न्यूजरूम में बॉट: भविष्य की पत्रकारिता का एक अपरिहार्य दु:स्वप्न


न्यूज़रूम में अब बॉट्स ने आर्टिकल और न्यूज़ लिखना शुरू कर दिया है। जमाना ऑटोमेटेड ज़र्नलिज्म का आ गया है। बहुत जल्द इंसान नहीं, न्यूज़रूम के डेस्क पर बॉट्स ही बॉट्स बैठे नजर आएंगे। क्या सच में भविष्य ऐसा ही दिखने वाला है? शुरूआत तो हो गयी है मगर अभी न्यूज़रूम में बॉट्स ने इंसानों को पूरी तरह से रिप्लेस नहीं किया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के नये अवतार चैटजीपीटी के आने के बाद कहा जा रहा है कि सबसे बड़ा खतरा इससे पत्रकारों को होगा। सबसे ज्यादा नौकरी पत्रकारों की ही जाने वाली है।

पत्रकारिता में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब नयी सच्चाई है। डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रसार के कारण हम जाने अनजाने ही सही अपनी कब्र पहले ही खोद चुके हैं। इसी डिजिटल मीडिया के कारण आज हम अपने डिजिटल फीड में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित न्यूज़ और विज्ञापन सामग्री का उपभोग करने लगे हैं। चाहे वो यूट्यूब रिकंमडेड वीडियो हों या हमारी फेसबुक फ़ीड या फिर वेबसाइटों पर आप जिस प्रकार के विज्ञापन देखते हैं, वे सभी विशेष रूप से एआइ के उपयोग से ही आपके लिए बनाए जा रहे हैं। लेकिन बात यहीं तक रहती तो एक बात थी। आर्टिफिशियल इंटेलि‍जेंस तो अब पत्रकारिता के क्षेत्र में भी प्रवेश कर रही है। सोशल मीडिया के प्रभाव से पत्रकारिता में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका काफी बढ़ गई है। इसलिए अब बड़ी मीडिया कंपनियां सक्रिय रूप से अपने कंटेंट को बढ़ावा देने के लिए एआइ से मदद मांग रही हैं।

आपको जानकर ये अचरज नहीं होना चाहिए कि जिस आर्टिफिशियल इंटेलि‍जेंस और चैट जीपीटी के हौव्वा से हम भारतीय आज डर रहे हैं उसका काफी हद तक एक आंशिक सफल प्रयोग नॉर्वे में 2016 में ही हो गया था। नॉर्वे की न्यूज़ एजेंसी (NTB) ने 2015 में ही फुटबॉल के मैचों के कवरेज के लिए ऑटोमेटेड न्यूज़ स्टोरी प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया था, जिसे एक साल बाद यानी 2016 मे लॉन्च भी किया गया। इस प्रोजेक्ट में एआइ के एक्सपर्ट के साथ पत्रकारों के एक समूह को एआइ के स्किल्स सि‍खाये गए थे और बॉट्स ट्रेंड किए गए था, मगर एलगोरिद्म को लेकर सही फैसला लेना इस प्रोजेक्ट में शामिल सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए एक चुनौती बनकर उभरा था। इस प्रोजेक्ट में बॉट्स को सही न्यूज़ और आर्टिकल लिखने के लिए काफी संख्या में संपादकीय इनपुट्स की मदद पड़ी और स्वभाविक है ये सभी इंसान ने ही दिए। न्यूज़रुम में एआइ के इस लर्निंग प्रॉसेस में ऑटोमेशन और ऑटोमेटेड न्यूज़ को लेकर बहुत सारे नए आइडिया आए। मौसम भविष्यवाणी से संबंधित खबरें और बाजार की कमोडिटीज और स्टॉक्स की कीमत से जुड़ी खबरों को कैसे ऑटोमेट किया जाए इसको लेकर भी कई प्रयोग किए गए। इतना ही नहीं चुनाव के दौरान कवरेज और आंकड़ों को कैसे फटाफट अंदाज़ में आटोमेटेड न्यूज़ पैकेज बनाया जाए इसको लेकर भी कई प्रयोग किए गए।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने पिछले कुछ वर्षों में न्यूज़रूम की बहुत मदद की है। कई मीडिया कंपनियों के पास इन-हाउस सॉफ्टवेयर हैं जो सेकंड नहीं तो मिनटों में न्यूज़ और आर्टिकल्स तैयार कर रहे हैं। इतना ही नहीं अब बॉट्स तो लाइव कवरेज भी कर रहे हैं। बॉट्स यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को सिर्फ डेटा की जरूरत होती है। यह डेटा आंकड़ा, ग्राफिक्स, ऑडियो या वीडियो के रूप में हो सकता है। सॉफ्टवेयर ऐसे डेटा (आंकड़ा, ऑडियो और वीडियो) पर न्यूज़ और आर्टिकल्स लिख दे रहे हैं और वीडियो बना दे रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट, बीबीसी और ब्लूमबर्ग जैसे प्रमुख मीडिया आउटलेट ऐसे सॉफ्टवेयर की मदद से न्यूज़ और आर्टिकल्स प्रकाशित करने के लिए एआइ का उपयोग कर रहे हैं।

