किसान आंदोलन ने पूरा किया एक साल, आज से दुनिया भर में होंगे एकजुटता के कार्यक्रम


बीते साल 26 नवंबर को ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान से शुरू हुए किसान आंदोलन ने अपने ऐतिहासिक संघर्ष का एक वर्ष आज पूरा कर लिया। आंदोलन को संचालित करने वाले संयुक्‍त किसान मोर्चा ने कहा है कि यह तथ्य कि इतना लंबा संघर्ष छेड़ना पड़ा, भारत सरकार की अपने मेहनतकश नागरिकों के प्रति असंवेदनशीलता और अहंकार का एक स्पष्ट प्रतिबिंब है।

साल भर से चल रहे किसान आंदोलन में अब तक 683 किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। एसकेएम ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में उठाई गई अपनी मांग को दोहराते हुए कहा कि केंद्र सरकार आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने और उनके परिवार के पुनर्वास की घोषणा करे और सिंघू मोर्चा में उनके नाम पर स्मारक बनाने के लिए जमीन आवंटित करे।

इस बीच अभूतपूर्व किसान आंदोलन के एक वर्ष को चिह्नित करने के लिए दिल्ली के मोर्चों और राज्यों की राजधानियों और जिला मुख्यालयों पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की तैयारी चल रही है। दिल्ली में विभिन्न मोर्चों पर हजारों किसान पहुंच रहे हैं। कर्नाटक में हाईवे जाम के कार्यक्रम में किसान अहम हाईवे को जाम करेंगे। तमिलनाडु, बिहार और मध्य प्रदेश में ट्रेड यूनियनों के साथ संयुक्त रूप से सभी जिला मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। रायपुर और रांची में ट्रैक्टर रैलियां होंगी। पश्चिम बंगाल में कल कोलकाता और अन्य जिलों में रैली की योजना है। आज से दुनिया भर के विभिन्न देशों में भी एकजुटता की कार्रवाई होगी।

इस मौके पर गुरुवार 25 नवंबर को हैदराबाद में महाधरना का आयोजन हुआ जिसमें तेलंगाना के किसानों ने बड़े पैमाने पर भाग लिया। उपस्थित लोगों ने सभी कृषि उत्पादों पर एमएसपी के कानूनी अधिकार, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने, किसानों को दिल्ली की वायु गुणवत्ता से संबंधित कानूनी विनियमन के दंडात्मक प्रावधानों से बाहर रखने, विरोध करने वाले हजारों किसानों के खिलाफ मामलों को वापस लेने और अजय मिश्रा टेनी की बरखास्तगी और गिरफ्तारी सहित किसान आंदोलन की अभी भी लंबित मांगों को उठाया।

किसानों के समर्थन में दो साल पहले बने एक नागरिक एकजुटता समूह ‘नेशन फॉर फार्मर्स’ ने गुरुवार को दिल्‍ली के प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस की जिसे किसान महासभा के नेता अशोक ढावले, वरिष्‍ठ पत्रकार पी. साइनाथ सहित कुछ और बुद्धिजीवियों ने संबोधित करते हुए एक स्‍वतंत्र किसान आयोग गठित करने की प्रक्रिया का एलान किया।

इस राष्ट्रीय किसान आयोग में कुछ प्रतिष्ठित किसान और कृषि विशेषज्ञ शामिल होंगे। यह देश भर के किसानों की नुमाइंदगी करेगा। यह आयोग राज्यस्तरीय आयोगों के गठन को भी प्रोत्साहित करेगा जो कृषि आधारित समूहों और वर्गों के बीच देश भर में अध्ययन, तथ्यान्वेषण और सुनवाई कर सकें।

साइनाथ ने कहा, ” स्वामीनाथन आयोग की पहली रिपोर्ट दिसंबर 2004 और आखिरी रिपोर्ट अक्टूबर 2006 में जमा की गई थी। इस देश के इतिहास में कृषि पर सबसे महत्वपूर्ण इस रिपोर्ट पर संसद में चर्चा के लिए एक दिन भी नहीं दिया गया। अब जबकि सोलह साल बीत गए हैं, पुराने लंबित मुद्दों और नई परिस्थितियों में पैदा हुए नए मुद्दों (जैसे जलवायु परिवर्तन, कर्ज़ इत्यादि) ने मिलकर स्थिति को और घातक बना दिया है। इस पर नए सिरे से एक रिपोर्ट लाये जाने की ज़रूरत है।”

वक्‍ताओं के अनुसार स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिष्ठित विद्वानों के अध्ययन व परामर्श का परिणाम थी जिन्होंने किसानों व अन्य से व्यापक रायशुमारी की थी। किसान आयोग का गठन किसानों द्वारा किया जाएगा और उसकी कमान किसानों के हाथ में ही रहेगी, जो विशेषज्ञों के साथ परामर्श करेंगे तथा फॉलो-अप के लिए ऐसे संयुक्त मंचों का गठन करेंगे जिन्हें सरकार या अदालतें खत्म नहीं कर पाएंगी।

शनिवार 27 नवंबर को सिंघू मोर्चा पर संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक होगी। बैठक में किसान संगठन आगे की कार्रवाई के संबंध में निर्णय लेंगे। इतवार 28 नवंबर को मुंबई के आजाद मैदान में एक विशाल किसान-मजदूर महापंचायत का आयोजन किया जाना है। महापंचायत का आयोजन संयुक्त शेतकारी कामगार मोर्चा (एसएसकेएम) के संयुक्त बैनर तले 100 से अधिक संगठनों द्वारा किया जाएगा और इसमें पूरे महाराष्ट्र के किसानों, श्रमिकों और आम नागरिकों की भागीदारी देखी जाएगी।



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