सांप्रदायिकता से लड़ने वालों को अपनी लड़ाई साम्राज्यवाद की ओर मोड़नी होगी: विनीत तिवारी


हिरोशिमा दिवस के उपलक्ष में प्रगतिशील लेखक संघ इकाई द्वारा “भारतीयता राष्ट्रवाद और साहित्य” विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने साहित्य, समकालीन राजनीति एवं अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में मौजूदा समस्याओं को समझने उनका विश्लेषण करने का प्रयास किया।

आयोजन के प्रमुख वक्ता प्रलेस के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रवाद की प्रगतिशील सोच ने ही देश से अंग्रेजों को भगाया था। आजादी के लिए चले आंदोलन में 1857 के राष्ट्रवाद का उपयोग किया गया था। भारतीयता भौगोलिक नहीं हो सकती। देश की संकल्पना का एक आधार राजनैतिक भी होता है। भारत के संदर्भ में अलग-अलग संकल्पनाएं सामने आई है।

1947 का राष्ट्रवाद विस्तारवादी नहीं था। व्यक्ति और देश की सदैव एक ही पहचान नहीं रहती। बावजूद इसके आज पहचान के आधार पर एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है। भाषा, भोजन, पहनावे के नाम पर आपस में लड़वाया जाता है। वर्गीय पहचान ही व्यक्ति की अंतिम पहचान होती है जिन्हें शोषित और शोषक के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। राष्ट्र के स्तर पर तीसरी दुनिया के रूप में भारत की पहचान है, जो गुटनिरपेक्ष आंदोलन, ब्रिक्स एवं सार्क संगठन के माध्यम से अभिव्यक्त हुई है। पीड़ित राष्ट्रों के पक्षधर के रूप में भी भारत की पहचान रही है। मानवता ही राष्ट्रीयता होना चाहिए।

सांप्रदायिकता से लड़ने वालों को अपनी लड़ाई साम्राज्यवाद की ओर मोड़ना होगी क्योंकि वही सभी समस्याओं के मूल में है। फ़िदेल कास्त्रो ने इसीलिए तीसरी दुनिया के देशों की एकता की बात की थी क्योंकि तीसरी दुनिया के मुल्क़ इकट्ठे होकर साम्राज्य्वाद को कड़ी चुनौती दे सकते हैं। 

कुछ प्रगतिशील लोग यह समझते हैं कि भारत में सांप्रदायिक शक्तियों के उभार और सत्ता में आने का कारण उनकी पिछले नौ दशकों की मेहनत रही है। विनीत ने कहा कि मैं इसे सच नहीं मानता।  सच तो ये है कि वैश्विक साम्राज्यवादी शक्तियों ने जब देश की पूँजीवादी उदारवादी सत्ता में अपनी उम्मीद खो दी तब उन्होंने देश के भीतर की सांप्रदायिक शक्तियों को पोषित करना शुरू किया। हालात बताते हैं कि हम आज जितने अमेरिका के नज़दीक हैं, उतने पहले कभी नहीं रहे। 

विनीत ने कहा कि हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम के विस्फोट के संदर्भ में वर्ष 1995 में नए तथ्य उद्घाटित हुए। बम विस्फोट से पहले ही जापान आत्म समर्पण कर चुका था उसके बाद भी यह नरसंहार क्यों किया गया? परमाणु बम का प्रयोग नागरिक आबादी से दूर करने का सुझाव वैज्ञानिकों ने दिया था बावजूद इसके अमेरिका ने जापान की नागरिक आबादी पर यह प्रयोग किया। अगर यह प्रयोग ही था तो दो दिन के बाद नागासाकी पर पुनः बम क्यों डाला गया ? इन बमों के माध्यम से अमेरिका सोवियत संघ और उसे काल में उभरे समाजवादी राष्ट्रों को अपनी ताकत के जरिए डराना चाहता था। विश्व के शांतिप्रिय नागरिकों को मानवता की रक्षा के लिए अमेरिकी साम्राज्यवाद से निर्णायक लड़ाई लड़ना होगी।

उज्जैन प्रलेसं इकाई के शशि भूषण ने अज्ञेय और पाश की रचनाओं के माध्यम से भारतीयता को परिभाषित करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि हम गलत अध्ययन के शिकार रहे हैं। वर्तमान की समस्याओं का हल अतीत के पास नहीं है। अतीत से हम सबक ही ले सकते हैं। भारतीयता सनातन से नहीं गौतम बुद्ध काल से पहचानी गई है। बुद्ध से प्रारंभ हुई सहिष्णुता ही भारतीयता में बदली है जिसे सम्राट अशोक ने विस्तारित किया। भक्ति आंदोलन ने राष्ट्रीय एकता के लिए बड़ा काम किया है। वर्तमान में संतों के उस आंदोलन को “भक्तों” ने हथिया लिया है।

डॉक्टर लोहिया को उद्धृत करते हुए शशि भूषण ने कहा कि धर्म दीर्घकालीन राजनीति रहा है। अंग्रेजों को पराजित करने में धर्म की कोई भूमिका नहीं थी। भारत के राष्ट्रवाद ने अब धार्मिक स्वरूप ले लिया है। धर्म को राष्ट्रवाद बताना बड़ा खतरा है। धार्मिक राज्य की परिकल्पना असमानता आधारित वर्ण आश्रम व्यवस्था है। आज गीता और बुद्ध एक दूसरे के सामने खड़े हैं। राष्ट्रवाद भारतीयता के लिए कैंसर के समान ही रोग है।

गोष्ठी में कबीर भजनों के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गायक प्रहलाद टिपाणियां ने कहा कि वर्तमान में सच बोलना खतरनाक हो गया है। कबीर के माध्यम से देशवासियों की आन्तरिक पीड़ा को मैंने महसूस किया है। मानवता के लिए एकजुट होना जरूरी है।

प्रलेस इंदौर इकाई के हरनाम सिंह ने कहा कि वर्तमान में हिंदुत्व को ही भारतीयता बताया जा रहा है, जिसके कारण स्वतंत्रता संग्राम की विरासत खतरे में है। रवींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रवाद की आलोचना करते हुए कहा था कि वह शक्ति और अतीत की कल्पनाओं से संचालित होता है। हिटलर के राष्ट्रवाद के परिणाम दुनिया ने भुगते हैं।

आयोजन के बारे में इकाई सचिव राजेंद्र सिंह राजपूत ने कहा कि सांप्रदायिकता और घ्रणा के माहौल में यह परिसंवाद आयोजित किया गया है। स्वागत उद्बोधन एवं गोष्ठी का संचालन इकाई अध्यक्ष कुसुम बागडे ने किया। आभार माना राजेंद्र राठौड़ ने। आयोजन में प्रलेसं इकाई के वरिष्ठ मेहरबान सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस अवसर पर डॉक्टर प्रकाश कांत, बहादुर पटेल, ज्योति देशमुख, वरिष्ठ चित्रकार मुकेश बिजौले, अजीज रोशन, श्री गहलोत, एफ बीमानेकर, प्रोफेसर त्रिवेदी, रामप्रसाद सोलंकी, एस एल परमार, भागीरथ सिंह मालवीय, वाणी जाधव, नंदकिशोर कोरवाल, श्री वागडे़, राम सिंह राजपूत, मोहन जोशी आदि उपस्थित थे।


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