान्वयन से पहले जनजातीय सलाहकार परिषद को विश्वास में लिया जाना चाहिए; पेसा अधिनियम (1996), जिसके तहत प्रमुख खनिजों के आवंटन में ग्राम सभाओं से परामर्श किया जाना चाहिए; समता निर्णय (1997), जो ग्राम सहकारी समितियों को पाँचवी अनुसूची क्षेत्रों में कोयला खदानों के उत्खनन का एकमात्र एजेंट होने का अधिकार देता है; वन अधिकार अधिनियम (2006),जो जंगलों में किसी भी खनन के लिए ग्राम सभा की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य बनाता है; सर्वोच्च न्यायालय की 2013 में की गई घोषणा कि “भूमि का मालिक भी मिट्टी के नीचे के खनिजों का मालिक है”; भूमि अधिग्रहण अधिनियम (2013) जो बहु-फसल कृषि भूमि आदि के अधिग्रहण पर प्रतिबंध लगाता है। क्या इसका अर्थ है कि संसद में बनाए गए कानून और उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित निर्णय वर्तमान केंद्रीय सरकार पर लागू नहीं होते?
तीसरी बात यह कि पुराने अनुभवों से हमें ज्ञात है की निजी कंपनियां आदिवासी समुदाय के सुरक्षात्मक कानूनों और प्राकृतिक संसाधनों पर उनके अधिकारों का पालन नहीं करने वाली हैं। जरूरत पड़ने पर सरकार जबरन आदिवासी जमीन का अधिग्रहण करेगी और इसे कंपनियों को सौंप देगी। भूमि इन कंपनियों को एक थाल में परोस दी गई है। यदि प्रभावित लोग विरोध करेंगे, तो उन्हें स्थानीय सरकार द्वारा स्वेच्छा से आपूर्ति की जाने वाली कानून-व्यवस्था के माध्यम से नियंत्रित किया जाएगा। कई मामलों में उन लोगों पर कार्रवाई की जाएगी जो विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते हैं और उन्हें सलाखों के पीछे फेंक दिया जाएगा जबकि निजी कंपनियों को चिंता करने की कोई बात नहीं है।
इस तथ्य को कैसे सुलझाएं कि एक तरफ कॉर्पोरेट घराने लाखों और अरबों रुपये में मुनाफा जमा करते हैं और एक बार लूट पूरी होने के बाद चले जाएंगे जबकि दूसरी तरफ छोटे और सीमांत किसान अपना सब कुछ खो देते हैं और दण्ड और विनाश के भोगी बनते हैं। क्या हमारे समाज से न्याय की झलक भी गायब हो गई है?
यह कहना सही नहीं होगा की खनन बिल्कुल नहीं होना चाहिए लेकिन यह केवल समुदाय की जरूरतों को पूरा करने के लिए होना चाहिए न कि लाभ कमाने के लिए। हम दो महत्वपूर्ण सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को जोड़ सकते हैं, अर्थात् 2013 का फैसला जो भूमि के मालिक को मिट्टी के नीचे के खनिजों का मालिक होने का अधिकार देता है और 1997 का फैसला जो घोषणा करता है कि स्थानीय आदिवासियों की सहकारी समितियां अकेले खनन कर सकती हैं। तब यह राज्य का सर्वोपरि कर्तव्य बन जाता है कि वह सहकारी संस्थाओं के निर्माण और पंजीकरण में सहायता करे और प्रारंभिक संसाधन जैसे कि आवश्यक पूंजी, तकनीकी विशेषज्ञता, प्रबंधन कौशल, विपणन मार्ग आदि प्रदान करे ताकि वे बाधारहित कार्य कर सकें और पूरा समुदाय लाभ उठा सके। राज्य यह कर सकता है यदि वह वास्तव में सभी का विकास और कल्याण चाहता है। जहां चाह, वहां राह।
अनुवाद सूर्यकान्त सिंह ने किया है
Like!! I blog quite often and I genuinely thank you for your information. The article has truly peaked my interest.
I really like and appreciate your blog post.
Thank you ever so for you article post.
I used to be able to find good info from your blog posts.