कुछ दिन पहले एक अमेरिकी टेक वेबसाइट CNET से जुड़े इंटरनेट के धाकड़ जासूसों ने बड़े ही गुपचुप तरीके से एआइ (बॉट्स) की मदद से लिखे गए दर्जन भर से ज्यादा फीचर आर्टिकल्स छापे। मगर पत्रकारिता में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रयोग की ये सबसे बड़ी मशीनजनित आपदा (विफलता) साबित हुई। जब पोल खुली तो वेबसाइट ने इसे सच तो कहा मगर पाठकों को बताया कि यह महज एक प्रयोग था। हालांकि वेबसाइट का ऐसा कहना बिल्कुल साइंस फिक्शन जैसा ही था जब सब कुछ कंट्रोल से बाहर हो जाता है। मतलब बॉट्स ने इंसानों को धोखा दे दिया। इसे और थोड़ा ठोस ढंग से और स्पष्ट कहा जाए तो बॉट्स कभी भी जर्नलिस्ट (इंसान) से बेहतर और सटीक काम नहीं कर सकता। अमेरिकी टेक वेबसाइट CNET में छपे इन एआइ जनरेटेड खबरों को एक दूसरी टेक वेबसाइट Futurism ने  मूर्खतापूर्ण गलती करार दिया। जब एआइ जनरेटेड खबरों की काफी जगहंसाई हो गयी तो CNET ने फिर इसे सुधार कर अपने बेहतर टेक जर्नलिस्ट के नाम से छापा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बने आर्टिकल्स में इतनी भयंकर गलतियां थी जिसे देखकर शायद मशीन पर से आपका जो यकीन है वो हमेशा के लिए डगमगा जाए।

ऐसी ही एक मूर्खतापूर्ण गलती एक ऑटोमेटेड आर्टिकल में हो गई जिसमें मशीन ने चक्रवृद्धि ब्याज ही गलत जोड़ दिया गया था। 10 हजार डॉलर के मूलधन पर सालाना 3 प्रतिशत के ब्याज के दर पहले साल के बाद ग्राहक को 10 हजार 300 डॉलर मिलेगा ऐसा बताया गया, जबकि सही में ग्राहक को 300 डॉलर ही मिलता।

इतना ही नहीं, CNET और उसकी सहयोगी प्रकाशन संस्थान Bankrate, जो बॉट्स की मदद से बराबर स्टोरी प्रकाशित करती रहती हैं, दोनों प्रकाशन संस्थानों ने मशीन की मदद से ऑटोमेटेड स्टोरी की सटीकता के बारे में खुलासा करते कहा है कि हम अपने ऑटोमेटेड स्टोरी का रिव्यू करते हैं और अगर उसमें गलतियां पाई जाती हैं तो हम उसमें करेक्शन कर फिर से दोबारा अपडेटेड स्टोरी छापते हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को चेहरे की पहचान, फीड में जो रिकंमडेड मूवीज़ और वीडियोज आते हैं और इससे ज्यादा ऑटोमेटेड टाइपिंग के इस्तेमाल में किया जाना था। लेकिन जिस तरह CNET जैसे वेबसाइट पूरी खबर और आर्टिकल्स को जनरेट करने में उसका इस्तेमाल करने लगे हैं वो न्यूज़ मीडिया इंडस्ट्री के लिए एक चेतावनी और गंभीर खतरा बनते जा रही है। बॉट्स के मस्तिष्क और ChatGPT के साथ हुए संवाद के आधार पर जो कॉपी (न्यूज और आर्टिकल्स) तैयार किए जाते हैं उसमें बॉट्स न तो बाथरूम के लिए ब्रेक्स लेता है और न ही कोई वीकली ऑफ।

