नेल्सन मंडेला के बगैर दुनिया: नौवीं बरसी पर एक स्मृति


अफ्रीका के इतिहास को मानव विकास का इतिहास भी कहा जा सकता है। अफ़्रीका में 17 लाख 50 हजार वर्ष पहले पाए जाने वाले आदि मानव का नामकरण होमो इरेक्टस अर्थात उर्ध्व मेरुदण्डी मानव हुआ है। होमो सेपियेंस या प्रथम आधुनिक मानव का आविर्भाव लगभग 30 से 40 हजार वर्ष पहले हुआ। लिखित इतिहास में सबसे पहले वर्णन मिस्र की सभ्यता का मिलता है जो नील नदी की घाटी में ईसा से 4000 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुई। इस सभ्यता के बाद विभिन्न सभ्यताएं नील नदी की घाटी के निकट आरम्भ हुई और सभी दिशाओं में फैलीं। आरम्भिक काल से ही इन सभ्यताओं ने उत्तर एवं पूर्व की यूरोपीय एवं एशियाई सभ्यताओं एवं जातियों से परस्पर सम्बन्ध बनाने आरम्भ किये जिसके फलस्वरूप महाद्वीप नयी संस्कृति और धर्म से अवगत हुआ। ईसा से एक शताब्दी पूर्व तक रोमन साम्राज्य ने उत्तरी अफ्रीका में अपने उपनिवेश बना लिए थे।

ईसाई धर्म बाद में इसी रास्ते से होकर अफ्रीका पहुंचा। ईसा से सात शताब्दी पश्चात इस्लाम धर्म ने अफ्रीका में व्यापक रूप से फैलना शुरू किया और नयी संस्कृतियों जैसे पूर्वी अफ्रीका की स्वाहिली और उप-सहारा क्षेत्र के सोंघाई साम्राज्य को जन्म दिया। इस्लाम और ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार से दक्षिणी अफ़्रीका के कुछ साम्राज्य जैसे घाना, ओयो और बेनिन अछूते रहे एवं उन्होंने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनायी। इस्लाम के प्रचार के साथ ही ‘अरब दास व्यापार’ की भी शुरुआत हुई जिसने यूरोपीय देशों को अफ्रीका की तरफ आकर्षित किया और अफ्रीका को एक यूरोपीय उपनिवेश बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।

19वीं शताब्दी से शुरू हुआ यह औपनिवेशिक काल 1951 में लीबिया के स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से खत्म होने लगा और 1993 तक अधिकतर अफ्रीकी देश उपनिवेशवाद से मुक्त हो गए। पिछली शताब्दी में अफ़्रीकी राष्ट्रों का इतिहास सैनिक क्रांति, युद्ध, जातीय हिंसा, नरसंहार और बड़े पैमाने पर हुए मानव अधिकार हनन की घटनाओं से भरा हुआ है। सन 1762 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने दक्षिण अफ्रीका के जिस स्थान पर खानपान केंद्र (रिफ्रेशमेंट सेंटर) की स्थापना की, उसे आज केप टाउन के नाम से जाना जाता है। 1806 में केप टाउन ब्रिटिश कालोनी बन गया। 1820 के दौरान बोअर (डच, फ्लेमिश, जर्मन और फ्रेंच सेटलर्स) और ब्रिटिश लोगों के देश के पूर्वी और उत्तरी क्षेत्रों में बसने के साथ ही यूरोपीय प्रभुत्व की शुरुआत होती है। हीरा और बाद में सोने की खोज के साथ ही 19वीं शताब्दी में द्वंद्व शुरू हो गया, जिसे एंग्लो-बोअर युद्ध के नाम से जाना जाता है।

हालांकि ब्रिटिश ने बोअर पर युद्ध में विजय प्राप्त कर ली थी, लेकिन 1910 में दक्षिण अफ्रीका को ब्रिटिश डोमिनियन के तौर पर सीमित स्वतंत्रता प्रदान की। 1961 में दक्षिण अफ्रीका को गणराज्य का दर्जा मिला। देश के भीतर और बाहर विरोध के बावजूद सरकार ने रंगभेद की नीति को जारी रखा। 20वीं शताब्दी में देश की दमनकारी नीतियों के विरोध में बहिष्कार करना शुरू किया। काले दक्षिण अफ्रीकी और उनके सहयोगियों के सालों के अंदरुनी विरोध, कार्रवाई और प्रदर्शन के परिणामस्वरूप आखिरकार 1990 में दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने वार्ता शुरू की, जिसकी परिणति भेदभाव वाली नीति के खत्म होने और 1994 में लोकतांत्रिक चुनाव से हुई।

नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। इसके उपरांत दक्षिण अफ्रीका फिर से राष्ट्रकुल देशों में शामिल हुआ। नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई 1918 को म्वेजो, स्टरनै केप, दक्षिण अफ्रीका में गेडला हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा और उनकी तीसरी पत्नी नेक्यूफी नोसकेनी के यहां हुआ था। वे अपनी माँ नोसकेनी की प्रथम और पिता की सभी संतानों में 13 भाइयों में तीसरे थे। मंडेला के पिता हेनरी म्वेजो कस्बे के जनजातीय सरदार थे। स्थानीय भाषा में सरदार के बेटे को मंडेला कहते थे, जिससे उन्हें अपना उपनाम मिला। उनके पिता ने इन्हें ‘रोलिह्लाला’ प्रथम नाम दिया था जिसका खोज़ा में अर्थ “उपद्रवी” होता है। उनकी माता मेथोडिस्ट थी। मंडेला ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से पूरी की। उसके बाद की स्कूली शिक्षा मेथोडिस्ट मिशनरी स्कूल से ली। मंडेला जब 12 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी।

नेल्सन मंडेला अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के नेता थे। उन्होंने इस संगठन की सैन्य शाखा “युमहोन्तो वा सीज़्वे”, यानी “राष्ट्र का भाला” का नेतृत्व किया था। सन् 1964 में रंगभेदी शासन का तख्ता पलटने की तैयारियां करने के आरोप में उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा दी गई। उन्हें रोबेन द्वीप पर स्थित एक जेल में बंद कर दिया गया। सन् 1990 में वह रिहा हुए। नेल्सन मंडेला ने अदालत के सामने बोलते हुए कहा था कि वह दक्षिणी अफ्रीका में एक ऐसे लोकतांत्रिक समाज का निर्माण करना चाहते हैं जिसमें सभी जातियों और नस्लों के लोग शांति और सद्भाव से रह सकें।

सन् 1993 में मंडेला को नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सन् 1994 से 1999 तक वह दक्षिणी अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे। नेल्सन मंडेला एक समय पर गुट-निरपेक्ष आंदोलन के अध्यक्ष भी थे। कानून की शिक्षा उन्होंने जेल में ही पाई थी। कारावास के दिनों में उन्होंने एक साथ कई विश्वविद्यालयों से विधिशास्त्र की शिक्षा पाई। दुनिया के पचास सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों ने उन्हें अपना मानद सदस्य बनाया। दुनिया भर के कई शहरों में बने स्मारक नेल्सन मंडेला को समर्पित हैं, कई सड़कों और चौराहों, स्टेडियमों और स्कूलों को उनका नाम दिया गया है।

रंगभेद से संघर्ष के प्रतीक नेल्सन मंडेला का 5 दिसंबर 2013 को जोहान्सबर्ग में निधन हो गया। नेल्सन मंडेला कुछ समय से बहुत बीमार रहते थे। जून माह में उन्हें फेफड़ों में संक्रमण होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डाक्टरों का कहना था कि यह संक्रामक रोग उस तपेदिक से ही सीधा जुड़ा हुआ था जो उन्हें केप ऑफ गुड होप के नज़दीक स्थित रोबेन द्वीप पर 27 वर्ष के कारावास के दौरान हुआ था। यदि उनके कारावास की सभी अवधियों को जोड़ लिया जाए तो उनके कारावास की कुल अवधि 31 साल बनती है। आधुनिक युग के किसी भी राष्ट्रपति ने अपने जीवन-काल में जेलें की इतनी लंबी सज़ा नहीं काटी।

उनका जन्म किसी साधारण परिवार में नहीं हुआ था। वह एक कबीले के मुखिया के बड़े बेटे थे, लेकिन इससे उन्हें कोई विशेषाधिका र नहीं मिले थे। ऐसे अधिकार तो उन दिनों केवल श्वेत अल्पमत को ही प्राप्त थे। नेल्सन मंडेला आधुनिक जगत में एक विलक्षण राजनेता रहे हैं। दक्षिणी अफ्रीका गणराज्य के जीवन में उन्होंने जो राजनीतिक भूमिका अदा की, उस तक ही उनका महत्त्व सीमित नहीं है।वह विशेष नैतिक सिद्धांतों को मानते थे। उन्होंने नस्लों और सामाजिक वर्गों के बीच संबंधों में नैतिकता को फिर से उसका स्थान दिलाया। उन्होंने राष्ट्रपति पद 14 साल पहले ही छोड़ दिया था लेकिन आखिरी दिन तक लोग उन्हें “देश की अंतरात्मा” मानते रहे।

5 दिसम्बर, 2013 को नेल्सन मंडेला हमें अलविदा कह गए।  95-वर्षीय नेल्सन मंडेला अपने जीवन के अंतिम दिनों तक बीमारी का समय छोड़कर सक्रिय जीवन जीते रहे।



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