बस्तर: सिलगेर आंदोलन को एक साल पूरा होने पर जुटे हजारों आदिवासी, विशाल प्रदर्शन


छत्तीसगढ़ के सिलगेर में सीआरपीएफ कैंप के खिलाफ एक साल से घेरा डालकर आंदोलन पर बैठे हजारों आदिवासियों ने शहीद हुए अपने चार साथियों की बरसी पर 17 मई 2022 को विशाल प्रदर्शन किया। मंगलवार की सुबह नौ बजे हजारों की संख्या में आदिवासियों ने सीआरपीएफ कैंप के पास बने शहीद स्थल की ओर मार्च किया और बैरिकेड के सामने अपनी मांगों को लेकर देर तक नारेबाजी की।

एक साल पहले इसी दिन प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर सीआरपीएफ के जवानों ने गोली चला दी थी। इसमें तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी और लाठीचार्ज की वजह से घायल एक गर्भवती महिला की बाद में मौत हो गई थी। इसके बाद जाड़ा, गर्मी और बरसात झेलते हुए बीते लगातार 365 दिनों से यह आंदोलन जारी है।

दिल्ली बॉर्डर पर एक साल तक घेरा डाल कर आंदोलन करने वाले किसानों की तरह ही ये आदिवासी सिलगेर सीआरपीएफ कैंप के पास करीब दो किलोमीटर के दायरे में मुख्य मार्ग (निर्माणाधीन) पर फूस के टेंट लगाकर धरने पर बैठ गए थे। यह आंदोलन मूलवासी बचाओ मंच, बस्तर की ओर से चलाया जा रहा है।

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साल भर पहले मारे गए आदिवासियों की पहली बरसी मनाने के लिए दूर-दूर से चलकर आदिवासी तीन दिन पहले ही यहां पहुंच गए थे। आंदोलन के नेता रघु ने बताया कि 15, 16 और 17 मई के कार्यक्रम में पूरे बस्तर से आदिवासी इकट्ठा हुए थे। मुख्य कार्यक्रम 17 मई को था।

बस्तर में आदिवासी अधिकारों पर काम करने वाली बेला भाटिया भी इस कार्यक्रम में पहुंची थीं। उन्होंने बताया कि एक साल पहले 12-13 मई की दरमियानी रात सिलगेर में सीआरपीएफ ने रातों रात कैंप बना दिया था। बीजापुर से जगरगुंडा तक सड़क निर्माण में हर दो-चार किलोमीटर पर एक सीआरपीएफ कैंप है। सिलगेर का यह ताजा कैंप 15वां कैंप था।

बेला बताती हैं, “सुबह जब आदिवासियों को पता चला तो वे वहां पहुंचे। तीन दिन तक हजारों की संख्या में आदिवासी कैंप को हटाने की मांग करते रहे और 17 मई को सीआरपीएफ की ओर से निहत्थी भीड़ पर फायरिंग कर दी गई।” 

वे पूछती हैं, “रात के अंधेरे में कौन आता है? चोर! आखिर सीआरपीएफ को चोरों की तरह आने की क्या जरूरत थी? ग्रामसभा को क्यों सूचित नहीं किया गया?”

आदिवासी नेता गजेंद्र मंडावी कहते हैं, “सीआरपीएफ के मन में चोर था इसीलिए उन्होंने बिना सोचे गोली चलाई।”

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सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरजू टेकाम का कहना है कि भूपेश बघेल को साल भर में इतना मौका नहीं मिला कि वे पीडि़तों के लिए संवेदना के दो शब्द कह सकें। उन्‍होंने कहा, “घटना की जांच छह महीने में करने की घोषणा की थी, लेकिन आज तक पता नहीं चला कि रिपोर्ट की क्या स्थिति है।”

छत्तीसगढ़ में इस समय कांग्रेस पार्टी की सरकार है और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें बहुजनों के जुझारू नेता के रूप में खूब प्रचारित किया जाता है। टेकाम कहते हैं, “इस बार बघेल का खेल खत्म होगा।”

छत्तीसगढ़ में साल भर बाद विधानसभा का चुनाव होने वाला है। बस्तर में सीआरपीएफ कैंप के खिलाफ बढ़ रहे आंदोलन से बघेल की पेशानी पर बल पड़ने शुरू हो गए हैं। यही कारण है कि सिलगेर के विशाल प्रदर्शन के दो दिन बाद ही वे बीजापुर के दौरा पर हैं जो सिलगेर से महज 70 किलोमीटर दूर है।

देखना होगा कि बघेल यहां आने के बाद आंदोलनरत और पीड़ित आदिवासियों से मिलने जाते हैं या नहीं!

आंदोलनरत अदिवासियें की प्रमुख मांग है कि मारे गए लोगों के परिजनों को एक-एक करोड़ व घायलों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए और इस घटना की न्यायिक जांच कर दोषी सुरक्षाकर्मियों को सजा दी जाए। आदिवासियों का कहना है कि सीआरपीएफ कैंप जिस सात एकड़ जमीन पर बना है वह खेती की जमीन थी, इसलिए वहां से कैंप को हटाया जाय और बस्तर में आदिवासियों का संहार बंद किया जाय।



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