अब पिछले दिनों का ही एक वाकया देखिए- CNET ने अपनी एक स्टोरी को जो पूरी तरह से मशीन जनरेटेड स्टोरी थी उसे CNET Money Staff के नाम से बायलाइन छापा, लेकिन जब रीडर उस स्टोरी पर क्लिक करते हैं तो बताया जाता है कि इस स्टोरी को ऑटोमेशन टेक्नोलॉजी के मदद से छापा गया है। ये एक तरह से ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रति भद्दा मजाक तो है ही साथ ही साथ इंसानी दिमाग के साथ भी एक मशीनी धोखा है। जब ट्वि‍टर पर इस स्टोरी को लेकर ट्रोलिंग बढ़ने लगी तो ट्वीट कर सफाई दी गई कि इस स्टोरी में आर्टिफिशियल इंटेलि‍जेंस का सिर्फ सहयोग लिया गया था। बाकी संपादन संपादक ने और फैक्ट चेक संपादकीय स्टाफ ने किया था। अब इसे संपादकीय विफलता नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे।

इसे बताने की कोई जरूरत नहीं है कि बॉट्स की लिखी कॉपी और इंसान द्वारा लिखी गयी कॉपी में जमीन-आसमान का अंतर होता है। बॉट्स के लिखे न्यूज़ में न तो इंसानी दिमाग का तर्क नजर आएगा और न ही कोई तेज और ह्यूमर। रोबोटिक न्यूज और आर्टिकल एकदम सूखी, ठहरी हुई नदी की तरह ही पाठकों को लगती है जिसे पढ़कर पाठकों को न कोई कौंध उत्‍पन्न होता है और न ही कोई दिमागी सनसनाहट। बॉट्स की लिखी स्टोरी भावनाशून्य ही होती हैं। मगर जिस गति से हम भाग रहे हैं उस कृत्रिम दुनिया में अब तर्क, ह्यूमर और भावना का कोई मोल नहीं है। जिस तरह से हर सेकेंड सूचनाओं की सुनामी आ रही है उसमें समय और स्पीड मैटर करता है ना कि तर्क, तेज और ह्यूमर। एनालासिस का कोई मतलब ही नहीं रह गया है न्यूज़रूम में। बस किसी तरह मोबाइल स्क्रीन पर, टेलीविजन स्क्रीन पर, आपके सोशल मीडिया के न्यूज़ फीड में जितनी जल्दी हो सके सूचनाएं पहुँच जानी चाहिए और इसके लिए ही न्यूज़रुम में अब बॉट्स की मदद ली जाने लगी है। स्पीड और टाइम के लिए।

इससे भी बड़ी फजीहत तो आर्टिफिशियल इंटेलि‍जेंस का ये है कि इसमें प्लेगि‍यरिज्म का खतरा 99 प्रतिशत है और न्यूज़रूम के लिए यह सबसे चिंताजनक है, खासकर कॉपीराइट को लेकर। इसे रोबोट प्लेगियरिज्म कह सकते हैं। बॉट्स की सबसे बुरी आदत ये है कि वे शब्‍दश: कॉपी करते हैं बिना किसी फुलस्टॉप, कॉमा के। न तो वाक्य विन्यास को बदलने की तार्किक क्षमता है उसके पास और न तो रिहैश करने की। बॉट के लिखे आर्टिकल जब हम आप पढ़ेंगे कहीं तो लगेगा कि इसे हम इसे दूसरी जगह पहले ही पढ़ चुके हैं। वही टेक्स्ट, वही वाक्य और वही हेडिंग। अब काम हो जाता है यहां पर एडिटोरियल स्टाफ का जो एआइ इंजन को दोबारा ऐसा इनपुट देते हैं कि कोई भी न्यूज़ या आर्टिकल किसी की कॉपी नहीं लगे। मतलब बिना इंसान के आप किसी भी न्यूज़ या आर्टिकल को सटीक और एकदम जेनुइन नहीं तैयार कर सकते हैं जिस पर रीडर भरोसा कर सके कि ये मौलिक है। बॉट की नकल करने की आदत ऐसी है जैसे मेलेनिया ट्रंप मिशेल ओबामा का स्पीच चोरी करके पढ़ रही हों।

ऑडियो और वीडियो एआइ टूल्स

इस नई एकरस दुनिया में मशीन से बनी ख़बर और विश्लेषण ही जब सच है तो लगे हाथ ये भी जान लेना जरूरी है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के वो कौन से टूल्स और सॉफ्टवेयर हैं जिनकी मदद से हम ऑटोमेटेड न्यूज़, आर्टिकल्स लिख सकते हैं और वीडियो बना सकते हैं।

