विश्व पर्यावरण सप्ताह: समुदाय निर्माण और हरित जीवनशैली के लिए “मेरा शहर” की पहल


वाराणसी, 7 जून 2025 – सामाजिक संगठन “मेरा शहर” द्वारा आज सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल, वाराणसी परिसर में विश्व पर्यावरण सप्ताह के अवसर पर तीसरे समावेशी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य विभिन्न सामाजिक और आयु वर्गों के लोगों को एक साझा मंच प्रदान करना था, जहाँ वे अपनी रचनात्मक अभिव्यक्तियों के माध्यम से संवाद, सहयोग और पर्यावरणीय चेतना को बढ़ावा दे सकें।

कार्यक्रम में ओपन माइक, फ्रीस्टाइल प्रस्तुतियाँ, और एक चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें युवाओं, बच्चों तथा वरिष्ठ नागरिकों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इस बहु-आयामी भागीदारी ने पीढ़ियों के बीच संवाद को सशक्त किया और समावेशिता को बढ़ावा दिया।

कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाने हेतु मुख्य अतिथियों के रूप में उपस्थित थे:
• डॉ. लेनिन रघुवंशी – मानवाधिकार कार्यकर्ता
• विजय विनीत – वरिष्ठ पत्रकार
• पद्मनी मेहता – सामाजिक कार्यकर्ता

प्रमुख प्रस्तुतियाँ
नृत्य – प्राची तिवारी, आकाश, प्रगति बिंद, मोनिका विश्वकर्मा
गायन व रैप संगीत – दीपक कुमार, काज़ी अख्तर, ऋषि, स्मार्ट लालू
मार्शल आर्ट्स प्रदर्शन – आरंभ अकैडमी
चित्रकला प्रदर्शनी – आकांक्षा, काजल, अनुराधा, अलिश्बा अंसारी, रिम्मी जायसवाल, विनीता, अमरजीत, आर्यन

“मेरा शहर” की मुख्य कार्यकारी अधिकारी सोनल उपाध्याय ने इस अवसर पर कहा: “हमारा उद्देश्य ऐसे मंच तैयार करना है जहाँ लोग अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से जुड़ सकें और सामाजिक व पारिस्थितिक रूप से जिम्मेदार जीवनशैली को अपनाएं।”

यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि सांस्कृतिक गतिविधियाँ न केवल सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती हैं, बल्कि सतत विकास की दिशा में भी एक उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकती हैं।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
मेरा शहर संगठन
📧 ईमेल: merashehar.in@gmail.com
📞 फोन: 6306312685
🌐 वेबसाइट: merashehar.in


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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