भारत सरकार के कई मंत्री इस बात पर खुशी जाहिर कर रहे हैं कि भारत में कोरोना के मरीजों में रिकवरी रेट काफी उम्दा है। उनका कहना है कि भारत में कोरोना के मरीज काफी तेजी से ठीक हो रहे हैं। सरकार के मंत्रियों और सचिव स्तर के अधिकारियों के द्वारा दिया जाने वाला ये बयान कहीं न कहीं गुप-चुप तरीके से लॉकडाउन में दी जा रही छूट को बैक सपोर्ट दे रहा है। इन सभी उपलब्धियों को गिनाते हुए सरकार द्वारा एक बात ऐसी है, जो जनता से छुपायी जा रही है। रिकवरी रेट के पीछे की सच्चाई जानने के लिए हमें सबसे पहले सरकार की उन घोषणाओं की तरफ ध्यान देना होगा जिसके कारण बिना किसी औषधि के अचानक कोरोना के मरीज़ जादुई रूप से ठीक होते जा रहे हैं।
अगर आसान भाषा में समझाया जाये तो कोरोना के मरीज दो तरह के होते हैं। एक लक्षण वाले और दूसरा बिना लक्षण वाले। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिये गये एक आँकड़े के अनुसार हमारे देश में तकरीबन 69 फीसदी मरीज ऐसे हैं जिनमें कोरोना संक्रमण से संबंधित कोई लक्षण नहीं है। स्वास्थ्य मंत्रालय के द्वारा यह जानकारी 22 अप्रेल को दी गयी थी। पूरी दुनिया की बात करें तो ये आंकड़ा तकरीबन 79 से 80 प्रतिशत तक है।
मरीज़ कैसे फटाफट ठीक हो रहे हैं
8 मई को सरकार की नयी डिस्चार्ज पॉलिसी आती है जिसके तहत बिना लक्षण वाले कोरोना के मरीजों को 10 दिन के अंदर डिस्चार्ज करने का आदेश दिया गया। इस आदेश को विस्तृत रूप से समझिए। सरकार की नयी डिस्चार्ज पॉलिसी के तहत अगर किसी मरीज को तीन दिन तक बुखार नहीं आता है और सांस लेने में कोई गंभीर समस्या ना हो तो उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उस व्यक्ति को 10 दिन तक होम क्वारंटीन में रहना पड़ेगा। आगे पेंच और भी हैं। इस नियम के लागू होने से पहले पहले जिन मरीजों को अस्पताल से छुट्टी दी जा रही थी उनका कोरोना टेस्ट (आरटी-पीसीआर) कराया जाता था। उस टेस्ट के रिजल्ट के बाद ही मरीजों को घर जाने की इजाजत मिलती थी लेकिन नये नियमों के बाद ये टेस्ट करवाना जरूरी नहीं है।
इस बात को अब आंकड़ों में समझिए
इन आंकड़ों पर ध्यान दिया जाये तो एक बात साफ पता चलती है कि डिस्चार्ज पॉलिसी के नये नियमों के बाद कोरोना के मरीजों की रिकवरी रेट अचानक से बिना किसी इलाज के बढ़ गयी है। कारण भी साफ पता चल रहा है कि बिना लक्षण वाले मरीजों को जांच किये बिना ही अस्पताल से छुट्टी मिल जा रही है। ऐसे में रिकवरी रेट का बढ़ना लाज़िमी है।
सरकार की ये पॉलिसी क्यों खतरनाक है
समझ लीजिए कि राजन नामक किसी शख्स को कोरोना है लेकिन उसमें कोरोना के लक्षण नहीं हैं। उसे बुखार नहीं है, सांस लेने में किसी तरह से कठिनाई नहीं हो रही है। वो बिल्कुल स्वस्थ नजर आ रहा है। ऐसा आपके मजबूत इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) के कारण होता है। अब अगर राजन हॉस्पिटल से निकल कर घर जाता है तो उसके घरवालों में संक्रमण फैल सकता है। साथ ही साथ अगर उसके होम क्वारंटीन के पूरा होने के बाद वो घर से बाहर निकलता है तो कम्यूनिटी ट्रांसमिशन का खतरा और भी ज्यादा बढ़ सकता है। ऐसे में बिना लक्षण वाला एक मरीज सैकड़ों लोगों को संक्रमित कर सकता है।
लचर स्वास्थ्य व्यवस्था हो सकता है कारण
देश में लगतार लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के सुबूत मीडिया में लगातार देखने को मिल ही जाते हैं। देश के ज्यादातर अस्पतालों में कोरोना से लड़ने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। देश न सिर्फ डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है बल्कि यहां स्वास्थ्यकर्मी से लेकर वेंटीलेटर और पीपीई किट तक की भारी कमी है। गांवो के क्वारंटीन सेंटरों से लगातार गड़बड़ी की खबरें आ रही हैं। लोगों को ज्यादातर क्वारंटीन सेंटर में सारी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। कई क्वारंटीन सेंटर पर इसी कारण से काफी बवाल काटा गया है। ऐसे में शायद सरकार यही चाहती है कि कोरोना के गंभीर मरीजों को ही अस्पताल की सुविधा उपलब्ध करवायी जाये जो कहीं से भी तार्किक नहीं है। भविष्य के लिए भी यह एक खतरनाक कदम है।
हाल ही में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार के एक निर्णय के अनुसार अब दिल्ली में अगर कोई भी व्यक्ति अस्पताल पहुंचते-पहुंचते मर जाता है तो उसकी कोरोना की जांच नहीं की जाएगी। ऐसे में मान लीजिए कि अगर उक्त व्यक्ति को कोरोना था तो उसके परिवार वाले में संक्रमित हो सकता है। उनकी टेस्टिंग तो होनी ही चाहिए लेकिन दिल्ली सरकार ने इस संदर्भ में कोई जानकरी नहीं दी है।
कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि मामला लीपा-पोती तक पहुंच चुका है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की लचर व्यवस्था सामने आ चुकी है। ऐसे में राम नाम पर वोट मांगने वाली सरकार अब कोरोना के मामले में जनता को राम भरोसे ही छोड़ते हुए नजर आ रही है।
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