सामाजिक एकता का खात्मा डेमोक्रेसी को चैलेंज है: प्रोफेसर मलिक


वाराणसी के नव साधना प्रेक्षागृह, तरना में गुरुवार को राइज़ एंड एक्ट के तहत एकदिवसीय “राष्ट्रीय एकता, शांति व न्याय” विषयक सम्मेलन में वक्ताओं ने राष्ट्रीय एकता, शांति और न्याय की स्थापना को लेकर अपने-अपने विचार रखे। वक्ताओं का मत था कि राष्ट्रीय एकता के कमजोर होने से लोकतंत्र कमजोर होता है। हमें सामाजिक ताने-बाने को मजबूती प्रदान करते हुए देश की एकता अखंडता को अक्षुण्‍ण रखने का प्रयास करना चाहिए।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बीएचयू के प्रो. दीपक मलिक ने कहा कि आज सामाजिक एकता का लोप हो रहा है। एकता के पाठ पढ़ाये नहीं जाते। यह डेमोक्रेसी को चैलेंज है। दलितों, महिलाओं की दशा नहीं बदली। वह आज भी बदतर हालात में जी रहे हैं। कोविड के चलते बहुत सारी प्रक्रियाएं धीमी हो गयीं, भले ही बहुत सारी कोशिशें की गयीं। उन्होंने कहा कि आज इतिहास और संस्कृति को बदलने वाली ताकतें सक्रिय हैं। हमें इन पर चिंतन करने और अपनी सोच में बदलाव व सकारात्मक पहल की जरूरत है।

चित्रा सहस्त्रबुद्धे ने सामाजिक सौहार्द पर चर्चा में कहा कि सामान्य जीवन जी रहे स्त्री व पुरुष का जीवन सामाजिक होता है। सामाजिक सौहार्द सामाजिक जीवन की शक्ति व ज्ञान है। गंगा का उद्धरण देते हुए कहा कि जिस तरह गंगा धाराओं को एक कर आगे बढ़ती है वही प्यार, नवीनता और सृजन है।

सामाजिक कार्यकर्ता लेनिन रघुवंशी ने सामाजिक बुराइयों पर कुठाराघात करते हुए कहा कि जातिवाद, वंशवाद, धर्म को लेकर होने वाली नफरत की लड़ाई बिकने वाली लड़ाई है, इसे हमें समझना होगा। अमीर गरीब की खाई को पाटना होगा। वंचित व दलित तबके को सामाजिक न्याय दिलाना ही बाबा साहब अंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

पत्रकार एके लारी ने कहा कि आज के दौर में हमें तय करना होगा कि हम किस मीडिया की बात करते हैं। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया की चर्चा करते हुए कहा कि मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी कहा जाता है। ऐसे में मीडिया की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह खबरों के मामले में न्याय करें।

संचालन व आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम संयोजक डॉ. मोहम्मद आरिफ ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो अगर उसे लागू करने वा ले ठीक नहीं होंगे तो संविधान अपना अस्तित्व खो देगा। आज स्थिति वैसी ही आ गयी है। हमें सावधान रहने की जरूरत है।

दूसरे सत्र में गंगा-जमुनी तहजीब के शायर नजीर बनारसी को उनकी जयंती पर याद किया गया। डॉ. कासिम अंसारी ने नजीर बनारसी को मिर्जा गालिब की परम्परा का शायर बताया। उन्होंने कहा कि उनकी शायरी हो या गजल या फिर नज्म उसमें हर जगह कौमी एकजहती दिखती है। वहीं उन्होंने अपने शहर बनारस और गंगा को लेकर जो लिखा है उसकी कोई तुलना नहीं है।

प्रो. मलिक ने इस बात पर अफसोस जताया कि अपने शहर में नजीर अब बेगाने हो गये हैं। जिस बनारस की परम्पराओं को लेकर उन्होंने ढेर सारे शेर लिखे उस बनारस का उन्हें भूलना दुखद है।

पत्रकार एके लारी ने कहा कि नजीर ऐसे शायर थे जिन्होंने कभी किसी तरह के सम्मान को महत्व नहीं दिया। तमाम तरह के सम्मान के प्रस्ताव उनके पास आते थे लेकिन वो हर बार ये कहकर ठुकरा देते थे कि मेरी शायरी से निकले संदेश लोगों के जेहन में रहें यही असल सम्मान है।

तृतीय सत्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश से आये हुए अध्यापक, पत्रकार, विद्यार्थी, वकील, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी बात कही। सत्र की अध्यक्षता करते हुए सामाजिक कार्यकर्त्री रंजू सिंह ने कहा कि आज एकता और सौहार्द की बात करने वाले हाशिये पर हैं। हमें इस जमात को बढ़ाना है। आज बिना संघर्ष किये मंजिल पर नहीं पहुंचा जा सकता है। भारत संघर्ष से ही बना है।

गोष्ठी में मो. खालिद, डॉ. क़ासिम अंसारी, सीबी तिवारी, अंकिता वर्मा, रामकिशोर चौहान, हृदयानंद शर्मा, लाल प्रकाश राही, बृजेश पाण्डेय, प्रतिमा पाण्डेय, प्रज्ञा सिंह, अरुण मिश्रा, मो. असलम, सुधीर जायसवाल, अब्दुल मजीद, कृष्ण भूषण मौर्य, रंजू सिंह, प्रज्ञा सिंह, अर्शिया खान, हरिश्चंद्र बिंद, आबिद शेख, शमा परवीन, हर्षित कमलेश, अयोध्या प्रसाद, रीता सिंह आदि प्रतिभागी मौजूद रहे।

कार्यक्रम का संचालन लाल प्रकाश राही और धन्यवाद सुधीर जायसवाल ने किया।



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