1. VoicePen AI: इस आर्टिफिशियल इंटेलि‍जेंस टूल की मदद से आप ऑडियो कंटेंट को ब्लॉग पोस्ट में बदल सकते हैं।

2. Krisp: इस एआइ टूल की मदद से बैकग्राउंड से आने वाली आवाज, शोर और कॉल से आने वाले ईको साउंड को हटाया जा सकता है।

3. Beatoven: इस एआइ टूल से आप बिना रॉयल्टी दिए कस्टमइज्‍ड म्यूजिक वेबसाइट पर डाल सकते हैं और अपने वीडियो में डाल सकते हैं।

4. Cleanvoice:  इस एआइ टूल की मदद से अपने पोडकास्ट को ऑटोमेटेड संपादित कर सकते हैं।

5. Podcastle:  इस एआइ टूल की मदद से बिल्कुल स्टूडियो क्वालिटी की रिकॉर्डिंग अपने कंप्यूटर से कर सकते हैं।

6. Vidyo:  इस एआइ टूल की मदद से आप लंबे लिखे कंटेंट (स्क्रिप्ट) को भी शॉर्ट फार्म के वीडियो फॉर्मेट में बदल सकते हैं।

7. Maverick: इस टूल की मदद से पर्सनलाइज्ड वीडियो स्टोरी जनरेट कर सकते हैं।

8. Soundraw:  इस एआइ टूल की मदद से ओरिजनल म्यूजिक क्रिएट कर सकते हैं।

डिजाइनिंग एआइ टूल्स

1. Flair :  ब्रांडेड कंटेंट की डिजाइनिंग के लिए यह कारगर एआइ टूल है।

2. Illustroke: टेक्स्ट को वेक्टर इमेज में बदलने के लिए यह एक कारगर एआइ टूल है।

3. Patterned:  विभिन्न तरह के पैटर्न जनरेट करने के लिए यह एक कारगर एआइ टूल है।

4. Stockimg:  सटीक स्टॉक फोटो जनरेट करने के लिए यह एक कारगर एआइ टूल है।

कॉपी और कंटेंट एआइ टूल्स

1. Copy:  संवाद को न्यूज़ कॉपी में जेनरेट करने के लिए यह एक कारगर एआइ टूल है।

2. CopyMonkey: इस एआइ टूल की मदद से सेकेंड में एमेजन प्रोडक्ट की लिस्टिंग कर सकते हैं।

3. Ocoya: सोशल मीडिया कंटेंट जनरेट और शेड्यूल करने के लिए यह एक कारगर एआइ टूल है।

4. Unbounce Smart Copy: इस एआइ टूल की मदद से बड़े पैमाने पर बेहतर संवाद और रिजल्ट देने वाले ईमेल भेज सकते हैं।

5. Puzzle:  अपने टीम के मेंबर और कस्टमर के नॉलेज बेस जनरेट करने के लिए यह एक कारगर एआइ टूल है।

6. Thundercontent: इमेज से कंटेंट जनरेट करने के लिए यह एक कारगर एआइ टूल है।

समकालीन राजनीतिक इतिहास पर हज़ार साल बाद एक क्लास में छात्र-रोबो संवाद

एआइ इंजिन के ऊपर बताये गए सारे टूल्स सही में अत्यंत उपयोगी हैं क्योंकि इससे न केवल समय की बचत होती है, बल्कि इसकी मदद से जर्नलिस्ट और राइटर को भी गहन विषयों में रुचि लेने और गंभीरता से सोचने के लिए विवश होना पड़ता है, जिससे वो इंसान होने के अपने अर्थ को तलाश सकें। चूंकि एआइ इंजन कभी भी इतना उन्नत और जेनुइन नहीं हो सकता है कि वो अपने तर्क, मस्तिष्क और विश्लेषण को न्यूज़ या आर्टिकल में इस्तेमाल कर सकें इसलिए जर्नलिज्म का वह हिस्सा पत्रकारों के लिए ही छोड़ दिया गया है।

बहरहाल, पत्रकारिता में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका लगातार सकारात्मक होती जा रही है और दुनिया को तुरंत अपडेट रहने में मदद कर रही है। जाते-जाते ये भी बताते चलें कि अमेरिका के कई शहरों में एआइ इंजिन ने बच्चों को नाकारा और काहिल बना दिया है। बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं, अपना होमवर्क एआइ इंजिन से बनवा रहे हैं। प्रोजेक्ट्स भी बॉट्स से करवा रहे हैं। मतलब अब आने वाली दुनिया में पढ़ाई-लिखाई का कोई मतलब ही नहीं होगा। अब मां-बाप अपने बच्‍चों को कहेंगे- मशीन-मशीन करोगे बनोगे नवाब, पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे खराब।



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